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फ्रांस में सेना के हस्तक्षेप के लिए है बढ़ रहा जन समर्थन

पेरिस। पिछले दिनों फ्रांस(France) की सेना(Army) के 20 रिटायर्ड जनरलों और लगभग 1000 पूर्व सैनिकों ने जो खुला पत्र जारी किया था, इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) की सरकार ने भले उसकी निंदा की हो, लेकिन देश के बहुत बड़े जनमत में उसके लिए समर्थन जाहिर हुआ है। पूर्व सैनिकों ने उस बयान में चेतावनी दी थी कि इस्लामिक गुटों (Islamic groups) की वजह से फ्रांस (France) बिखर रहा है और गृह युद्ध (Civil war) के कगार पर है। उन्होंने कहा था कि अगर मैक्रों सरकार(Macron government) इस स्थिति को संभालने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती है, तो सेना को सत्ता संभाल लेनी चाहिए।
राष्ट्रपति मैक्रों के नाम लिखे उस खुले पत्र की फ्रांस के प्रधानमंत्री ज्यां कास्ते ने कड़ी निंदा की थी। साथ ही उस बयान पर दस्तखत करने वाले वर्तमान और पूर्व सैनिकों के खिलाफ अनुशासन की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। लेकिन एक पत्रिका में छपे और एक फ्रेंच टीवी चैनल पर शुक्रवार को दिखाए गए जनमत सर्वेक्षण के मुताबिक फ्रांस के 73 फीसदी लोगों ने देश की हालत के बारे में पूर्व सैनिकों के आकलन का समर्थन किया है।



सर्वे में 84 फीसदी लोगों ने राय जताई कि फ्रांस में हिंसा बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि पूर्व सैनिकों ने अपने खुले पत्र में लिखा था कि देश के सामने बहुत गंभीर समय है। फ्रांस खतरे में है। उन्होंने कहा था कि मौजूदा अफरा-तफरी का नतीजा गृह युद्ध के रूप में हो सकता है। इसलिए अगर राष्ट्रपति मैक्रों ने सख्त कदम उठाने में टालमटोल की, तो हजारों मौतों के लिए वही जिम्मेदार होंगे।
धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी की नेता मेरी ली पेन ने तुरंत बयान जारी करने वाले पूर्व सैनिकों का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि देश को बचाने के लिए संघर्ष करना देशभक्तों की जिम्मेदारी है। ताजा सर्वे से ऐसा लगता है कि ली पेन ने जनता के मूड को देखते हुए पूर्व सैनिकों के उस बयान का समर्थन किया, जिसे सरकार ने भड़काऊ और देश के संविधान के खिलाफ बताया है।
सर्वे में 58 फीसदी लोगों ने कहा कि वे पूर्व सैनिकों की कही बात का पूरा समर्थन करते हैं। 49 फीसदी ने राय जताई कि सेना को बिना सरकार के कहे भी उन हालात में हस्तक्षेप करना चाहिए, जैसा येलो वेस्ट आंदोलन के दौरान हुए दंगों के समय पैदा होते रहे हैं। 74 फीसदी लोगों ने कहा कि नस्लभेद खत्म करने के लिए उठाए गए कदमों का उलटा असर हो रहा है। इससे फ्रांस के प्रतीकों पर हमले हो रहे हैं और देश के अंदर विभाजन पैदा हो रहा है। जबकि सिर्फ एक तिहाई लोगों ने यह राय जताई कि खुले पत्र पर दस्तखत करने वाले जनरलों और दूसरे सैनिकों या पूर्व सैनिकों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
इस बीच मैक्रों सरकार ने ऐसी कार्रवाई सचमुच शुरू कर दी है। फ्रांस से मौजूदा सेनाध्यक्ष फ्रांक्वां लेकोइन्ते ने बीते गुरुवार को कहा था कि ऐसे 18 मौजूदा सैनिकों की पहचान की गई है, जिन्होंने खुले पत्र पर दस्तखत किए। उनके खिलाफ उच्च सैनिक अदालत में मुकदमा चलाया जाएगा।
लेकिन ताजा सर्वे नतीजे मैक्रों सरकार की चिंता बढ़ाने वाले हैं। इसका संकेत है कि देश के ज्यादातर लोग उसकी क्षमता पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। दूसरी तरफ इसे ली पेन के लिए अच्छा संकेत समझा जा रहा है। अगले साल फ्रांस में राष्ट्रपति का चुनाव होना है। माना जा रहा है कि उसमें ली पेन का ही मैक्रों से मुख्य मुकाबला होगा। गौरतलब है कि 2015 से अब तक फ्रांस में हुए आतंकवादी हमलों में 260 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 900 से ज्यादा घायल हुए हैं। इसके अलावा इस्लामिक संगठनों ने शहरों के अंदर अपनी अलग-थलग बस्तियां बना ली हैं। इसका असर अब जनमत पर देखने को मिल रहा है।

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