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सावरकर के समर्थक के कंधे पर हाथ, लेकिन बयान से मचाया हंगामा, आखिर कैसी राजनीति कर रहे राहुल ?

नई दिल्‍ली । ‘भारत जोड़ो यात्रा’ (Bharat Jodo Yatra) के दौरान कांग्रेस (Congress) सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) पर दिए गए बयान (Statement) से हंगामा मच गया है। सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन में सहयोगी शिवसेना (उद्धव गुट) ने भी राहुल गांधी की टिप्पणी पर आपत्ति जताई है। वहीं, सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने भी राहुल के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी। दरअसल, यह कोई पहली बार नहीं है, जब राहुल ने सावरकर पर तीखा हमला बोलते हुए उन्हें अंग्रेजों से पेंशन लेने वाला बताया हो। इससे पहले भी कई बार आजादी की लड़ाई में सावरकर की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं, लेकिन राहुल की ताजा टिप्पणी को काफी अहम माना जा रहा है।

राहुल का यह बयान उस समय सामने आया है, जब पिछले कई दिनों से पार्टी का पूरा फोकस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे चुनावों से भी राहुल अब तक दूर ही रहे हैं। इस यात्रा के जरिए वे कथित तौर पर भारत को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसके चलते ही जब महाराष्ट्र में यात्रा प्रवेश किया, तब उद्धव ठाकरे के बेटे और राज्य के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे भी उनके साथ पैदल चलते दिखाई दिए। शिवसेना सावरकर का समर्थन करती रही है, जबकि राहुल कट्टर विरोधी रहे हैं। ऐसे में कुछ ही दिनों के भीतर राहुल की दो अलग-अलग छवि सामने आने की वजह से उनकी पॉलिटिक्स पर भी सवाल उठने लगे हैं।


सावरकर के समर्थक के कंधे पर हाथ, लेकिन…
महाराष्ट्र में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के प्रवेश के पहले कांग्रेस की राज्य यूनिट काफी उत्साहित थी। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने उद्धव ठाकरे से मुलाकात करके उन्हें यात्रा में शामिल होने के लिए न्योता भेजा था। यह खबरें थी कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी राहुल की यात्रा में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, खराब तबीयत की वजह से पवार की जगह एनसीपी से सुप्रिया सुले शामिल हुईं। वहीं, यात्रा में उद्धव तो नहीं आए, लेकिन आदित्य ठाकरे ने यात्रा में राहुल के साथ पैदल चलकर काफी सुर्खियां बटोरीं। राहुल गांधी इस दौरान आदित्य ठाकरे के कंधे पर हाथ रखे हुए दिखाई दिए, जबकि एक जगह उन्होंने आदित्य को गले तक लगा लिया।

इन तस्वीरों के सामने आने से लगने लगा कि राहुल सिर्फ यात्रा के जरिए देश की जनता को ही साथ लाने की कोशिश नहीं कर रहे, बल्कि वे उन राजनैतिक दलों को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो रहे हैं, जिनकी विचारधारा उनसे मेल नहीं खाती है। इन पार्टियों को राहुल महंगाई, बेरोजगारी, कथित नफरत आदि के मुद्दे पर एकसाथ लाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन अब महाराष्ट्र में ही यात्रा के दौरान सावरकर पर दिए गए बयान से राजनीतिक एक्सपर्ट्स भी कन्फ्यूज हो गए हैं। सवाल हो रहे हैं कि या तो राहुल गांधी और आदित्य ठाकरे की सामने आईं तस्वीरें महज एक फोटो ऑप थीं, या फिर राहुल अपनी पॉलिटिक्स को लेकर पूरी तरह से क्लियर हैं और वे किसी भी कीमत पर सावरकर के मुद्दे पर पीछे हटना नहीं चाहते, फिर चाहे उन्हें राजनैतिक रूप से नुकसान ही क्यों न हो जाए। शिवसेना नेता संजय राउत ने भी एमवीए में दरार पड़ने की संभावना जता दी।

