ब्‍लॉगर

राष्ट्रीय शिक्षा नीतिः छात्र केंद्रित शिक्षा का संकल्प पत्र

– डा. राजशरण शाही

शिक्षा किसी की राष्ट्र के विकास का सबसे सबल साधन है। शिक्षा की इस परिवर्तनकारी भूमिका को पहचानते हुये कोठारी आयोग (1964-66) ने लिखा है कि भारत के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षाओं में हो रहा है। आजादी के पूर्व भी हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने शिक्षा की इस भूमिका को ठीक प्रकार से पहचान लिया था, तभी तो स्वतंत्रता के संग्राम के समानान्तर भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा के विकल्प के रूप में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, विश्वभारती तथा देश के कई हिस्सों में विद्यापीठों की स्थापना हुई।

गांधी जी 1931 में लंदन में आयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में प्रतिभाग करते हुये कहते है कि मैं अंग्रेजों को इस बात के लिए माफ कर सकता हूॅं कि अंग्रेजों ने यहाँ के धन सम्पदा को लूटा, मैं उन्हें इस बात के लिए भी माफ कर सकता हॅूं कि देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले निहत्थे नौजवानों की निर्मम हत्याएं भी उन्होंने कीं। परन्तु इस बात के लिए उन्हें कभी नहीं माफ किया जा सकता है कि उन्होंने इस देश के शिक्षा के सुनहरे वृ़क्ष को जड़ से उखाड़ दिया। शिक्षा का वह सुनहरा वृक्ष क्या था? जिसको उखाड़ फेंकने के लिए गाॅंधी जी अंग्रेजों को माफ करने के लिए तैयार नहीं थे। भारत की आवश्यकताओं व आंकाक्षाओं के अनुरूप भारतीयों द्वारा निर्मित शिक्षा तंत्र को गाॅंधी जी ने ’व्यूटीफुल ट्री’ कहा था। इसके स्थान पर अंग्रेजों ने जिस शिक्षा का बीजारोपण किया था, वह देश की आवश्यकता के अनुरूप नहीं बल्कि शासक वर्ग के हितों को ध्यान में रखकर तैयार की गयी थी।

किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था उस देश की चिंतन परम्परा से निकलनी चाहिए। भारत की चिंतन परम्परा प्रत्येक जीव में शिव के दर्शन की है। हमारा चिंतन सर्वसमावेशी है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं ‘एक्सक्लूजन‘ का विचार भारत का विचार नहीं है, इसलिए हमारे यहाॅं उसका कोई पर्यायवाची नहीं मिलता। सबके लिए नहीं, कुछ के लिए शिक्षा के विचार के आधार पर ही भारत में पाश्चात्य शिक्षा की बुनियाद खड़ी की गयी। सबके लिए शिक्षा और गुणवत्तायुक्त शिक्षा ही भारत के भाग्योदय का मूल आधार है। यह संकल्प तभी पूरा हो सकता है जब प्रत्येक छात्र की रुचि, आकांक्षा व आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा का नियोजन हो। इसलिए स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि व्यक्ति में अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति ही शिक्षा है। यूनेस्को द्वारा गठित अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1996) के प्रतिवेदन का नामांकन भी इसी आधार पर ‘लर्निंग द ट्रेजर विद इन‘ किया गया था। ज्ञान का खजाना बाहर नहीं बल्कि मनुष्य के अन्दर है। व्यक्ति में अन्तर्निहित अधिगम के इस अधिष्ठान के वाह्य प्रकटीकरण की योजना ही भारतीय शिक्षा का अभीष्ट होना चाहिए।

आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी भारतीय शिक्षा की संकल्पना के अनुरूप शिक्षा का नियोजन करने में हम असफल रहे हैं। व्यक्ति को मुक्त बनाने वाली शिक्षा स्वतः विषयों के बन्धन से बुरी तरह आबद्ध है। यह शिक्षा छात्र को अभियांत्रिकी के साथ संगीत तथा दर्शन के साथ विज्ञान पढ़ने की स्वतंत्रता नहीं देती है। यह शिक्षा की एक ऐसी योजना है जो छात्रों के अनुसार उसे विकसित होने के बजाय स्वयं के अनुसार उसे विकसित करती है। मनुष्य की दिव्यता को प्रकट करने का अवसर प्रदान करने वाली शिक्षा मनुष्य को संसाधन मान बैठी थी। इसलिए तो हमने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का गठन कर दिया था। मानव को संसाधन मानना मूल में ही भूल का प्रतिफल था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में इन भूलों को सुधारने का व्यवस्थित प्रयास किया गया है।

