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Navratri History & Culture : पश्चिम बंगाल में अलग तरीके से मनाते हैं दुर्गा पूजा

कोलकाता (Kolkata)। हिंदू धर्म में नवरात्रि (Navratri 2023) का खास महत्व है। मां दुर्गा की उपासना के लिए साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है, इस साल शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) की शुरुआत 15 अक्तूबर 2023, रविवार से हो रही है। मां दुर्गा को समर्पित यह पर्व 15 अक्तूबर से शुरू होकर 23 अक्तूबर 2023, मंगलवार तक चलेगा। वहीं 24 अक्टूबर को विजयादशमी यानी दशहरा का पर्व मनाया जाएगा।

शारदीय नवरात्रि का या महापर्व हिंदू धर्म के बड़े त्योहारों में से एक माना जाता है। नवरात्रि के इन 9 दिन देवी दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरुपों की विधि-विधान के पूजा की जाती है।

वैसे भी सनातन धर्म में दुर्गा पूजा का खास महत्व होता है। भारत के सभी राज्यों में अलग-अलग तरीके से नवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है. कहीं गरबा खेला जाता है तो कहीं दुर्गा पूजा की जाती है. नवरात्रि के अंतिम 4 दिन पश्चिम बंगाल में बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं. इन चार दिनों के दौरान बंगाल महिलाएं पारंपरिक साड़ी भी पहनती हैं. साथ ही ढाक की धुन पर एक प्रकार का नृत्य किया जाता है, जिसे धुनुची कहते हैं. साथ ही पश्चिम बंगाल में जगह-जगह पर भव्य पंडाल भी लगते हैं. देवी दुर्गा को विभिन्न पकवानों का भोग लगाया जाता है और कई अन्य कार्यक्रमों भी आयोजित किए जाते हैं।

बंगाल की दुर्गा पूजा
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का पर्व बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है. यहां पर बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं और मां दुर्गा की पूरे विधि विधान से पूजा-आरती की जाती है. बंगाल की दुर्गा पूजा देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं. बंगाल में दुर्गा पूजा पर कई तरह के तरह के भोग बनाए जाते हैं. पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा नवरात्रि के छठें दिन से शुरू होता है और नवरात्रि के दसवें दिन तक चलता है. बंगाली हिंदुओं के लिए दुर्गा और काली की आराधना सबसे बड़ा उत्सव है. पश्चिम बंगाल का दशहरा भी सबसे अलग होता है.

नवरात्रि और दुर्गापूजा नाम चाहे जो पुकारें लेकिन इन 9 दिनों में जो चहल-पहल और रौनक देश भर में दिखाई देती है वह माहौल और मन को भक्तिमय बना देती है। इन सबमें सबसे ज्यादा आकर्षक और खूबसूरत परंपरा जहां नजर आती है वह है पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा. … आंखों के सामने नजर आने लगते हैं भव्य पंडाल, पूजा की पवित्रता, रंगों की छटा, तेजस्वी चेहरों वाली देवियां, सिंदूर खेला, धुनुची नृत्य और भी बहुत कुछ ऐसा दिव्य और अलौकिक जो शब्दों में न बांधा जा सके।

पंडालों की भव्य और विशेष छटा कोलकाता और समूचे पश्चिम बंगाल को नवरात्रि के दौरान खास बनाते हैं। इस त्योहार के दौरान यहां का पूरा माहौल शक्ति की देवी दुर्गा के रंग में रंग जाता है। बंगाली हिंदुओं के लिए दुर्गा पूजा से बड़ा कोई उत्सव नहीं है।

देवी की प्रतिमा: कोलकाता में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरुप को पूजा जाता है। दुर्गा पूजा पंडालों में दुर्गा की प्रतिमा महिसासुर का वध करते हुए बनाई जाती है। दुर्गा के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी बनाई जाती हैं। इस पूरी प्रस्तुति को चाला कहा जाता है। देवी त्रिशूल को पकड़े हुए होती हैं और उनके चरणों में महिषासुर नाम का असुर होता है।

देवी के पीछे उनका वाहन शेर भी होता है। इसके साथ ही दाईं ओर होती हैं सरस्वती और कार्तिका, और बाईं ओर लक्ष्मी गणेश होते हैं। साथ ही छाल पर शिव की प्रतिमा या तस्वीर भी होती है।

चोखूदान: कोलकाता में दुर्गा पूजा के लिए चली आ रही परंपराओं में चोखूदान सबसे पुरानी परंपरा है। ‘चोखूदान’ के दौरान दुर्गा की आंखों को चढ़ावा दिया जाता है। ‘चाला’ बनाने में 3 से 4 महीने का समय लगता है। इसमें दुर्गा की आंखों को अंत में बनाया जाता है.

