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नेपाल संकटः बच गए केपी शर्मा ओली, पीछे हटे प्रचंड

काठमांडू। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली  की कुर्सी फिलहाल सुरक्षित नज़र आ रही है। नेपाल की मीडिया के मुताबिक नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में टूट का खतरा फ़िलहाल टल गया है, साथ ही चीन के दखल के बाद अब पार्टी के सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग को फिलहाल छोड़ने का फैसला किया है। ओली और प्रचंड रविवार को आपसी समझौते के लिए राजी हो गए हैं। माना जा रहा है कि समझौते में राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी की भूमिका अहम रही, साथ ही चीन के बाहरी दबाव ने भी काम किया है।
इससे पहले नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी स्थायी समिति की अहम बैठक रविवार को सातवीं बार टाल दी थी। अब इसका कार्यक्रम मंगलवार के लिये निर्धारित किया गया है। इस बीच, पार्टी के शीर्ष नेताओं ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के बीच सत्ता साझीदारी पर बातचीत के प्रयास तेज कर दिए हैं। स्थायी समिति के सदस्य गणेश शाह ने बताया कि रविवार सुबह हुई एक अनौपचारिक बैठक के दौरान पार्टी के शीर्ष नेताओं ने मतभेदों को दूर करने के लिये और दो दिनों के लिए बैठक टालने का फैसला किया। काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, ओली और प्रचंड इस साल के अंत में पार्टी का आम सम्मेलन बुनाने की शर्त पर राजी हुए हैं। समझौते का मतलब साफ है कि प्रचंड अब प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे की अपनी मांग को छोड़ देंगे। प्रचंड की मांग की वजह से एनसीपी में आंतरिक गतिरोध के चलते टूट का खतरा मंडरा रहा था।
जानकारी के मुताबिक, नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यांकी की सक्रियता ने भी ओली के पक्ष में काम किया है। हाओ यांकी ने ओली, प्रचंड, राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी और एनसीपी के कई बड़े नेताओं से मीटिंग की थी। इसके अलावा देश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते संकट को ध्यान में रखते हुए भी प्रचंड धड़े में इस मामले को टाल देने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि प्रचंड ने ओली के इस्तीफे की मांग तब और तेज कर दी थी, जब उन्हें पार्टी के सीनियर लीडर माधव कुमार नेपाल और झाला नाथ खनल का समर्थन मिल गया था। सभी ओली से प्रधानमंत्री और पार्टी चेयर दोनों से इस्तीफा मांग रहे थे। स्टैंडिंग कमेटी के 44 में से 30 सदस्यों ने भी ओली के इस्तीफे की मांग की थी।
पार्टी की 45 सदस्यीय शक्तिशाली स्थायी समिति की बैठक सबसे पहले 24 जून को बुलाई गई थी, जिसके पहले प्रधानमंत्री ओली ने आरोप लगाया था कि पार्टी के कुछ नेता कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा, तीन भारतीय क्षेत्रों को देश के नए राजनीतिक नक्शे में शामिल करने के बाद उन्हें सत्ता से बाहर करने के लिए दक्षिणी पड़ोसी देश के साथ मिल गए हैं। प्रचंड के नेतृत्व वाले गुट ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वे लोग इस्तीफा मांग रहे हैं, न कि भारत मांग रहा है। उन्होंने ओली को अपने आरोप के समर्थन में सबूत दिखाने को भी कहा।
प्रचंड के आवास पर रविवार सुबह अनौपचारिक बैठक में वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल, झालानाथ खनल और बामदेव गौतम ने आम सभा की बैठक बुलाये जाने का विचार खारिज करते हुए कहा कि इस राष्ट्रीय संकट के समय में इसे कराया जाना संभव नहीं है। प्रधानमंत्री द्वारा संसद के बजट सत्र का सत्रावसान करने का एकतरफा फैसला किये जाने के बाद ओली नीत गुट और प्रचंड नीत गुट के बीच मतभेद बढ़ गये। प्रचंड को पिछले साल नवंबर में एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। ओली के साथ उनके एक समझौते के तहत ऐसा किया गया था लेकिन प्रचंड को पार्टी का नेतृत्व करने का शायद ही कोई मौका दिया गया। इस बारे में कुछ नेताओं का कहना है कि ओली के खिलाफ उनके द्वारा गुट बनाये जाने के कारणों में यह भी कारण शामिल है।

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