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संसार की सभी भाषाओं में हुआ रामायण का अनुवाद, मुस्लिम शासक भी थे ‘राम’ के व्यक्तित्व से प्रभावित

प्रयागराज (Prayagraj) । अयोध्या (Ayodhya) में 22 जनवरी को रामलला के नूतन विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व संपूर्ण वातावरण राममय होता जा रहा है। ऐसे में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम (Lord Ram) और रामकथा की चर्चा सभी कर रहे हैं। भगवान राम के व्यक्तित्व से मुस्लिम शासक भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सके थे। इतिहास की तरफ रुख करें तो पाएंगे कि आज से 435 साल पहले बादशाह अकबर (Akbar) ने फारसी में रामायण का अनुवाद (translation of ramayana) करवाया था। 1576 में जब गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण का अनुवाद अवधी में किया तो तकरीबन उसी कालखंड में बादशाह अकबर के हुक्म पर 1589 में मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने फारसी भाषा में रामायण का प्रथम अनुवाद किया।

इसके बाद शहंशाह जहांगीर के शासन काल में रामायण के दो प्रमुख अनुवाद फारसी में हुए। एक अनुवाद मुल्ला साद उल्ला मसीह किरानवी और दूसरा अनुवाद गिरधर दास ने किया। उर्दू भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार और उर्दू अकादमी नई दिल्ली के पूर्व सदस्य डॉ. अजय मालवीय के अनुसार अब तक फारसी भाषा में लगभग 50 रामकथा हिन्दू और मुस्लिमों ने लिखी है। जहां तक उर्दू भाषा का प्रश्न है तो इसमें अब तीन सौ से अधिक रामकथाएं हिंदू और मुस्लिम रचनाकारों ने की है।


उर्दू भाषा में पहली रामकथा गंगा बिशन ने 1766 में लिखी थी। यह पांडुलिपि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की मौलाना आजाद पुस्तकालय में सुरक्षित है। इस रामकथा को राजा बनारस ने 1852 ईसवी में प्रकाशित कराया। इसके बाद से लगभग तीन सौ कवियों एवं लेखकों ने प्रभु श्रीराम की महिमा का वर्णन किया है। किसी मुस्लिम विद्वान द्वारा उर्दू भाषा में पहली बार रामायण मौलवी अब्दुल सत्तार ने 1915 ईसवी में प्रकाशित की। यह पुस्तक हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के पुस्तकालय में सुरक्षित है।

संसार की सभी भाषाओं में हुआ रामायण का अनुवाद
उर्दू भाषा में रामकथा के मर्मज्ञ और उर्दू में रामकथा लिखने वाले आलोचक डॉ. अजय मालवीय ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना संस्कृत भाषा में पद्द में किया। उसके बाद से संसार की सभी छोटी बड़ी भाषाओं में रामायण का अनुवाद हो चुका।

मिट नहीं सकती कयामत तक हुकूमत राम की
बड़ी संख्या में मुस्लिम विद्वानों ने उर्दू भाषा में रामायण का अनुवाद किया है। इनमें मेहंदी नजमी, तालिब इलाहाबादी, नफीस खलीली, रिन्द रहमानी, इम्तियाज उद्दीन खां, अजमत खां, नजीर बनारसी, हनीफ कैफ़ी, सफदर आह, मौलवी अब्दुल सत्तार, नुरुल हसन नकवी, जोहरा निगाह, अब्दुल समद यार खां, सागर निज़ामी, ताहिरा बानो सईद, ज़फर अली खां, जामिन अली खां, नामी अन्सारी, शेख मोहम्मद इकबाल, अनवर खां ग्वालियरी, अख्तर हुसैन, सहेबा अख्तर, कैफ़ी आज़मी और असद रजा इत्यादि का नाम प्रमुख है। अब्दुल समद यार खां सागर निजामी ने प्रभु श्री राम की भक्ति पर आस्था के फूल अर्पित करते हुए लिखा है – ‘जिन्दगी की रूह था रूहानियत की शान था, वह मोजस्सम रूप में इंसान का इरफान था, हिन्दियों के दिल में बाकी है मोहब्बत राम की, मिट नहीं सकती कयामत तक हुकूमत राम की।’

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