दिव्य अग्रवाल
अनादि अनंत अविनाशी महादेव के शिवलिंग पर सम्पूर्ण विश्व के सनातनी अभिषेक करते हैं । महादेव के परम् भक्त और सेवक नन्दी महाराज के कान में अपनी मनोकामना मांगते हैं । परन्तु ज्ञानवापी का विषय ऐसा जहाँ सैकड़ों वर्षों से शिवलिंग पर अभिषेक नहीं हुआ । नन्दी महराज अपने आराध्य के दर्शन की आशा में सैकड़ों वर्षों से स्थिर एवं स्तब्ध होकर प्रतीक्षा कर रहे हैं ।
प्रश्न यह है कि क्या हिन्दू समाज को नन्दी महराज की प्रतीक्षा से पीड़ा नहीं हुई ? क्या इस बात की आत्मगिलानी नहीं हुई ? जिस शिवलिंग पर पवित्र अभिषेक होना चाहिए था वहां हाथ पैर धोने हेतु वजू की जा रही थी । आज जब नन्दी जी की धैर्यता और शिवलिंग की सत्यता प्रमाणित हो रही है तो मुस्लिम समाज के नेता मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करते हुए कह रहे हैं कि कयामत तक मस्जिद रहेगी । अब इसको सनातनियों की सहिष्णुता कहें, कायरता कहें, अकर्मण्यता कहें या सेक्युलर हिन्दुओं की बुद्धिहीनता कहें ? जिसके चलते मुग़ल काल में हिन्दू अपने धर्म स्थलों को खंडित होते देखते रहे।
उसके बाद धर्म के नाम पर बंटवारा होने के पश्चात भी अपने धार्मिक स्थलों को पुनर्जीवित न करके धार्मिक तुष्टिकरण में कट्टरपंथियों का चरण वंदन करते रहे । अब सत्य प्रदर्शित होने के पश्चात भी ओवैसी जैसे मजहबी लोगों की धमकियां भी हिन्दू समाज सहज ही स्वीकार कर रहा है । गजब बात है जो इसमें भी सेक्युलर हिन्दू आपसी भाईचारे की बात करते हैं। वास्वत में आज उन हिन्दुओं को यह क्यों नहीं दिख रहा की मुग़ल काल में जिस तरह हिन्दू धर्म को अपमानित करने हेतु चिन्हित करके हिन्दुओं के मुख्य तीर्थस्थलों को खंडित किया गया आज भी मुस्लिम समाज को उसकी कोई आत्मगिलानी नहीं है । अपितु सत्य को स्वीकारने के स्थान पर अक्रान्ताओं द्वारा किए गए कुकृत्य के समर्थन में मुस्लिम समाज संगठित होकर खड़ा है ।
वीडियोग्राफी का विरोध क्यों हो रहा था, अब यह सर्वविदित हो चूका है । जिस तरह ओवैसी मुस्लिम समाज की संख्या के दम पर संपूर्ण हिन्दू समाज को धमकी भरा सन्देश दे रहे हैं, तो क्या यह न्यायालय के आदेश की अवमानन्ना नहीं है ? आज भी हिन्दू समाज मुस्लिम आक्रांताओं के कुकृत्य एवं अपने स्वर्णिम इतिहास को नहीं समझ पाया है तो इसका मुख्य कारण लोभी धर्मगुरु एवं कायरता व सत्ता के लालच से भरे हुए राजनेताओं का नेतृत्व है ।
वस्तुत: सत्य जानने के पश्चात भी तर्क-वितर्क-कुतर्क करना, भययुक्त होकर सेक्युलर बनने का नाटक करना और अपने धर्म तथा संस्कृति के स्वाभिमान की सुरक्षा हेतु सजग न होना एवं विमुख होकर कट्टरवादियों के कुकृत्यों का विरोध न करना मजहबी लोगों के मनसूबों को निश्चित ही बल देता है । इसलिए विचार करें जो अपने को सनातनी कहते हैं वे सत्य को जानकर चुप रहने या विरोध करने का प्रयास कर रहे हैं वे वास्तव में अपनी संस्कृति को क्या समाप्त करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ रहे? यह विचार आज ऐसे सभी लोगों को गंभीरतापूर्वक करना चाहिए ।
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