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Hiroshima Day: देखते ही देखते हिरोशिमा को ‘लिटिल बॉय’ ने कर दिया था राख का ढेर

नई दिल्ली । 77 साल पहले आज ही के दिन यानि 6 अगस्‍त 1945 को अमेरिका (America) ने जापान (Japan) के हिरोशिमा शहर (Hiroshima City) पर परमाणु हमला कर दिया था। हिरोशिमा (Hiroshima City) पर एक ऐसा जोरदार धमाका हुआ कि देखते ही देखते एक मिनट में ‘लिटिल बॉय’ (little boy) ने राख के ढेर में तब्‍दील कर दिया था।

बता दें कि जापान 6 अगस्त को अपने दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम हमले की वर्षगांठ मना रहा है। 6 अगस्त 1945 को ही सुबह करीब 8 बजे हिरोशिमा पर परमाणु बम का हमला हुआ। ये हमला इतना जबरदस्त था कि इसकी वजह से कुछ ही पल में 80 हजार से ज्यादा लोगों को मौत हुई थी।

हिरोशिमा में हुए परमाणु बम हमले से जापान उबरा भी नहीं था कि तीन दिन बाद 9 अगस्त को दूसरे शहर नागासाकी में दूसरा परमाणु बम हमला हो गया। इस दिन सुबह के करीब 11 बजे शहर के उपर परमाणु बम गिराया गया। इस हमले में 40 हजार से ज्यादा लोगों की जानें चली गई थी। विस्फोट के बाद रेडियोएक्टिव विकिरण के संपर्क में आने और विस्फोटों के बाद हुई ‘काली बारिश’ से भी दोनों शहरों में हज़ारों लोगों की मौत हो गई थी। वैज्ञानिक तो आज भी इसका आसर बताते हैं।



लिटिल ब्वॉय बम से किया था हमला
अमेरिकी वायु सेना ने 6 अगस्त की सुबह जिस परमाणु बम को शहर के उपर गिराया था उसका नाम था लिटिल ब्वॉय जबकि नागासाकी के उपर जिस परमाणु बम को गिराया था उसका नाम दिया था फैट मैन। हिरोशिमा में सुबह के करीब 8.15 बजे गिराया गए परमाणु बम से ऐसा धमाका हुआ था कि 43 सेकेंड के भीतर ही शहर का 80 फीसदी हिस्सा राख बनकर हवा में उड़ गया था। हिरोशिमा पर किया गया परमाणु हमला दरअसल 1941 को अमेरिका के नौसैनिक बेस पर्ल हार्बर पर किए गए जापानी सेना के द्वारा हमले का बदला था।
हाल ही में हिरोशिमा की एक जिलला अदालत ने परमाणु विस्फोट के बाद हुई ‘काली बारिश’ से जीवित बचे 84 लोगों को पीड़ितों के रूप में मान्यता दे दी है। अब ये सभी लोग परमाणु विस्फोट के पीड़ितों के रूप में उपलब्ध निःशुल्क चिकित्सीय सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।

‘काली बारिश’ क्या है?
इस परमाणु हमले से नष्ट हुई इमारतों का मलबा और कालिख, बम से निकले रेडियोधर्मी पदार्थ के साथ मिलकर वातावरण में एक मशरूम रूपी बादल के रूप में प्रकट हुआ था। ये पदार्थ वायुमंडल में वाष्प के साथ संयुक्त हो गए जिसके बाद काले रंग की बूंदें धरती पर गिरने लगी जिसे ‘काली बारिश’ कहा गया।

‘काली बारिश’ से बचे लोगों ने इसे बारिश की बड़ी-बड़ी बूंदों के रूप में वर्णित किया जो सामान्य बारिश की बूंदों की तुलना में बहुत भारी थी। इस घटना में जीवित बचे लोगों के अनुसार, घटना के शिकार हुए बहुत से लोगों के शरीर की खाल जल गई और लोग गंभीर रूप से निर्जलित (Dehydrated) हो गए।

