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नेसल स्प्रे होगा कोरोना को मिटाने का बड़ा हथियार

बर्मिंघम की अल्बामा यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट और वैक्सीन डेवलपर फ्रांसिस कहती हैं कि क्लीनिकल ट्रायल में ज्यादातर वैक्सीन इंजेक्शन के जरिए दिए जा रहे हैं। वैक्सीन को हाथ के ऊपरी हिस्से की तरफ लगाया जा रहा है। ज़्यादातर इंजेक्शन मांसपेशियों में अच्छा रिस्पॉन्स देखने को मिलता है। हालांकि कुछ वैज्ञानिक नसल स्प्रे यानी नाक के जरिए वैक्सीन को शरीर में पहुंचाना ज्यादा बेहतर विकल्प मान रहे है।

फ्रांसिसी एक वैक्सीन निर्माता कंपनी ‘अल्टइम्यून’ के साथ काम करती हैं। उनका कहना है कि मांसपेशियों में इंजेक्शन का ‘सिस्टमैटिक रिस्पॉन्स’ तो मिलता है, लेकिन ‘लोकल रिस्पॉन्स’ नहीं मिल पाता है। इस तरह के इंफेक्शन इम्यूनिटी को घेरने से पहले काफी देर तक नाक और गले में रहते हैं।

मांसपेशियों में इंजेक्शन के जरिए दी जाने वाली वैक्सीन रोगी को एक बड़े खतरे से तो बचा सकती है, लेकिन गले और नाक में दवा ना जाने की वजह से इंफेक्शन फैलने का खतरा तब भी बना रहेगा। नाक में सीधे वैक्सीन जाने से एक अलग तरह की इम्यूनिटी बढ़ती है, जो नाक और गले के बीच पाई जाने वाली एक लाइन की कोशिका में होता है।
फ्रांसिसी ने बताया कि ‘इंट्रानसल रूट’ के जरिए दी जाने वाली वैक्सीन भी सिस्टमैटिक इम्यूनिटी पर असर दिखाती है। सिस्टमैटिक इम्यूनिटी गंभीर रोगों से शरीर को बचाने का काम करती है। जबकि लोकल इम्यूनिटी नाक और गले के इंफेक्शन को खत्म करती है, जिससे छींकने या खांसने पर ड्रॉपलेट्स के जरिए बाहर इंफेक्शन फैलता है।

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