ब्‍लॉगर

कोरोना संकट में नेताओं की जुबानी जंग

 

अनिल निगम

आज संपूर्ण भारत कोरोना वायरस के चलते भयावह संकट से जूझ रहा है। हजारों परिवार इससे बरबाद हो चुके हैं और लाखों लोगों के सिर पर अब भी खतरा मंडरा रहा है। लगातार लोग कोरोना से जंग हार कर मौत की आगोश में जा रहे हैं,लेकिन आज भी अनेक नेता अपनी सियासी रोटी सेंकने से बाज नहीं आ रहे हैं। वास्‍तविकता तो यह है कि इस भयावह संकट के दौर में नेताओं से यह आशा की जाती है कि वे परस्‍पर मतभेद भुलाकर मानवसेवा पर अपना ध्‍यान केंद्रित करें। अफसोस कि नेता अपनी जुबानी जंग से देश की जनता को भ्रमित करने के काम में जुटे हुए हैं। नेताओं के इन बयानों का जनता और देश की दशा और दिशा पर क्‍या प्रभाव पड़ता है? इसका विश्‍लेषण करने के पहले इस बात को समझना जरूरी है कि कौन से ऐसे बयान हैं, जिन्‍होंने प्रतिकूल प्रभाव डाला है।

उत्‍तर प्रदेश और बिहार में नदियों में बहाए गए शवों के बारे में राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि गंगा मां की रेत से दिखता हर शव का कपड़ा कहता है कि उस रेत में सिर दफनाए मोदी सिस्‍टम रहता है। उनकी इस टिपपणी से ऐसा लगता है कि इस सबके लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही जिम्‍मेदार हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में बयान दिया कि कोरोना वायरस का जो सिंगापुर में नया वैरिएंट मिला है, वह बच्‍चों के लिए अत्‍यंत खतरनाक है। यह वैरिएंट भारत में तीसरी लहर के रूप में आ सकता है। इसलिए भारत को सिंगापुर की हवाई यात्राएं अविलंब बंद कर देनी चाहिए। केजरीवाल के इस बयान को सिंगापुर ने बेहद गंभीरता से लिया और भारत के उच्‍चायुक्‍त को बुलाकर इस पर पर कड़ा प्रतिरोध भी दर्ज कराया।

इसके पहले देश भर में ऑक्‍सीजन की कमी पर भी खूब बयानबाजी हुई। कांग्रेस नेता व सांसद राहुल गांधी ने कई ट्वीट कर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के लिए निशाना साधते हुए कहा, इस भयावह दौर में चुप्पी साधने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को धन्यवाद। राहुल गांधी के इसी बयान पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पलटवार किया। उन्‍होंने अपने ट्वीट में कहा कि देश में ऑक्सीजन की न कमी है ना होगी, परेशान सिर्फ गिद्ध वाली दूषित राजनीति करने वालों से है। इसी तरह से बिहार में पूर्व मुख्‍यमंत्री लालू यादव और मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने भी एक दूसरे पर जमकर कीचड़ उछाला।

दिलचस्‍प यह है कोरोना वैक्‍सीन की कमी का रोना रोने वाले अनेक नेताओं ने वैक्‍सीन की उपयोगिता और विश्‍वसनीयता पर सवाल उठाए थे। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वैक्सीन को बीजेपी की वैक्सीन तक कह दिया था। उन्‍होंने कहा कि ‘मैं तो नहीं लगवाऊंगा भाजपा की वैक्सीन।’ पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी सहित अनेक नेताओं ने इस पर कई सवाल दागे थे। इस संबंध में भारत बॉयोटेक के डॉ. कृष्णा एल्ला को कहना पड़ा था कि हमने अपना काम ईमानदारी से किया है लेकिन कोई हमारी वैक्सीन को पानी कहे तो बिल्कुल मंजूर नहीं होगा। हम भी वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने अपना काम किया है। कुछ लोगों के जरिए वैक्सीन का राजनीतिकरण किया जा रहा है।


यह बात सोलह आने खरी है कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में विपक्ष का सशक्‍त होना जरूरी है। अगर विपक्ष सशक्‍त होता है तो देश के शासन और प्रशासन द्वारा की जाने वाली गलतियों पर अंकुश रहता है। लेकिन विपक्ष को चाहिए कि वह धरातल पर काम करे, शोध, अनुसंधान के पश्‍चात सत्‍य पर आधारित तथ्‍यों के आधार पर ही बात करे। आज राजनीति में अब एक दौर चल गया है कि चाहे जो भी हो, विपक्ष को हर मुद्दे का विरोध करना है।  यही कारण है कि  सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयर स्ट्राइक या फिर कोरोना की वैक्सीन, विपक्ष ने सभी पर सवाल उठाए। केंद्र सरकार का विरोध करने में विपक्षी नेता भूल गए कि वे कोरोना वैक्सीन और सर्जिकल स्‍ट्राइक का विरोध करके सरकार का नहीं, बल्कि देश के वैज्ञानिकों और सैनिकों का अपमान कर रहे हैं। बिना शोध अथवा अनुसंधान के केजरीवाल का सिंगापुर के नए वैरिएंट का बखेड़ा खड़ा करना, नदी में प्रशासन द्वारा शवों को बहाने अथवा ऑक्‍सीजन के बारे में अनर्गल बयानबाजी से देश के लोगों में भय और अविश्‍वास का माहौल पैदा हो रहा है।

आज देश जिस तरह से संकट के दौर से गुजर रहा है, उसके लिए राजनैतिक दलों को इन मुद्दों पर सियासी रोटियां सेंकने से बाज आना चाहिए।

 

(लेखक स्‍वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं।) 

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