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सरकार लेकर आई ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी, IOC ने कहा- इससे हाइड्रोजन की लागत 50% तक घटेगी

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने 17 फरवरी को ग्रीन हाइड्रोजन (Green hydrogen policy) और ग्रीन अमोनिया पॉलिसी (Green ammonia policy) को नोटिफाई किया. इस पॉलिसी की मदद से सरकार 2030 तक डोमेस्टिक ग्रीन हाइड्रोजन प्रोडक्शन को 5 मिलियन टन तक पहुंचाना चाहती है. लॉन्ग टर्म में सरकार का मकसद भारत को क्लीन फ्यूल का एक्सपोर्टर बनाना है.

ग्रीन हाइड्रोजन को पानी से तैयार किया जाता है. इसमें पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ दिया जाता है. सरकार के इस विजन को सच करने के लिए देश की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) कार्बन उत्सर्जन वाली इकाइयों को बदलने के लिए 2024 तक अपनी मथुरा और पानीपत रिफाइनरियों में ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ प्लांट स्थापित करेगी.

कंपनी का मानना है कि हालिया घोषित ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी ऊर्जा बदलाव की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पहल है और इससे लागत को कम करने में मदद मिलेगी. आईओसी के निदेशक शोध एवं विकास एस एस वी रामकुमार का कहना है कि नई पॉलिसी से ग्रीन हाइड्रोजन के विनिर्माण की लागत में 40-50 फीसदी की कटौती होगी. उन्होंने कहा, ‘‘यह पॉलिसी ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए सबसे बड़ी ‘समर्थक’ साबित होगी.’’


पेट्रोलियम, फर्टिलाइजर प्लांट में होता है हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल
पेट्रोलियम रिफाइनरियां, उर्वरक प्लांट और इस्पात इकाइयां तैयार उत्पादों के उत्पादन के लिए प्रक्रिया में ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग करती हैं. रिफाइनरियों में पेट्रोल और डीजल से अतिरिक्त सल्फर को हटाने के लिए हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है. मौजूदा समय में हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस या नेफ्था जैसे जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होता है और इससे कार्बन उत्सर्जन होता है.

IOC का क्लीन हाइड्रोजन के इस्तेमाल पर फोकस
आईओसी ने इस ‘ग्रे हाइड्रोजन’ को ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ से बदलने की योजना बनाई है – जिसे ‘क्लीन हाइड्रोजन’ भी कहा जाता है. इसमें ऊर्जा का इस्तेमाल नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों मसलन सौर या पवन से किया जाता है और पानी को इलेक्ट्रोलिसिस (विद्युत अपघटन) प्रक्रिया के जरिये दो हाइड्रोजन कणों और एक ऑक्सीजन कण में बांटा जाता है.

प्रोडक्शन सेंटर पर कीमत 2 रुपए प्रति किलोवॉट
रामकुमार ने कहा, ‘‘नवीकरणीय ऊर्जा की दो रुपए प्रति किलोवॉट (या प्रति यूनिट) की मुख्य लागत वास्तव में उत्पादन स्थल (राजस्थान या लद्दाख में सौर फार्म आदि में) की कीमत है. इसे ट्रांसमिशन लाइनों के जरिये विभिन्न राज्यों में भेजे जाने पर अलग-अलग शुल्क लगते हैं. इसके बाद यह लागत चार से सात रुपए प्रति यूनिट हो जाती है.’’ उन्होंने बताया कि कारखाना गेट की लागत चार से सात रुपए प्रति यूनिट पर ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत 500 रुपए प्रति किलो आती है. वहीं मौजूदा ग्रे हाइड्रोजन में यह सिर्फ 150 रुपए प्रति किलो बैठती है.

ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए रिन्यूएबल एनर्जी की होगी छूट
17 फरवरी को घोषित हाइड्रोजन पॉलिसी के तहत ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के खुले इस्तेमाल की छूट होगी और उसपर सेंट्रल सरचार्ज और इंटर स्टेट ट्रांसमिशन चार्ज नहीं लगेगा. यह सुविधा 30 जून, 2025 से पहले शुरू होने वाली परियोजनाओं पर मिलेगी. रामकुमार ने कहा कि इससे आवश्यक रूप से ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत में 40 से 50 फीसदी की कमी आएगी.

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