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Article 370 पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनाएगा फैसला, घाटी के बड़े नेताओं की चिंता बढ़ी

नई दिल्ली (New Delhi)। अनुच्छेद 370 (Article 370) को लेकर उच्चतम न्यायालय (Supreme court) की तरफ से सोमवार को फैसला आने वाला है। इसके साथ ही राजनीतिक गलियारे में हलचल (movement in political circles) बढ़ गई है। इसको लेकर आमजन की धड़कनें भी बढ़ी हैं। इस बीच नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला (National Conference Vice President Omar Abdullah.) ने एक बार फिर नजरबंद किए जाने की आशंका जताई है। उधर, पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती (PDP President Mehbooba Mufti.) ने उनके कार्यकर्ताओं की लिस्ट पुलिस थानों में लिए जाने पर अफसोस जताया है। पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन (People’s Conference President Sajjad Lone.) ने कहा कि उन्हें उच्चतम न्यायालय की न्याय प्रक्रिया पर पूरा विश्वास है।

उमर ने कुलगाम जिले के देवसर में जनसभा को संबोधित करने के बाद कहा कि अनुच्छेद 370 को लेकर आने वाले फैसले के बारे में किसी को भी पता नहीं हो सकता है। उनके अनुसार सरकार को उन्हें नजरबंद करने के लिए कोई भी बहाना चाहिए और यह बहाना उन्हें मिल गया है। उधर, पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने अनंतनाग जिले के बिजबिहाड़ा में कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के बाद कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मामले को सुनने में 5 साल लगा दिए।


दूसरा उसके बाद खुद सुप्रीम कोर्ट में कई पुराने फैसले इसको लेकर आए हैं। उनमें कहा गया है कि 370 को जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के बगैर कोई नहीं हटा सकता है। इसमें यह होना चाहिए कि जो 5 अगस्त 2019 को किया गया, वह गैरकानूनी था। संविधान और जम्मू-कश्मीर के खिलाफ था।

महबूबा मुफ्ती ने कहा कि उन्हें पता चला है कि शुक्रवार रात से उनके कार्यकर्ताओं की लिस्ट पुलिस थानों के जरिए ली जा रही है। ऐसा लगता है कि ऐसा फैसला आने वाला है, जो जम्मू-कश्मीर के बजाय सिर्फ भाजपा के हक में है। इसीलिए एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं। इसका मुझे अफसोस है। कई कार्यकर्ताओं को पुलिस स्टेशनों से फोन भी आया और उन्हें थाने बुलाया गया है।

इस बीच पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने कहा कि उन्हें उच्चतम न्यायालय की न्याय प्रक्रिया पर पूरा विश्वास है। उन्होंने कहा कि वह उस दल हैं, जिसने अनुच्छेद 370 हटाए जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी। सज्जाद के अनुसार किसी भी कानूनी मामले में न्यायालय केवल तथ्यों के आधार पर फैसला देती है न कि बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक देखकर।

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