गुजरात में कांग्रेस को न हो जाए चुनावी नुकसान!
ऐसे दौर में जब तमाम विपक्षी दल कोई भी बयान देने से पहले उसके नफे-नुकसान के बारे में कई बार सोचते हैं। ऐसे समय में जब भारतीय जनता पार्टी किसी भी छोटे से मुद्दे को उठाकर बड़े मंच से प्रहार करने से नहीं चूकती है, तो ऐसे वक्त में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सावरकर का मुद्दा उठाए जाने से कहा जा रहा है कि कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। सावरकर सिर्फ शिवसेना, बीजेपी जैसे दलों के ही नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों के भी हीरो हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना, बीजेपी उन्हें मराठी अस्मिता के रूप में भी देखती रही है। यही वजह है कि शिवसेना उन्हें भारत रत्न दिए जाने तक की मांग करती आई है।

बीजेपी भी सावरकर को समय-समय पर याद करती रही है। साल 2018 में अंडमान की यात्रा के दौरान खुद पीएम मोदी सेलुलर जेल पहुंचे थे, जहां पर ब्रिटिश काल के दौरान राजनीतिक बंदियों को रखा गया था। यहीं पर सावरकर ने भी जेल की सजा काटी थी। बीजेपी पिछले आठ सालों में सावरकर के समर्थकों में काफी इजाफा भी कर चुकी है। जमीन से लेकर सोशल मीडिया तक तमाम लोग सावरकर के समर्थक मिल जाएंगे। वहीं, जब गुजरात में मतदान होने वाले हैं, तब राहुल गांधी द्वारा सावरकर का मुद्दा उठाए जाने से माना जा रहा है कि इसका असर कांग्रेस के खिलाफ कहीं न हो जाए। वैसे भी पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार गुजरात में कांग्रेस का प्रचार उतना आक्रामक नहीं रहा है और खुद राहुल गांधी अब तक चुनाव प्रचार से लगभग दूर ही रहे हैं, जबकि पिछली बार राहुल ने प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और बीजेपी को एक टफ फाइट दी थी।

नई छवि गढ़ने का मौका चूक गए राहुल?
राहुल गांधी की अब तक राजनैतिक पारी को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे। कभी उन्हें नॉन सीरियस नेता कहा जाता रहा, तो कभी उनपर परिवारवाद के आरोप लगते रहे। हालांकि, वह खुद की इमेज पर डेंट लगाने के पीछे बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। ऐसे में जब कन्याकुमारी से कश्मीर तक की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत की गई, तब ऐसा लगा कि राहुल गांधी जनता के बीच अपनी छवि बदलना चाहते हैं। इसी वजह से यात्रा के शुरू होने के बाद से ही उनका पूरा फोकस भारत जोड़ो यात्रा पर ही रहा।

राजनैतिक एक्सपर्ट भी मानने लगे कि यदि राहुल यह यात्रा पूरी कर लेते हैं, तो उनकी जनता के बीच उनकी छवि बेहतर होगी, जिससे आने वाले सालों में कांग्रेस को फायदा मिलेगा। केरल, तेलंगाना आदि राज्यों में इस यात्रा में लोगों का भारी हुजूम भी उमड़ा, जिसके बाद उनकी यात्रा को काफी हद तक सफल कहा जाने लगा। लेकिन महाराष्ट्र में अचानक वीडी सावरकर पर बयान देकर राहुल गांधी ने फिर विवाद को जन्म दे दिया। राज्य में उनकी सहयोगी शिवसेना तो नाराज हो गई, साथ ही उनके पार्टी के नेताओं ने भी अलग राय रख दी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेश बघेल ने यहां तक कह दिया कि सावरकर को दो भागों में देखा जाना चाहिए। बघेल ने सावरकर को जेल जाने से पहले एक क्रांतिकारी तक बता दिया। ऐसे में सवाल खड़े होने लगे कि क्या बिना कोई बड़ी वजह के ही राहुल गांधी ने विवाद को जन्म दे दिया, जबकि वे चाहते तो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को पूरी तरह से वे बेरोजगारी, महंगाई आदि जैसे अहम मुद्दे पर ही केंद्रित रख सकते थे, जिससे बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन उन्हें हासिल हो सकता था और बीजेपी को भी राहुल गांधी पर निशाना साधने का नया मौका नहीं मिलता।

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