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राजस्थान संकटः पायलट-स्पीकर की बहस पूरी, खंडपीठ रख सकती है फैसला सुरक्षित

जयपुर। राजस्‍थान में चल रहे सियासी संकट के बीच सोमवार का दिन काफी अहम है। सचिन पायलट और उनके गुट के बागी विधायकों को विधानसभा स्पीकर की ओर से व्हिप उल्लंघन के मामले में दिए गए नोटिस पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। मुख्‍य न्‍यायाधीश इंद्रजीत माहन्ती और जस्टिस प्रकाश गुप्ता की बेंच इस पर सुनवाई कर रही है। स्‍पीकर की ओर से दलील पेश करते हुए सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि संविधान ने विधानसभा के संचालन का अधिकारी विधानसभा अध्‍यक्ष को दिया है। यह नियम संविधान का हिस्‍सा है। उन्‍होंने स्‍पीकर का पक्ष रखते हुए आगे कहा कि विधानसभा अध्‍यक्ष के पास विधायकों को अयोग्‍य घोषित करने और इस बाबत‍ नियम बनाने का अधिकार है, जिसकी न्‍यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है।
मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत माहन्ती ने महेश जोशी के वकील से पूछा है किया क्या ये सभी 19 विधायक अभी भी कांग्रेस में या नहीं। सचिन पायलट नोटिस मामले पर हाइकोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस दौरान महेश जोशी के अधिवक्ता अपना पक्ष रख रहे हैं। जबकि पायलट और स्पीकर की बहस पूरी हो चुकी है। सीजे की खंडपीठ आज फैसला सुरक्षित रख सकती है।
इससे पहले अभिषेक मनु सिंघवी ने स्‍पीकर का पक्ष रखते हुए हाईकोर्ट में दलील दी कि हरीश साल्‍वे (सचिन पायलट गुट के वकील) ने बहस के दौरान जो बातें रखीं, उन्‍हें सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुकी है। सिंघवी ने किहोटो जजमेंट का हवाला देते हुए कहा कि मूल्‍यों के बिना पार्टी विरोधी गतिविधियां राजनीतिक पाप है। यह वैधानिक रूप से भी नियम विरुद्ध है।
स्‍पीकर की ओर से हाईकोर्ट में पेश हुए वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता अभिषेक मनु सिंघवी ने मणिपुर, उत्‍तराखंड और झारखंड मामलों में दिए गए फैसले का हवाला दिया। उन्‍होंने खासकर केशम मेघचंद्र सिंह (जस्टिस नरीमन ने फैसला लिखा था) मामले में शीर्ष अदालत की ओर से दिए गए निर्णय का हवाला दिया. इस फैसले में व्‍यवस्‍था दी गई है कि अयोग्‍यता नोटिस पर स्‍पीकर ही निर्णय ले सकते हैं।
राजस्‍थान के विधानसभा अध्‍यक्ष की ओर से पेश वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि यह याचिका अभी प्रीमेच्‍योर है। इस बाबत फाइनल निर्णय नहीं लिया गया है। अंतिम निर्णय आने के बाद भी अदालत लिमि‍टेड ग्राउंड पर ही दखल दे सकती है। सिंघवी ने दलील दी है कि याचिका में उस ग्राउंड का उल्‍लेख नहीं है, जिसके आधार पर स्‍पीकर के आदेश को चुनौती दी जा सकती है। अभिषेक मनु सिंघवी ने झारखंड केस का उदहारण देते हुए कहा कि क्‍या होगा यदि स्‍पीकर अदालत की कार्यवाही का वीडियो रिकॉर्डिंग का आदेश दे दे? उन्‍होंने हाईकोर्ट की पीठ के समक्ष दलील देते हुए कहा कि इस मामले की (विधानसभा अध्‍यक्ष के आदेश) की न्‍यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है।
इस मामले में पायलट गुट की ओर से बहस हो चुकी है। स्पीकर की तरफ से हो रही बहस शुक्रवार को अधूरी रह गई थी। वहीं, पब्लिक अगेंस्‍ट करप्‍शन ने भी इस मामले में शामिल होने के लिए मामले की सुनवाई कर रही पीठ के समक्ष प्रार्थनापत्र पेश किया था. हालांकि, उन्‍हें कोर्ट में अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है। इसको लेकर अधिवक्‍ता पूनमचंद भंडारी राजस्‍थान हाईकोर्ट के कोर्ट नंबर 1 के बाहर विरोध कर रहे हैं।

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