नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के खतरे को देखते हुए स्कूल-कालेज बंद हैं और बच्चों के पास आनलाइन पढ़ाई (online study) ही एकमात्र विकल्प है। ऐसे में सभी बच्चों तक इसकी पहुंच न होने को लेकर शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education) से जुड़ी संसद की स्थाई समिति(Standing Committee of Parliament) ने गंभीर सवाल उठाए हैं। संसद की स्थाई समिति(Standing Committee of Parliament) का कहना है कि स्मार्ट फोन और इंटरनेट जैसी सुविधा अभी सिर्फ 30 फीसद बच्चों के पास है। ज्यादातर राज्यों में आनलाइन पढ़ाई इसके जरिये ही कराई जा रही है। ऐसे में बाकी के करीब 70 फीसद बच्चे इससे वंचित हैं।
फिलहाल संसद की स्थाई समिति(Standing Committee of Parliament) ने इस मामले में राज्यों को जवाबदेह माना है। साथ ही उत्तर प्रदेश, बंगाल सहित करीब आधा दर्जन राज्यों के शिक्षा सचिवों को तलब किया है। शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education) से जुड़ी संसद की स्थाई समिति ने इस संबंध में अहम बैठक शुक्रवार को रखी है। इसमें प्रसार भारती और इसरो के अधिकारियों को भी बुलाया है। समिति का मानना है कि कोरोना काल में सभी बच्चों को पढ़ाने के लिए राज्य कुछ और बेहतर कर सकते हैं। इस मामले में समिति ने गुजरात और ओडिशा में बच्चों को पढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे सेटेलाइट चैनल का उदाहरण दिया है। साथ ही सभी राज्यों से इसी तर्ज पर प्रयास करने का सुझाव दिया है।
सूत्रों के अनुसार, समिति इससे पहले सभी राज्यों को ऐसा करने का सुझाव दे भी चुकी है। हालांकि राज्यों ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। माना जा रहा है कि आनलाइन पढ़ाई में ढिलाई पर राज्यों से सवाल-जवाब भी किया जा सकता है। समिति का कहना है कि सालाना दो से ढाई करोड़ के खर्च में ही इन सेटेलाइट चैनलों को शुरू किया जा सकता है। समिति ने जिन प्रमुख राज्यों के शिक्षा सचिवों को तलब किया है, उनमें उत्तर प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं।
समिति से जुड़े एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि शुक्रवार को बुलाई गई बैठक में सेटेलाइट एजुकेशन चैनल को संचालित करने वाली एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारियों को भी बुलाया गया है। वे इस संबंध में प्रजेंटेशन देंगे। बैठक में समिति आनलाइन शिक्षा को लेकर शिक्षा मंत्रालय और राज्यों की ओर से उठाए गए कदमों की भी जानकारी लेगी, जिसमें वन क्लास-वन चैनल का प्रस्ताव भी शामिल है। Share: