नई दिल्ली । टीबी (TB) के खिलाफ भारत (India) की लड़ाई में अब ऐसा हथियार मिल गया है, जो अत्यंत असरदार है। भारतीय वैज्ञानिकों (Indian Scientists) ने बहुकेंद्रीय क्लिनिकल ट्रायल में साबित किया है कि मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के मरीजों को अब न तो सुई लगाने की जरूरत होगी और न ही इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा। तीन दवाओं की मिश्रित खुराक के साथ महज 26 हफ्ते में टीबी के संक्रमण से मुक्ति पा लेंगे।
भारत में एमडीआर-टीबी गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। इस में टीबी के जीवाणु सामान्य टीबी रोधी दवाओं के प्रतिरोधी हो जाते हैं। मरीजों को लंबे समय तक उपचार कराना पड़ता हैै। जानकारी अनुसार, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और चेन्नई स्थित राष्ट्रीय क्षय रोग अनुसंधान संस्थान (एनआइआरटी) के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के जरिए तीन दवाओं की मिश्रित खुराक से ही मरीजों में एमडीआर टीबी खत्म कर दिया।
बेडाक्विलाइन, प्रेटोमैनिड और लाइनेजोलिड दवाओं के संयोजन पर वैज्ञानिकों ने अध्ययन भी किया, जिसमें दवा-प्रतिरोधी टीबी का यह इलाज बिना इंजेक्शन के सिर्फ 26 हफ्ते में असरदार पाया गया। ऐसे अध्ययन अमेरिका और यूरोप में भी हुए हैं, जिन्हें द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन ने प्रकाशित किया है। अध्ययन के परिणाम उन नतीजों से भी मेल खाते हैं। यानी यह भारत में भी उतना ही असरदार हो रहा है, जितना कि अमेरिका या यूरोप में देखा गया है।
क्या है नया इलाज?
अभी तक एमडीआर-टीबी का इलाज अक्सर नौ महीने से लेकर डेढ़ साल तक चलता था। कई बार इंजेक्शन और गंभीर दुष्प्रभाव शामिल होते हैं, लेकिन इस अध्ययन में केवल तीन दवाओं का उपयोग किया, जिसमें लाइनेजोलिड की खुराक को समय के साथ घटाया ताकि इसके दुष्प्रभाव कम हों। शोधकर्ताओं का कहना है कि लाइनजोलिड की खुराक को धीरे-धीरे कम करना न केवल इलाज को कम विषैला बनाता है, बल्कि इसका असर भी कम नहीं होता। इससे उन मरीजों के लिए राहत संभव है जो लाइनजोलिड के कारण न्यूरोपैथी या एनीमिया जैसी समस्याओं से जूझते हैं।
403 मरीजों पर इलाज के बाद 48 हफ्ते तक रखी निगरानी
जर्नल ऑफ इन्फेक्शन में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 403 मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल किया। इन्हें तीन समूह में बांटने के बाद जब सभी मरीजों को 26 हफ्तों तक तीन दवाओं की मिश्रित खुराक दी गई।
403 में से 378 मरीजों को इलाज के बाद 48 हफ्तों तक फॉलोअप किया गया। इनमें से 88% मरीजों (331 लोगों) को बीमारी दोबारा नहीं हुई। वे ठीक हो गए। सभी तीन समूहों में सफल इलाज की दर लगभग समान यानी 87 से 88% रही। इससे साफ हुआ कि खुराक घटाने के बाद भी इलाज की सफलता प्रभावित नहीं हुई।
14 मरीजों में बीमारी दोबारा देखी गई, जिनमें ज्यादातर (11) मामलों में यह इलाज के छह महीने के अंदर हुआ। यानी इलाज के बाद की निगरानी उतनी ही जरूरी है, जितनी इलाज में दी जाने वाली दवाएं अहम हैं।
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