अष्टमी का महत्व: कोलकाता में अष्टमी के दिन अष्टमी पुष्पांजलि का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग दुर्गा को फूल अर्पित करते हैं। इसे मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करना कहा जाता है। बंगाली चाहे किसी भी कोने में रहे, पर अष्टमी के दिन सुबह-सुबह उठ कर दुर्गा को फूल जरूर अर्पित करते हैं।

दो पूजा: कोलकाता में दुर्गा का त्योहार केवल पंडालों तक ही सीमित नहीं है। यहां लोग दो तरह की दुर्गा पूजा करते हैं। दो अलग-अलग दुर्गा पूजा से अर्थ है एक जो बहुत बड़े स्तर पर दुर्गा पूजा मनाई जाती है, जिसे पारा कहा जाता है और दूसरा बारिर जो घर में मनाई जाती है। पारा का आयोजन पंडालों और बड़े-बड़े सामुदायिक केंद्रों में किया जाता है। वहीं दूसरा बारिर का आयोजन कोलकाता के उत्तर और दक्षिण के क्षेत्रों में किया जाता है।



कुमारी पूजा: कोलकाता में संपूर्ण पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है इन रूपों में सबसे प्रसिद्ध रूप है- कुमारी. इस दौरान देवी के सामने कुमारी की पूजा की जाती है। यह देवी की पूजा का सबसे शुद्ध और पवित्र रूप माना जाता है। देवी के इस रूप की पूजा के लिए 1 से 16 वर्ष की लड़कियों का चयन किया जाता है और उनकी पूजा आरती की जाती है।

संध्या आरती: संध्या आरती का इस दौरान खास महत्व है। कोलकाता में संध्या आरती की रौनक इतनी चमकदार और खूबसूरत होती है कि लोग इसे देखने दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। बंगाली पारंपरिक परिधानों में सजे-धजे लोग इस पूजा की भव्यता और सुंदरता और बढ़ा देते हैं। चारों ओर उत्सव का माहौल समां बांध देता है। संध्या आरती नौ दिनों तक चलने वाले त्योहार के दौरान रोज शाम को की जाती है। संगीत, शंख, ढोल, नगाड़ों, घंटियों और नाच-गाने के बीच संध्या आरती की रस्म पूरी की जाती है।

सिंदूर खेला: दशमी के दिन पूजा के आखिरी दिन महिलाएं सिंदूर खेला खेलती हैं। इसमें वह एक-दूसरे पर सिंदूर से एक दूसरे को रंग लगाती हैं। और इसी के साथ अंत होता है इस पूरे उत्सव का, जिसकी तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती हैं।

धुनुची नृत्य : धुनुची नृत्य असल में शक्ति नृत्य है। बंगाल पूजा परंपरा में यह नृत्य मां भवानी की शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है। धुनुची में नारियल की जटा व रेशे (कोकोनट कॉयर) और हवन सामग्री (धुनी) रखी जाता है। उसी से मां की आरती की जाती है। धुनुची नृत्य सप्तमी से शुरू होता है और अष्टमी और नवमी तक चलता है।

विजय दशमी: नवरात्रि त्योहार का आखिरी दिन दशमी होता है। इस दिन बंगाल की सड़कों में हर तरफ केवल भीड़ ही भीड़ दिखती है इस दिन यहां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, और इस तरह दुर्गा अपने परिवार के पास वापस लौट जाती हैं। इस दिन पूजा करने वाले सभी लोग एक दूसरे के घर जाते हैं। शुभकामनाएं और मिठाई देते हैं।

बंगाल का सच्चा और पवित्र सौंदर्य देखना है तो इन 9 दिनों में कोलकाता अवश्य जाना चाहिए। जैसे गुजरात में गरबा की चमक-दमक होती है वैसे ही पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की चहल-पहल देखते ही बनती है।

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