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विशेष: हाशिये पर मजदूर, प्रगति कैसे हो भरपूर

– योगेश कुमार गोयल

प्रतिवर्ष 01 मई को विश्व श्रमिक दिवस मनाया जाता है। इसे बहुत जगह ‘मई दिवस’ भी कहा जाता है। यह दिवस समाज के उस वर्ग के नाम है, जिसके कंधों पर सही मायनों में विश्व की उन्नति का दारोमदार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी राष्ट्र की आर्थिक प्रगति तथा राष्ट्रीय हितों की पूर्ति का प्रमुख भार इसी वर्ग के कंधों पर होता है। वर्तमान मशीनी युग में भी उनकी महत्ता कम नहीं है। श्रमिक दिवस और श्रम के महत्व को रेखांकित करते हुए फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने कहा था कि किसी व्यवसाय को ऐसे देश में जारी रहने का अधिकार नहीं है, जो अपने श्रमिकों से जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से भी कम मजदूरी पर काम करवाता है। जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से उनका आशय सम्मानपूर्वक जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से था।

इस दिवस पर यह जानना भी दिलचस्प है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रमिक दिवस कब से और क्यों मनाया जाता है? अमेरिका में आठ घंटे से ज्यादा काम न कराने के लिए की गई कुछ मजदूर यूनियनों की हड़ताल के बाद 01 मई 1886 को विश्व श्रमिक दिवस मनाने की शुरूआत हुई थी। दरअसल वह ऐसा समय था, जब कार्यस्थल पर मजदूरों को चोट लगना या काम करते समय उनकी मृत्यु हो जाना आम बात थी। ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने, कार्य करने के घंटे कम करने तथा सप्ताह में एक दिन के अवकाश के लिए मजदूर संगठनों ने पुरजोर आवाज उठाई गई।


01 मई 1886 को हड़ताल शुरू हुई। शिकागो शहर के हेय मार्केट चौराहे पर रोज सभाएं होने लगीं। 04 मई 1886 को पुलिस यहां भीड़ को तितर-बितर करने का प्रयास कर रही थी। तभी किसी अज्ञात शख्स ने बम फेंक दिया। इसके बाद पुलिस ने फायरिंग की। इसमें चार मजदूर मारे गए।हालांकि उस समय अमेरिकी प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। लेकिन बाद में श्रमिकों के लिए आठ घंटे कार्य करने का समय निश्चित कर दिया गया। मजदूरों पर गोलीबारी और मौत के दर्दनाक घटनाक्रम को स्मरण करते हुए ही 01 मई 1886 से विश्व श्रमिक दिवस मनाया जाने लगा। 1889 में पेरिस में अंंतरराष्ट्रीय महासभा की द्वितीय बैठक में फ्रांसीसी क्रांति को याद करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया कि इसे ‘विश्व मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाए। इसके बाद 80 देशों ने 01 मई को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया।

श्रमिक वर्ग ही है, जो अपनी हाड़-तोड़ मेहनत के बलबूते पर राष्ट्र के प्रगति चक्र को तेजी से घुमाता है लेकिन कर्म को ही पूजा समझने वाला श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है। मई दिवस के अवसर पर देशभर में भले ही मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं। लुभावने वादे किए जाते हैं। इन्हें सुनकर एकबारगी तो लगता है कि उनके लिए अब कोई समस्या नहीं बचेगी किन्तु अगले ही दिन मजदूरों को पुनः उसी माहौल से रूबरू होना पड़ता है। फिर वही शोषण, अपमान व जिल्लत भरा तथा गुलामी जैसा जीवन जीने के लिए अभिशप्त होना पड़ता है। समय-समय पर मजदूरों के लिए नए सिरे से मापदंड निर्धारित किए जाते हैं लेकिन इनको क्रियान्वित करने की फुर्सत ही किसे है?

जहां तक मजदूरों के अधिकारों का सवाल है तो कई बार वह बेमानी साबित होते हैं। अक्सर कारखानों के मालिक मनमानी कर तालाबंदी कर देते हैं।प्रायः जिम्मेदार अधिकारी आंख पर पट्टी बांधे रहते हैं। बड़ी वजह यह है कि अधिकांश ट्रेड यूनियनों के नेता भी भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बन गए हैं। यह लोग विभिन्न मंचों पर श्रमिक हितों के नाम पर शोर तो बहुत मचाते नजर आते हैं पर कारखानों के मालिकों के हाथों खेलते हैं।

ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर किसके लिए मनाया जाता है ‘श्रमिक दिवस’? बहुत से मजदूरों की तो इस दिन भी काम करने के पीछे यह मजबूरी भी होती है कि अगर एक दिन भी काम नहीं करेंगे तो उनके घरों में चूल्हा कैसे जलेगा। देश की स्वाधीनता के सात दशक गुजर चुके हैं।अनेक श्रम कानून अस्तित्व में हैं। बावजूद इसके ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो मजदूरों को उनके श्रम का उचित मूल्य दिला सके।

(लेखक,स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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