नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न साबित करने के लिए पीड़िता को शारीरिक चोट लगना या शोर मचाना महत्वपूर्ण नहीं है। कोर्ट ने कहा, यह एक आम मिथक है कि यौन उत्पीड़न के बाद चोट लगना स्वाभाविक है। जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा, ऐसे मामलों में एक समान प्रतिक्रिया की उम्मीद करना यथार्थवादी और न्यायसंगत नहीं है।
पीठ ने कहा पीड़ित व्यक्ति आघात के प्रति विभिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया करते हैं जो डर, सदमे, सामाजिक कलंक या असहायता की भावनाओं जैसे कारकों से प्रभावित होते हैं। यौन उत्पीड़न से जुड़ा कलंक अक्सर महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण बाधाएं पैदा करता है, जिससे उनके लिए दूसरों के सामने घटना का खुलासा करना मुश्किल हो जाता है। पीठ ने लैंगिक रूढ़िवादिता पर सुप्रीम कोर्ट की हैंडबुक (2023) का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि अलग-अलग लोग दर्दनाक घटनाओं पर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं।
पीठ ने कहा हैंडबुक में एक उदाहरण दिया गया है कि माता-पिता की मृत्यु के कारण एक व्यक्ति सार्वजनिक रूप से रो सकता है, जबकि संभव है कि उसी स्थिति में दूसरा व्यक्ति सार्वजनिक रूप से कोई भावना प्रदर्शित न करे। इसी तरह, किसी पुरुष की ओर से यौन उत्पीड़न या दुष्कर्म किए जाने पर महिला की प्रतिक्रिया उसकी व्यक्तिगत विशेषताओं के आधार पर भिन्न हो सकती है। ऐसे में पीड़ित या पीड़िता की प्रतिक्रिया पता करने का कोई भी सही या उचित तरीका नहीं है। यह टिप्पणी करते हुए पीठ ने आरोपी को अपहरण के आरोप से भी बरी कर दिया।
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