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भारत में रोहिंग्या महिला ने नाम-घर-देश बदला, लेकिन अपना लक्ष्य नहीं

नई दिल्‍ली (New Delhi)। वैसे तो देश में रोहिंग्या शरणार्थियों (Rohingya refugees)  को लेकर राजनीति होती रहती है, लेकिन रोहिंग्याओं (Rohingya ) एक ऐसा भी नाम है जो पूरी तरह से अलग है। तस्मिदा जौहर (Tasmida Johar) शायद ही यह नाम आपने पहले सुना होगा। यह नाम है भारत की यूनिवर्सिटी (university) में एडमिशन लेकर ग्रेजुएशन पूरी करने वाली एक रोहिंग्या लड़की का। तस्मिदा ने डीयू (DU) से राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। वह दिसंबर 2022 में भारत की पहली रोहिंग्या ग्रेजुएट महिला बनीं। अब वह विल्फ्रिड लॉयर यूनिवर्सिटी टोरंटो से एक कन्फर्मेशन लेटर का इंतजार कर रही हैं।

खबरों की माने तो शरणार्थियों (Refugees) की शिक्षा तक पहुंच पर यूएनएचसीआर (UNHCR) की एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर केवल 3 प्रतिशत युवा शरणार्थी हायर एजुकेशन ले सके हैं। तस्मिदा जौहर भी उन्हीं में से एक हैं। इतना ही नहीं दिल्ली से ग्रेजुएशन करके अब वह अगस्त में कनाडा जाने की तैयारी कर रही हैं. उनके लिए यह सफर इतना आसान नहीं रहा है!

तस्मिदा को अपनी पढ़ाई के लिए अपना नाम बदलना पड़ा, अपना घर बदलना पड़ा और यहां तक अपना देश तक बदलना पड़ गया। उन्होंने नई भाषा सीखी, नई संस्कृतियों में रहना सीखा इसके बाद उनका सपना पूरा हो सका। वह अपने देश में उत्पीड़न से बचने के लिए भारत आ गई थीं। दिसंबर 2022 में वह पहली रोहिंग्या ग्रेजुएट बनीं थीं। अब वह विल्फ्रिड लॉयर यूनिवर्सिटी, टोरंटो से कन्फर्मेशन के इंतजार में हैं।



तस्मिदा ने अंग्रेजी अखबार को बताया कि वह वास्तव में 24 साल की हैं, लेकिन यूएनएचसीआर कार्ड के हिसाब से उनकी उम्र 26 साल है. रोहिंग्या माता-पिता आमतौर लड़की की उम्र को दो साल बढ़ा देते हैं, ताकि उनकी जल्दी शादी हो सके. अपने नाम को लेकर उन्होंने बताया कि उनका असली नाम तस्मीन फातिमा है, लेकिन म्यांमार में पढ़ने के लिए आपके पास रोहिंग्या नाम नहीं हो सकता है इसके लिए एक बौद्ध नाम रखना होता है।

वह बताती हैं कि म्यांमार के लोगों के लिए रोहिंग्या का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए. स्कूल में उनके लिए अलग क्लास होती हैं. एग्जाम हॉल में उन्हें सबसे दूर की बेंच पर बैठाया जाता है। दसवीं कक्षा तक टॉप करने पर भी उनका नाम मेरिट लिस्ट में नहीं आता और अगर कोई रोहिंग्या कॉलेज जाना चाहता है तो आपको यांगून (देश की पूर्व राजधानी) जाना पड़ता है इसलिए शायद ही कभी कोई रोहिंग्या ग्रेजुएट हो पाता है. सरकारी कार्यालयों नौकरी नहीं दी जाती है. यहां तक की हम मतदान भी नहीं कर सकते हैं।

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