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रावण दहन में भी राजनीतिक कलुषता

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

त्योहार पहले भी मनाए जाते थे। आज भी मनाए जाते हैं और आगे भी मनाए जाते रहेंगे। इसकी वजह यह है कि भारत उत्सवधर्मी देश है। उमंग और उल्लास में जीने वाला देश है। जल्दी से जल्दी दुखों और परेशानियों से बाहर निकलना जानता है। भारत सकारात्मकता में यकीन रखता है। इस देश में त्योहार पहले उत्साह और सादगी से मनाए जाते थे। अब त्योहारों पर बाजार का रंग चढ़ गया है। बाजार नवोन्मेष चाहता है। नवोन्मेष में संदेश हो सकता है लेकिन जरूरी नहीं कि वह यथार्थ भी हो। नवोन्मेष में बनावटीपन और खिलंदड़पन भी होता है। ऐसे में त्योहार इस प्रवृत्ति के अपवाद कैसे हो सकते हैं? अब हर त्योहार नवोन्मेष के साथ मनता है। त्योहार बाद में आता है, उसके मनाने की योजना पहले बन जाती है। हर कोई एक-दूसरे से अलग और बेहतर ढंग से त्योहार मनाना चाहता है।

दशहरा का त्योहार भी इसबार कुछ इसी तरह के नवोन्मेष के बीच मनाया गया। पहले रावण, कुंर्भकर्ण और मेघनाद के पुतले जलते थे। बाद के वर्षों में इन पुतलों का आकार बढ़ता गया। उसकी लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई बढ़ती गई, बिल्कुल आदमी के अहंकार की तरह। रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण की जगह बुराइयों के नाम दिए जाने लगे। समस्याओं के नाम दिए जाने लगे। बाद में इनके बहाने संदेशों की राजनीति होने लगी और इस साल तो गजब ही हो गया। पंजाब में कुछ लोगों ने रावण के पुतले के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुखौटा लगाकर उसे फूंक दिया। कुंभकर्ण और मेघनाद की जगह ली मुकेश अंबानी और गौतम अडानी ने। दशहरा वाले दिन एक तरफ जहां नरेंद्र मोदी को रावण साबित कर, उनका पुतला जलाने की कोशिश हो रही थी, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशवासियों के साथ अपने मन की बात साझा कर रहे थे। उन्हें त्योहार मनाने का फलसफा बता रहे थे। विषम परिस्थितियों में भी उल्लास और हौसले के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे थे। ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावभूमि से देश को जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लौह-पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की उस छवि की खुद कल्पना कर रहे थे और देश को सरदार पटेल की वह छवि दिखा रहे थे जिसमें लौहपुरुष राजे-रजवाड़ों से बात कर रहे थे, पूज्य बापू के जन-आंदोलन का प्रबंधन कर रहे थे और इसके साथ ही, अंग्रेजों से भी लड़ रहे थे। नरेंद्र मोदी अपने मन की बात कार्यक्रम में लौहपुरुष के ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ का जिक्र कर देशवासियों को नसीहत दे रहे थे कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी विषम क्यों न हो, अपने ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ को जिंदा रखिये, यह हमें सहज तो रखेगा ही, समस्याओं के समाधान में भी हमारी मदद करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशवासियों को अपनी वाणी, व्यवहार और कर्म से हर पल उन सब चीजों को आगे बढ़ाने की बात कर रहे थे जो हमें ‘एक’ करने, देश के एक भाग में रहने वाले लोगों के मन में दूसरे कोने में रहने वाले नागरिक के लिए सहजता और अपनत्व का भाव पैदा करने की सलाह दे रहे थे, वहीं कुछ लोग पंजाब में उनका पुतला रावण के रूप में जला रहे थे। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाएगा? वहीं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष इसे सही ठहराने की कोशिश कर रहे थे। वे प्रधानमंत्री को किसानों की बात सुनने की अपील कर रहे थे और तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसानों के गुस्से को खतरनाक बता रहे थे। राहुल गांधी ने यहां तक कहा कि पंजाब में किसानों ने दशहरे के अवसर पर प्रधानमंत्री के पुतले जलाकर अपने गुस्से का इजहार किया और यह स्थिति लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है। वे पंजाब में किसान आंदोलन और तेज होने की भी धमकी दे रहे हैं। जब प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में पुलवामा के स्लेट और पेंसिल का जिक्र कर देश को यह बताने की कोशिश की है कि देश के शैक्षणिक विकास में पुलवामा की अहमियत क्या है? उसका योगदान क्या है?