काली बारिश का क्या हुआ था प्रभाव?
काली बारिश, अत्यधिक रेडियोधर्मी पदार्थ से युक्त थी, इस संबंध में हुए अध्ययनों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस बारिश के संपर्क में आने से कई प्रकार की गंभीर बीमारियां हो गईं थीं। वर्ष 1945 में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि ग्राउंड जीरो से तकरीबन 29 किलोमीटर के क्षेत्र में काली बारिश हुई। इस बारिश ने अपने संपर्क में आने वाली सभी चीजों को दूषित कर दिया।

काली बारिश ने कई लोगों में विकिरण के तीव्र लक्षण (Acute Radiation Symptoms-ARS) उत्पन्न किए। कुछ लोग कैंसर से ग्रस्त हो गए तो कुछ लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। शहर की जमीन और पानी भी विकिरण से दूषित हो गया था।

नागासाकी पर गिराया गया बम ज्यादा शक्तिशाली था
नागासाकी पर गिराया गया बम हिरोशिमा पर गिराए गए बम से अधिक शक्तिशाली था, लेकिन इससे कम लोगों की मौत हुई और शहर की भौगोलिक स्थिति के कारण इसका प्रभाव एक छोटे से क्षेत्र तक ही सीमित रहा। इसका मतलब यह था कि हिरोशिमा की तुलना में नागासाकी में काली बारिश के लिए आवश्यक रेडियोएक्टिव सामग्री कम थी, यही कारण था कि यहां अपेक्षाकृत छोटे से क्षेत्र में ही बारिश सीमित थी।

परमाणु हमले के लिए जापान को ही क्यों चुना गया?
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान जर्मनी का साथ दे रहा था। जर्मनी ने मई 1945 में ही समर्पण कर दिया था। जुलाई 1945 में अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन युद्ध के बाद की स्थिति पर विचार करने के लिए जर्मनी के शहर पोट्सडम में मिले, इसका एक कारण यह था कि अभी तक प्रशांत क्षेत्र में युद्ध समाप्त नहीं हुआ था। जापान अभी भी मित्र देशों के सामने समर्पण करने के लिए तैयार नहीं था।

पोट्सडम में ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन को यह जानकारी मिली कि न्यू मेक्सिको में परमाणु बम का परीक्षण सफल रहा है। पोट्सडम में ही ट्रूमैन और चर्चिल के बीच इस बात पर सहमति बनी कि यदि जापान तत्काल बिना किसी शर्त के समर्पण करने के लिये तैयार नहीं होता तो उसके खिलाफ परमाणु बम का इस्तेमाल किया जाएगा।

जापान के समर्पण नहीं करने के कारण एक अगस्त 1945 को जापान के शहर हिरोशिमा पर परमाणु हमले की तारीख तय की गई। लेकिन तूफान के कारण इस दिन हमले को रोकना पड़ा, इसके पांच दिन बाद यह हमला किया गया।

हिरोशिमा के बाद नागासाकी पर हमला क्यों किया गया?
हिरोशिमा पर हुए हमले के बावजूद जापान समर्पण के लिए तैयार नहीं हुआ। इसलिए तीन दिन बाद अमेरिका ने नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया। पहले हमले के लिये क्योटो को चुना गया था, लेकिन अमेरिकी रक्षा मंत्री की आपत्ति के बाद नागासाकी शहर को चुना गया। फैट मैन नामक बम 22,000 टन टीएनटी की शक्ति के साथ नागासाकी पर गिराया गया।

नागासाकी पर परमाणु हमले के एक दिन बाद जापान के सम्राट हीरोहीतो ने अपने कमांडरों को देश की संप्रभुता की रक्षा की शर्त पर मित्र देशों की सेना के सामने समर्पण करने का आदेश दे दिया। मित्र देशों ने शर्त मानने से इंकार कर दिया और हमले जारी रखे। उसके बाद 14 अगस्त को एक रेडियो भाषण में सम्राट हीरोहीतो ने प्रतिद्वंद्वियों के पास ‘अमानवीय’ हथियार होने की दलील देकर बिना किसी शर्त के ही समर्पण करने की घोषणा कर दी।

परमाणु शक्ति के विकास का दौर
अगस्त 1945 में हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद से ही परमाणु शक्ति संपन्न बनना यानी परमाणु क्लब का सदस्य बनना किसी भी देश के लिए ताकतवर होने का सूचक बन गया।

