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सम्मान-जनक अंत्येष्टि मौलिक अधिकार का हिस्सा, जानें क्या कहता है कानून

नई दिल्‍ली । कोरोना संकट (corona crisis) के बीच लोगों ने मौत का जो मंजर देखा है, उसे भूल पाना मुश्किल है, लेकिन मृत मानव के शरीर के भी अधिकार हैं. भारत का संविधान और देश के सभी संबंधित कानूनों ने नागरिकों को दिए जाने वाले असंख्य अधिकारों को व्यापक रूप से निर्धारित किया है. लेकिन इनमें से कितने अधिकार किसी व्यक्ति को उसकी मृत्यु के बाद प्राप्त होते हैं? इसकी पड़ताल कई शिक्षाविदों और न्यायाधीशों द्वारा की गई है.

कॉमन कॉज (ए पंजीकृत सोसायटी) (Common Cause Society) बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक फैसले में 2018 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा, “जीवन के अधिकार में सम्मान के साथ मरने का अधिकार शामिल है.” किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, उसे बिना किसी देरी के एक सभ्य संस्कार का अधिकार है.


1995 में परमानंद कटारा बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के अधिकार को मान्यता दी. संविधान के अनुच्छेद 21 में मृतक का सम्मानपूर्वक दाह संस्कार भी एक अधिकार है.

किसी भी तरह की संपत्ति का अधिकार अपने आप में मृत शरीर में नहीं होता है. हालांकि, मृत्यु के बाद के शरीर को दफनाने के लिए “quasi-property” माना जाता है. अंतिम संस्कार किए जाने से पहले शरीर के अधिकार मृतक के परिजनों के पास होते हैं. हालांकि, अंतिम संस्कार के बाद लाश कानून की हिरासत बन जाती है और असाधारण परिस्थितियों में न्यायालय के विशिष्ट निर्देशों के बिना उसे परेशान नहीं किया जा सकता है.

सामान्य तौर पर न्यायालय disinterment के पक्ष में नहीं हैं, इसके पीछे सिद्धांत यह है कि पवित्रता को बनाए रखा जाना चाहिए ताकि मृतकों के साथ सम्मान से व्यवहार किया जा सके. अंतिम संस्कार के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-25 में भी तलाशा जा सकता है.

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