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अब भारत में ही बनाये जाएंगे लेजर हथियार

नई दिल्ली । भारत अब लेजर से हमला करने वाले हथियार बनाने की तैयारी कर रहा है। इन हथियारों को प्रत्यक्ष ऊर्जा हथियार (डायरेक्ट एनर्जी वेपन-डीईडब्ल्यू) कहा जाता है।इनके अलावा ऐसे हथियार भी बनाए जा रहे हैं जो माइक्रोवेव किरणें छोड़कर दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो सिस्टम, संचार सिस्टम आदि को नष्ट करने में सक्षम होंगे। युद्ध के दौरान संचार प्रणाली टूट जाने पर दुश्मन अपनी सेना को निर्देश न दे पाने की स्थिति में बेहद कमजोर हो जाता है और इसी का फायदा उठाकर उस पर हमला करने में आसानी होती है। इन हथियारों को बनाने में कितना समय लगेगा, यह तो नहीं पता चला है लेकिन इस प्रोजेक्ट को लक्ष्य निर्धारित करके पूरा किये जाने की योजना है।

दरअसल बदलते तकनीक के इस दौर में युद्ध के तरीके और इस्तेमाल होने वाले हथियार भी बदल रहे हैं। पुरानी पीढ़ी के बजाय अब दूर से हमला करने वाले हथियार विकसित हो रहे हैं। पिछले दो दशकों में इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर आधारित हथियारों का विकास हुआ है। अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों में लगी प्रणाली भी इलेक्ट्रॉनिक चिप या सॉफ्टवेयर आधारित होती है। इसलिए आने वाले समय में युद्ध के तौर-तरीके और आधुनिक होंगे, जिसमें अत्यधिक ऊर्जा वाले हथियारों का इस्तेमाल किया। जिस तरह हॉलीवुड की फिल्मों में हथियारों का इस्तेमाल दिखाया जाता है, अब उसी तरह के हथियार बनाने की भारत तैयारी कर रहा है। यह सब उसी परिकल्पना के आधार पर हो रहा है, जिसके तहत ‘आत्म निर्भर भारत’ बनाने का सपना देखा गया है। सैन्य बलों के प्रमुख सीडीएस बिपिन रावत ने भी देश के सैन्य उद्योग का स्वदेशीकरण करने और रक्षा गलियारों को आकार देने के लिए रक्षा सुधारों का समर्थन किया है।

डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) सूत्रों के अनुसार इन हथियारों को बनाने के लिए भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय स्तर का प्रोग्राम बनाया है। इसमें अलग-अलग तरह के प्रत्यक्ष ऊर्जा हथियार होंगे, जिनकी क्षमता 100 किलोवॉट पावर की होगी। यानी भविष्य में बनने वाले इन हथियारों के जरिये दुश्मन की किसी भी छोटी मिसाइल, फाइटर जेट या ड्रोन को आसमान में ही नष्ट किया जा सकेगा जिससे भारत पर हमला करने से पहले ही दुश्मन के पसीने छूट जाएंगे। इन हथियारों में हाई एनर्जी लेजर और हाई पावर माइक्रोवेव्स शामिल हैं। इन हथियारों को एक ही जगह पर तैनात करके कई किलोमीटर दूर तक हमला या बचाव किया जा सकता है। इससे निकलने वाली लेजर या इलेक्ट्रोमैग्निक किरणें, सब-एटॉमिक पार्टिकल्स या फिर माइक्रोवेव किरणें दुश्मन को सेकेंडों में चित कर देंगी। इनके निकलने से लेकर हिट करने तक कोई आवाज या धमाका नहीं होता, इसलिए दुश्मन को इनके हमले का पता नहीं चलता।

भारतीय सेना को एक मिसाइल नष्ट करने के लिए कम से कम 500 किलोवॉट का लेजर हथियार चाहिए। डीआरडीओ ने भविष्य की जरूरतों को देखते हुए अगले 10 साल की योजना तैयार की है। पहले चरण में 6-8 किलोमीटर तक की रेंज के और फिर दूसरे चरण में 20 किलोमीटर तक हमला करने वाले हथियार बनाये जाने की तैयारी है। भारतीय सेनाओं को पहले चरण में 20 हाई पावर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेपन सिस्टम की जरूरत होगी जो 6-8 किलोमीटर रेंज के होंगे। दूसरे चरण में 20 किलोमीटर रेंज वाले हाई पावर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेपन सिस्टम बनेंगे। इन हथियारों से दुश्मन का बचना इसलिए मुश्किल होता है क्योंकि इनका निशाना बेहद सटीक होता है। इन लेजर हथियार से एक साथ कई लक्ष्यों को अकेले संभाला जा सकता है। विद्युत आपूर्ति सही मिलने पर इसे कई बार उपयोग किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि इन हथियारों के निर्माण में ज्यादा लागत आती है बल्कि जानकार बताते हैं कि काफी किफायती लागत में इन्हें ऑपरेशनल किया जा सकता है।

डीआरडीओ ने इस प्रोजेक्ट को ‘काली’ बीम नाम दिया है क्योंकि लेजर बीम हमले में न किसी भी तरह की आवाज नहीं होती है। यह किरणें चुपचाप अपने टारगेट को भेदकर उसे जलाकर राख कर देती हैं। पिछले दिनों भारत ने दो एंटी ड्रोन सिस्टम बनाए हैं जिन्हें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण के दौरान तैनात किया गया था। इनकी टारगेट रेंज एक से दो किलोमीटर है। हालांकि यह स्वदेशी हथियार अमेरिका, रूस, चीन, जर्मनी, इजरायल की तुलना में अभी बेहद छोटे हैं लेकिन इनकी मदद से एक से ज्यादा ड्रोन, वाहन या नावों को नष्ट किया जा सकता है। एजेंसी/(हि.स.)

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