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संसदीय समिति की बैठक तक पहुंची सियासी दलों की जंग, विपक्ष का आरोप- मीटिंग में एजेंडा पेश कर रही BJP

नई दिल्ली। केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच टकराव सिर्फ संसद या चुनावी रैलियों तक सीमित नहीं रह गया है। अब इसकी जद में संसदीय समितियों की बैठक भी आ गई हैं। हाल ही में ‘आंतरिक मामलों’ (Home Affairs) की संसदीय समिति की बैठक में जब पूर्वोत्तर के विकास कार्यों को लेकर चर्चा चल रही थी, तब विपक्ष और समिति के प्रभारी (भाजपा नेता- बृजलाल) के बीच तीखी बहस छिड़ गई। इस पूरे विवाद की वजह थी सरकारी सचिव की ओर से पेश किया गया प्रेजेंटेशन, जिसमें पूर्वोत्तर के विकास के लक्ष्य का जिक्र ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के साथ किया गया। इसे लेकर तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व में पूरे विपक्ष ने सरकार को घेर लिया और आरोप लगाया कि यही नारा भाजपा के 2014 के घोषणापत्र का भी हिस्सा था।

विपक्ष के नेताओं के मुताबिक, संसदीय समितियों की बैठक में कोई भी प्रेजेंटेशन सत्ता में मौजूद पार्टी के नारों के साथ नहीं होना चाहिए। हालांकि, संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा नेताओं ने विपक्ष के इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उद्देश्य है और इसे किसी पार्टी से जोड़कर या राजनीतिक मकसद से जुड़ा नारा बताना गलत है। उन्होंने कहा कि पीएम के नजरिए का महज राजनीति के नाम पर विरोध ठीक नहीं है।


रिपोर्ट्स के मुताबिक, संसद में डेरेक ओ ब्रायन के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है। पार्टी ने फैसला किया है कि वह सभी सरकारी विभागों और मंत्रालयों को चिट्ठी लिखेगी और उनसे किसी पार्टी से जुड़े नारों के इस्तेमाल से बचने के लिए कहेगी। टीएमसी नेताओं के मुताबिक, उनकी पार्टी कभी बंगाल में किसी सरकारी कार्यक्रम या किसी नीति को पेश करते हुए ‘मां, माटी, मानुष’ के नारे का प्रचार नहीं करती। ओ ब्रायन के मुताबिक, “ऐसे नारों का इस्तेमाल पार्टियां कर सकती हैं, पर सरकार कभी नहीं।”

गौरतलब है कि सरकार और विपक्ष की यह लड़ाई अभी और बढ़ने के आसार हैं। दरअसल, सरकार को अभी शीत सत्र की अवधि पर फैसला करना है। इस बीच पूर्वोत्तर के कुछ सांसदों, खासकर ईसाई सांसदों का कहना है कि उन्हें क्रिसमस की तैयारियों के लिए काफी कम समय मिलता है। यहां तक कि कुछ सांसदों ने आंकड़े रखते हुए कहा है कि आमतौर पर संसद के शीत सत्र का पहला हिस्सा क्रिसमस से एक या दो दिन पहले ही खत्म हो जाता है, जबकि अगला हिस्सा जनवरी के पहले हफ्ते में शुरू होता है। यानी उन्हें हर बार शीत सत्र की वजह से क्रिसमस-नए साल के जश्न को बीच में ही खत्म कर के संसद लौटना पड़ता है।

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