इतने मशहूर हुए कि खुद से बेजार हो गए… शोहरतें इतनी मिलीं, पर पड़ोसियों से अनजान हो गए… दौलत भी इतनी कमाई, पर एक नौकर न रख सके… शरीर भी ऐसा बनाया, जो चोर से भिड़ न पाया…नवाबी का आलम यह रहा कि जब मुसीबत आई तो बीवी-बच्चे सडक़ों पर बेसहारा हो गए…यह हकीकत है रील के सुपर स्टार भोपाल के नवाब और फिल्म के ऐसे कलाकार की, जिसने सब कुछ पाया, लेकिन जब आईना नजर आया तो हकीकत जानकर पूरा जमाना शरमाया… सैफ अली खान के घर पर हुआ हमला पूरे देश की सुर्खियों में है… लेकिन रईसों के जीवन की इस हकीकत का पहलू अब भी सोच में कैद है कि जिस अभिनेता की एक झलक पाने के लिए जमाना टूट पड़ता है… जो अपनी सुरक्षा के लिए कारवां लेकर चलता है… जो दौलत के महल पर खड़ा होकर खुद को नवाबों का वंशज कहता है… जो एक-एक फिल्म से करोड़ों बंटोरता है, वो एक ऐसे घर में बसता है, जहां कोई नौकर ही नहीं रहता है…और सबसे बड़ी बात यह है कि उसे कोई पड़ोसी तक नहीं पहचानता, जो मुसीबत में उसका हाथ थामने चला आता…जिसके घर में कारों की कतार हो, उसका परिवार सडक़ पर आकर रिक्शे का इंतजाम करने लग गया… खून से तरबतर कलाकार सडक़ों की ठोकरें खाए… घंटों जिम में रहकर शरीर को मजबूत बनाने वाला एक मरियल से चोर से मात खा जाए तो समझ लेना चाहिए कि इंसान नहीं वक्त मजबूत होता है और वक्त के आगे इंसान कितना मजबूर होता है…जिस अहंकार पर जीवन चलता है, वो कितना क्षणिक रहता है…जो अपनों को अपना न बना पाए, वो परायों में कैसे अपना बन पाए…यह हकीकत एक सैफ के घर की नहीं है, बल्कि समय की है… ऊंची मीनारों के मुंबई जैसे शहर में लोग पड़ोसियों तक को नहीं पहचानते… महानगरों का यह रोग अब नगरों और गांवों तक आ रहा है… हम कहां थे, कहां आ गए…कुछ नहीं था तो सब अपने थे… सब कुछ है तो अपने भी पराए हैं… कभी गलियों में गुजरता जीवन पूरे मोहल्ले को परिवार बनाकर रखता था.. एक आहट सुनते ही हर घर का दरवाजा खुलता था… बच्चा गलत रास्ते पर नजर आए तो परिवार बाद में पहले पड़ोसी थप्पड़ जड़ता था.. पैसा नहीं था, पर रिश्तों की इतनी दौलत थी कि गम भी हंसते-हंसते गुजरता था…अब तो नवाब भी नाकारा हो गए… करीना-सैफ जैसे चेहरे भी अकेलेपन के संघर्ष में गुम हो गए.. देश में नवाबों तक के यह हाल हो गए और चाल में रहने वाले गरीब अब रिश्तों के नवाब हो गए…
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