कोई भी देश नकल कर आगे नहीं बढ़ सकता है। आगे बढ़ने के लिए मौलिक होना आवश्यक है। मौलिकता के लिए नवीनता, सृजशीलता और स्वाभाविकता की अनिवार्यता होती है। स्व का बोध तथा उसका प्रकटीकरण ही स्वाभाविकता है, जिसकी पूर्ति स्वभाषा के ही माध्यम से संभव है। नई शिक्षा नीति में न केेवल स्वभाषा में शिक्षण पर बल दिया गया है बल्कि भारतीय भाषाओं के संरक्षण और सबर्द्धन हेतु प्रावधान किये गये हैं। शिक्षा में मौलिकता की कमी के पीछे भाषा का संकट एक बड़ा कारण रहा है। अधिकांश विद्यार्थी, जो ग्रामीण परिवेश से आते हैं, उनके सामने विषय को समझने के बजाय शिक्षण की भाषा और संस्कार को समझना एक बड़ी चुनौती होती है। अतः विषय की मौलिक समझ विदेशी भाषा के प्रभाव में तिरोहित हो जाती है। गाॅंधी जी कहते है कि विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा ने बच्चों के मस्तिष्क पर अनावश्यक जोर डालकर, उन्हें रट्टू और नकलची बना दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वे मौलिक कार्यों और विचारों के लिए सर्वथा अयोग्य हो जाते हैं।

आज जब कोविड-19 नामक वैश्विक महामारी से दुनिया संत्रस्त है। स्कूल और कालेज बंद हैं। परम्परागत शिक्षण का संचालन अभी सम्भव नहीं दिख रहा है। ऐसी स्थिति में तकनीकी का प्रयोग कर शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावशाली तथा युगानुकूल बनाने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव इस शिक्षा नीति में दिये गये हैं, जिसका प्रयोग कर शिक्षा को अधिकाधिक रूप में छात्र केन्द्रित बनाने का प्रयास किया गया है। शिक्षा को छात्रों के दरवाजे तक पहुॅंचाने हेतु सभी क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कन्टेट तैयार करने की योजना शिक्षा को समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सुझाव है। इसके पीछे मंशा यह है कि कोई भी छात्र किसी भी परिस्थिति में शिक्षा की पहुॅंच से दूर न हो सकें।

जब दुनिया में विश्वविद्यालय नहीं थे तब भारत में तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय थे। इन विश्वविद्यालयों में शिक्षा की व्यवस्था अत्यंत ही उदार और ‘लचीली‘ थी। भारत के गुरुकुल भी इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं, जहाॅं ज्ञान के साथ ही साथ कौशल की भी शिक्षा दी जाती थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उदार शिक्षा (लिवरल एजूकेशन) को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि ऐसी शिक्षा जो छात्रों को उनके व्यक्तित्व से जुड़े प्रत्येक आयाम को विकसित करने का प्रयास करती है अर्थात जो मनुष्य निर्माण की समेकित योजना के साथ स्वयं को प्रस्तुत करती हो, वही सही अर्थों में उदार शिक्षा है। नई शिक्षा नीति में उदार शिक्षा के इस विचार से 21वीं सदी में उभरते भारत के युवाओं को उनकी रुचि और दक्षता के अनुरूप रोजगार के अनेकानेक अवसरों का सृजन होगा। इसके सफल क्रियान्यवन के माध्यम से न केवल शिक्षित बेरोजगारी की समस्या का समाधान होगा, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के अभियान की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकता है।

हमारी शिक्षा व्यवस्था की एक बड़ी खामी यह भी रही है कि शिक्षा का निर्धारित पाठ्यक्रम समाप्त किये बिना, छात्र को उसे बाहर जाने की अनुमति नहीं थी। यदि परिस्थितिवश बाहर चला गया तो एक या दो वर्ष की पढ़ाई की सम्पूर्ण मेहनत उसकी बेकार हो जाती है। उसे बिना किसी प्रमाणपत्र के बाहर जाना होता है और शिक्षा का तंत्र इतना कठोर है कि बाहर जाने के पश्चात् पुनः आसानी या सुविधानुसार अन्दर आने का अवसर नहीं प्रदान करता है। इस अर्थ में शिक्षा का यह तंत्र एक प्रकार से छात्र विरोधी ही कहा जा सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इसे छात्र केन्द्रित बनाते हुए एक या दो वर्ष की पढ़ाई के आधार पर उसे सर्टिफिकेट व डिप्लोमा का प्रमाणपत्र देने की व्यवस्था की गयी है। छात्र को निर्धारित समयावधि के अन्दर वापस आकर अपनी डिग्री/पाठ्यक्रमों को पूरा करने की सुविधा देकर वास्तव में छात्र केन्द्रित शिक्षा के संकल्प को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम इस शिक्षा नीति में उठाया गया है। अतः शिक्षा नीति-2020 में समता, उत्कृष्टता, स्वतन्त्रता, समावेशी आदि मूल्यों का समावेश कर इसे आधिकाधिक रूप से छात्र केन्द्रित बनाकर शिक्षा को भारत के भाग्य निर्माण के सबल साधन के रूप में विकसित करने का प्रयास किया गया है।

(लेखक एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

Share:

Next Post

सांस्कृतिक पुनर्जागरण में संस्कृत की भूमिका

Mon Aug 3 , 2020
– गिरीश्वर मिश्र भारतीय प्रायद्वीप में संस्कृति के विकास की कथा की व्यापकता और गहनता का विश्व में कोई और उदाहरण नहीं मिलता न ही वैसी जिजीविषा का ही कोई प्रमाण मिलता है। नाना प्रकार के झंझावातों को सहते हुए भी यदि हजारों वर्ष बाद भी वह आज जीवित है तो यह उसकी आन्तरिक प्राणवत्ता […]