ब्‍लॉगर

महामारी से ज्यादा घातक है नकारात्मक खबरें, राजनीति और हंगामें

 

रमेश शर्मा

हमारा देश ही नहीं अपितु पूरी दुनियाँ एक महासंकट के दौर से गुजर रही है । संकट केवल कोरोना की महामारी से पीड़ितों की सेवा, सुरक्षा और स्वाथ्य सहायता तक ही सीमित नहीं है अपितु इससे निबटने के लिये लगाये गये लाक डाउन ने पूरी दुनियाँ की अर्थ व्यवस्था को चौपट कर दिया है । इससे उबरने के लिये एकजुटता की है, एक स्वर संकल्प लेकर साथ चलने की है । इसके लिये आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक मानसिक तौर पर तैयार रहे, शाँत और सकारात्मक चित्त से एक जुट हो । कुछ अपवादों को छोड़ कर पूरी दुनियाँ के लोग ऐसा कर रहे हैं । इस संघर्ष में सब एकजुट हैं, सत्ता और विपक्ष का भेद नहीं दीख रहा । लेकिन भारत में इसका उल्टा है । भारत में विपक्ष जहाँ कोरोना की बीमारी को हथियार बनाकर सत्ता पर नित नये हमले कर रहा वहीं समाज में हंगामा और डराने वाली खबरों की मानों बाढ़ आ गई है । सोशल मीडिया पर ऐसी खबरों का मानों अंबार लगा है । कुछ खबरें यदि चिन्दी का साँप बनाई जा रहीं हैं तो कुछ खबरे एकदम सफेद झूठ होती हैं । ये खबरें मानसिक तनाव बढ़ा रहीं है । एक असमंजस की मानसिकता बना रही है । संकट का समाधान सदैव एकजुटता और संकल्प से होता है ।

यह संकट किसी व्यक्ति सरकार या राजनैतिक दल का नहीं है अपितु राष्ट्र का संकट है, समाज का संकट है इससे मुकाबले केलिये व्यक्ति समाज और राष्ट्र को एक जुट होना होगा, सकारात्मक संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा । एक संघर्ष किसी एक दिशा या एक मोर्चे पर नहीं अपितु अनेक दिशाओं एक साथ आगे बढ़ने की जरूरत है । कोरोना केवल डाक्टर या दवाई से नहीं हारेगा अपितु उसे अकेला करके खत्म करना होगा । इसकी शुरुआत घर से होगी । घर में रहने, सोचने चलने और भोजन के तरीके से होगी । इसके लिये जागरुक नागरिकों, स्वयं सेवी सामाजिक संगठनों और राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओं को एक जुट होकर सामने आना होगा । सोशल मीडिया पर भी सकारात्मक अनुभवों, सेवा प्रकल्पों का विवरण होना चाहिए । लेकिन भारत में इसके विपरीत हो रहा है । सकारात्मक एकजुटता की बजाय डराने वाली नकारात्मक खबरों, हंगामें की खबरों की बाढ़ आ गयी और कुछ राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता कोरोना को एक राजनैतिक हथियार बनानेकी रोज नयी तरकीव अपना रहे हैं । कोई अस्पताल में हंगामें करता है, तोड़फोड़ करता है तो कोई डाक्टर से मारपीट, कोई पुलिस से उलझ रहा है तो कोई आक्सीजन सिलेंडर लूट रहा है । भला कोरोना इससे भागेगा ?

इंसान का दिमाग बहुत संवेदनशील होता है । कान में जो स्वर पड़ते हैं, स्पर्श से जो अनुभूति होती है या जो दृश्य आँखे देखतीं है उसकी कल्पना मस्तिष्क में होने लगतीं हैं । एक चित्र सा बनने लगता है । चेतन मस्तिष्क में आकार ले रहा यह चित्र यदि अवचेतन मस्तिष्क में चला जाये तो वह वास्तविक आकार भी लेने लगता है । यह केवल मनोवैज्ञानिकों की कल्पना भर नहीं अपितु इस पर वैज्ञानिक अनुसंधान भी हो चुके हैं । कोरोना एक महा संकट है अभूतपूर्व है लेकिन इसकी भयावहता की जितनी खबरें फैलेंगी तो इसकी विकरालता और बढ़ेगी । कुछ मीडिया चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया पर भयावहता से भरी खबरों का मानो अभियान चल रहा है । यह उनकी टीआरपी के लिये आवश्यक हो सकता है लेकिन इससे जन मानस पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसकी कल्पना किसी को नहीं है ।अब यह केवल संयोग है या ऐसा किसी योजना से बनाया जा रहा है जो भी हो इससे इस बनने वाले मनोभाव इसके परिणाम को और भी घातक बनायेगा ।