16 जुलाई 1945: अमरीका ने न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान के अलामागोर्दो नामक जगह में पहले परमाणु बम का विस्फोट किया। ‘ट्रिनिटी टेस्ट’ कहे जाने वाले इस परीक्षण से हाइड्रोजन बमों की ताकत की पुष्टि हुई। तीन सप्ताह बाद हिरोशिमा और नगासाकी पर ये बम गिराए गए।
1949: सोवियत संघ ने भी अपने पहले परमाणु बम का विस्फोट किया और इसी के साथ रूस और अमरीका के बीच परमाणु होड़ की शुरुआत हुई।
1952: प्रशांत महासागर में क्रिसमस द्वीप के ऊपर परमाणु बम फोड़ कर ब्रिटेन ने परमाणु क्लब के दरवाजे पर दस्तक दी। द्वीप पर मौजूद अनेक ब्रितानी सैनिकों ने आरोप लगाया कि उन्हें रक्षात्मक पोशाक नहीं दी गई थी और इसलिए परमाणु विकिरण से उनका स्वास्थ्य प्रभावित हुआ।
1954: अमरीका ने प्रशांत महासागर में मार्शल द्वीप के पास एक बड़ा परमाणु परीक्षण किया। ब्रेवो नामक इस परीक्षण में 15 मेगाटन का बम फोड़ा गया। इसका असर जापान पर पड़ा जिसे अमरीका ने बाद में हर्जाने के रूप में डेढ़ करोड़ डॉलर दिए।
1957: अमरीका ने लास वेगास से 100 मील दूर एक पहाड़ी सुरंग में अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया।
1960: फ्रांस ने प्रशांत महासागर के टुआमोतो द्वीप समूह में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया।
1962: क्यूबाई मिसाइल संकट के इस वर्ष में सर्वाधिक परमाणु परीक्षण हुए, यानी कोई 200 के करीब इनमें से 95 प्रतिशत अमरीका और रूस ने किए।
1963: अमरीका और सोवियत संघ ने लिमिटेड टेस्ट बैन ट्रीटी नामक एक संधि पर हस्ताक्षर किए। इसमें खुले वातावरण में या समुद्र में परमाणु परीक्षणों की मनाही है। अब तक 100 से ज्यादा देश संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
1964: चीन ने अपने सिंक्यांग प्रांत के लोप नॉर रेगिस्तान में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया।
1966: परमाणु हथियार ले जा रहे दो अमरीकी विमान स्पेन में पालोमेअर्स के ऊपर टकराए। अमरीका को ज़ुर्माने में 18 करोड़ डॉलर से ज्यादा भरने पड़े।
1974: भारत ने पहला भूमिगत सर्वेक्षण किया।
1985: सोवियत संघ ने परमाणु परीक्षणों पर रोक की घोषणा की।
1992: अमरीका ने अपना अंतिम परमाणु परीक्षण किया। डिवाइडर नामक परीक्षण नेवादा रेगिस्तान के एक भूमिगत बंकर में किया गया।
1995: अंतरराष्ट्रीय निंदा के बावजूद फ्रांस ने प्रशांत महासागर में मुरुरोआ में परीक्षण किए।
1996: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि (सीटीबीटी) को मंजूरी दी। सिर्फ भारत ने इसका विरोध किया।
अप्रैल 1998: ब्रिटेन और फ्रांस ने सीटीबीटी की पुष्टि कर दी। अमरीका, रूस और चीन ने संधि पर हस्ताक्षर तो किए लेकिन पुष्टि नहीं की।
मई 1998: भारत ने राजस्थान में पोखरन में पांच परमाणु बम का परीक्षण किया। पाकिस्तान ने भी कुछ ही दिन बाद चगाई पहाड़ियों में तीन भूमिगत परमाणु परीक्षण किए।
भविष्य: ईरान और उत्तर कोरिया पर परमाणु कार्यक्रम चलाने का संदेह किया जाता है। इराक को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा था, लेकिन अमरीका और ब्रिटेन के हमले के बाद वहां कोई सबूत नहीं मिला है। इस्राइल के पास 100 के करीब परमाणु हथियार होने की बात की जाती है, हालांकि उसने कोई परीक्षण नहीं किया है।

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