वे देश को यह बताने-जताने की कोशिश कर रहे थे कि जम्मू-कश्मीर को आतंक पट्टी के रूप में देखने वालों को उसे शिक्षण पट्टी के रूप में भी देखना चाहिए। उन्होंने कहा है कि कश्मीर घाटी, पूरे देश की करीब 90 फ़ीसदी लकड़ी की पट्टी की मांग को पूरा करती है और उसमें बहुत बड़ी हिस्सेदारी पुलवामा की है। एक समय हम विदेशों से पेंसिल के लिए लकड़ी मंगवाते थे लेकिन अब हमारा पुलवामा, इस क्षेत्र से, देश को आत्मनिर्भर बना रहा है। दशहरा पर्व असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है लेकिन ये संकटों पर धैर्य की जीत का पर्व भी है। हम जिस तरह से आज कोरोना काल में संयम के साथ जी रहे हैं और मर्यादा के साथ पर्व मना रहे हैं इसलिए कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हमारी जीत सुनिश्चित है। आगे आने वाले ईद ,शरद पूर्णिमा, वाल्मीकि जयंती, धनतेरस, भाईदूज, गुरुनानक देव की जयंती और छठ जैसे पर्व में भी हमें कोरोना के संकटकाल में इसी संयम और मर्यादा से काम लेना है। उन्होंने देशवासियों से अपील की है कि वे त्योहार मनाते समय सीमाओं पर तैनात सैनिकों तथा रोजमर्रा के जीवन में उनकी मदद करने वाले कामगारों को भी अपनी खुशियों में शामिल करें और दीवाली पर एक दीपक उनके नाम का भी जलाएं।

ऐसे में पंजाब में रावण के यप में प्रधानमंत्री का पुतला जलाया जाना कितना उचित है, इसे लेकर देश में राजनीतिक बहस-मुबाहिसों का दौर शुरू हो गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने इस घटना को राहुल गांधी द्वारा निर्देशित शर्मनाक नाटक करार दिया है। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा है कि ऐसा नाटक अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि नेहरू-गांधी राजवंश ने कभी प्रधानमंत्री कार्यालय का सम्मान नहीं किया। वर्ष 2004 से 2014 तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के कार्यकाल में प्रधानमंत्री के अधिकार को संस्थागत तौर पर कमज़ोर करते हुए देखा गया। वे यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा है कि निराशा और बेशर्मी का मेल खतरनाक है। कांग्रेस के पास दोनों है। जहां पार्टी में राहुल गांधी घृणा, क्रोध, झूठ और आक्रामकता की राजनीति दिखाते हैं वहीं उनकी मां सोनिया गांधी शालीनता और लोकतंत्र की सिर्फ बयानबाजी करके इसका पूरक बनती हैं। ये कांग्रेस पार्टी के दोयम दर्जे को दिखाता है। इस वंश को एक व्यक्ति से अधिक नफरत है जो गरीबी में पैदा हुआ और देश का प्रधानमंत्री बना।

यह भारत देश में ही संभव है कि यहां लोकतंत्र के नाम पर,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर प्रधानमंत्री को कुछ भी कहा जा सकता है। मौजूदा समय देश को हतोत्साहित करने का नहीं, कदम-कदम पर उसे प्रेरित करने, उसका मनोबल बनाए रखने का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस वास्तविकता को जानते हैं। देश में रावण की तलाश तो यह देश कर लेगा लेकिन अभी समय कोरोना के इस आपातकाल में अपने और अपने परिवार को सुरखित रखते हुए व्यापार, व्यवसाय, शिक्षा और स्वास्थ्य की गाड़ी को पटरी पर लाना है। यह समय राजनीतिक विभ्रम में फंसने का नहीं, बल्कि वह करने का है जिससे धर्म और जाति के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वालों का चूल्हा बुझे। मौजूदा समय सोच-समझकर आगे बढ़ने और किसी के झांसे में न आने का है। रावण दहन का मतलब है कि हम अपने मन के बुरे भावों को विनष्ट करेंगे। रावण दहन में राजनीतिक कलुषता तो किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है। काश, हम इस युगसत्य को समझ पाते। त्योहार को त्योहार की तरह मनाते। उसमें अनावश्यक राजनीति का घालमेल तो न करते।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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