कोरोना से निपटने के लिए आज समाज में तीन प्रकार के अभियान चलाने की आवश्यकता है । सबसे पहला तो यह कि प्रत्येक व्यक्ति का सोच शाँत और सकारात्मक हो । लाक डाउन में लोग घरों में बंद हैं । इस परिस्थिति ने परिवारों को एकाकी बना दिया है । यह एकाकी वातावरण स्वभाव में एक विशेष प्रकार की उत्तेजना लाता है । यह उत्तेजना उसे चिड़चिड़ा और आक्रामक बनाती है । व्यक्ति छोटी छोटी बातों पर बड़ी प्रतिक्रिया देने लगता है जिससे परिवारों में कलह होंने की आशंका बढ़ गयी है । इसके लिये आवश्यक है कि घरों के भीतर हंसने हंसाने वाली बातें और मानसिक एकाग्रता वाले शारीरिक श्रम और पढ़ने पढ़ाने का काम हाथ में लेना चाहिए । ताकि घरों में हंसीं खुशी का वातावरण बने लोगों में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हो जिससे इस लाक डाउन में होने वाले नुक्सान की भरपाई हो सके ।

दूसरा महत्वपूर्ण अभियान भोजन के चयन का है । एक तो हमारा बाहर चलना निकलना कम होता है, उस पर कोरोना के हमले के साथ मौसम के बदलाव के दिन । इसमें यदि भोजन पर ध्यान न दिया गया तो बीमारियां आयेंगी ही । महामारी के भयानक आक्रमण के इस दौर में समाज को उनकी रुचि और बाजार के मुनाफा गणित पर नहीं छोड़ा जा सकता है । मौसम के परिवर्तन रा शरीर की कतिपय आतंरिक विसंगतियों के कारण कुछ बीमारियाँ उत्पन्न हो सकतीं हैं लेकिन यदि खानपान या दिनचर्या में कुछ लापरवाही हुई तो वह घातक भी हो सकती है । किसी भी बीमारी से लड़ने केलिये प्रकृति ने शरीर को सक्षम बनाया है वह तभी असफल होता जब या तो हमला बड़ा हो या हुये हमले से सामना करने की क्षमता शरीर में न हो । इन दोनों बातों का समाधान भजन चयन और दिनचर्या में होता है । आज इसकी जाग्रति की आवश्यकता है ।


और तीसरा अभियान कोरोना वैक्सीन लगवाने का । निसंदेह कोरोना वैक्सीन लगवाने में भारत का औसत विश्व के किसी भी देश से आगे है फिर भी अभी दो चरणों के अभियान में हम अपने निर्धारित लक्ष्य में पीछे हैं । तीसरा अभियान अब शुरू होने वाला है । समाज को यह संकल्प दिलाने की जरूरत है कि व्यक्ति स्वयं भी टीका लगवाये और दूसरों को भी प्रेरित करें ।

इसके साथ उन राजनैतिक दलों को भी विचार करना चाहिए कि राजनीति की बहुत अवसर हैं । जो समाज और राष्ट्र हित या संकट के विषय हैं उन्हे राजनीति से अलग रखना चाहिए । पिछले कुछ वर्षों से कुछ राजनैतिक दलों और कुछ मीडिया मित्रों के काम करने की एक शैली हो गयी है । विषय कोई भी हो पर हमला सीधा सरकार पर बोलना । राज्यों में विभिन्न राजनैतिक दलों की सरकारें हैं । सब अपना काम कर रहीं हैं । केन्द्र सरकार भी अपनी क्षमता और साधनों के अनुरूप काम कर रही है । यदि आक्सीजन की कमी हो रही है या रेमडिसीवर इंजेक्शन की कमी है तो यह किसी राजनैतिक दल, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के घर में नहीं रखे हैं । ये फैक्ट्री में बनते हैं इनकी सप्लाई की व्यवस्था जरूरी है ।

इस व्यवस्था के लिये राजनैतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों को सरकार पर हमला बोलने की बजाये इसकी निगरानी करनी चाहिए । न कि सरकार पर हमला बोलने का काम करना चाहिए ।इससे एक तो सरकार का ध्यान बटता है । काम की गति कमजोर पड़ती है । और दूसरे कुछ लोग यदि योजना से कुछ गतिरोध उत्पन्न कर रहे हैं उन्हे प्रोत्साहन मिलेगा । नकारात्मक प्रचार और हमलों से उन लोगों का मनोबल टूटेगा जो लोग अपने जीवन को दांव पर लगाकर काम कर रहे हैं ।

आज यदि साल भर बाद कोरोना एक प्रलय जैसे स्वरूप में आ खड़ा हुआ है यह लोगों की लापरवाही है, सरकार और कुछ सामाजिक संगठन समाज को समझा रहे हैं, पुलिस को भय भी दिखा रही है उसके बाद भी लोग लापरवाही करना बंद न कर रहे । मास्क लगाना, दो मीटर की दूरी रखना हाथ पैर धोकर घर में घुसना, वेक्सीन लगवाना और सेनेटाइजर का उपयोग आदि वे बातें हैं जिनसे कोरोना अकेला पड़ेगा । इसलिए आवश्यक है कि नकारात्मक बातें की करने के बजाये अस्पतालों में हंगामा करने की बजाय, आरोपों की राजनीति करने के बजाये लोगों की सहायता के लिये आगे आयें उन्हे समझायें और मनोबल बढ़ाये । तब कोरोना हरेगा ।

 

लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं

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