ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे


खर्चा बचाने के लिए नया तोड़
उपचुनाव में प्रत्याशियों को चुनाव 28 लाख रुपए में निपटाना है। यह सभी जानते हैं कि आजकल चुनाव में 28 लाख तो ऊंट के मुंह में जीरे के समान लगता है। भाजपा के बड़े नेताओं ने खर्च कम करने का तोड़ निकाला और मंडल् सम्मेलन दूसरी विधानसभा में करवा दिए। पहला उज्जैन में तो दूसरा राऊ में। तब तक तुलसी पहलवान प्रत्याशी भी घोषित नहीं हुए थे। दोनों सम्मेलनों में कार्यकर्ताओं को खूब खिलाया भी। बेचारे कांग्रेसी सोचते रहे कि अब इनकी शिकायत कैसे करें? वैसे ऐसी कुछ और जुगाड़ भाजपाई आने वाले दिनों में लगाने वाले हैं।

युवा मोर्चा का लीगल सेल भारी पड़ा
दीनदयाल भवन में विधि प्रकोष्ठ को अस्थायी कार्यालय दिया है, ताकि वे चुनाव में पार्टी की कानूनी मदद कर सके और कांग्रेस की कानून विरोधी गतिविधियों पर भी निगाह रख सके। 50 से अधिक अभिभाषकों की सप्ताह के अलग-अलग दिनों में ड्यूटी भी लगा दी है, लेकिन इन पर युवा मोर्चा का लीगल सेल भारी पड़ रहा है। पिछले दिनों सांवेर उपचुनाव प्रभारी रमेश मेंदोला ने भी लीगल सेल के एक पदाधिकारी की तारीफ कर डाली। उन्होंने कहा कि लीगल सेल ने अभी तक दर्जनों शिकायत कर डाली, लेकिन विधि प्रकोष्ठ की इतनी बड़ी टीम इनकी बराबरी नहीं कर पाई? इसके बाद युवा मोर्चा की लीगल सेल का सीना चौड़ा हो गया। वैसे अब विधि प्रकोष्ठ वालों ने भी अपने आंख-कान कांग्रेस पर गढ़ाना शुरू कर दिया है।

चुनावी कैम्पेन से दिग्गी गायब
3 नवम्बर को उपचुनाव का मतदान है और पूरे प्रदेश उपचुनाव का आगाज हो चुका है, लेकिन दिग्विजयसिंह गायब है। न वो खुद दिख रहे हैं ना चुनावी कैम्पेन में उनके बयान नजर आ रहे हैं। उनके स्थान पर जेवी यानि उनके बेटे जयवर्धन हर सीट पर किला लड़ाने पहुंच रहे हैं। उन्हें आगर-मालवा की जवाबदारी विशेष रूप से सौंपी गई है। दिग्गी के चुनाव में सक्रिय नहीं रहने के कई मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन उनके नजदीकियों का कहना है कि दिग्गी भोपाल और दिल्ली से निगाह बनाए हुए हैं और आखरी समय में सक्रिय होंगे।

जगमोहन का मोह क्यों टूटा भाजपा सेे
कभी स्व. प्रकाश सोनकर के खास में गिने जाने वाले जगमोहन वर्मा का भाजपा सेे मोहभंग हो गया है। उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया है और इसके पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। कोई कह रहा है कि हम्मालों और भाजपा के बीच मध्यस्थता वे कर रहे थे और इस मामले में उन्हें पार्टी से कोई मदद नहीं मिली तो कोई कह रहा है कि भाजपा में उन्हें अब वो तवज्जो नहीं मिलती है जो पहले मिलती थी। गुड्डू उनके समाज के हैं और उनकी ओर से ही ये दांव चला है कि जगमोहन भाजपा से दूर हो जाए तो नुकसान हो जाए। वैसे दीनदयाल भवन के अंदर की खबर यह है कि जगमोहन के इस्तीफे को पार्टी गंभीरता से नहीं ले रही है। नेताओं ने स्पष्ट कह दिया कि एक बार उनसे बात कर लो और नहीं माने तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो।

बढ़ गई बिजली वालों की धड़कन
गुरूवार को मुख्यमंत्री इन्दौर में थे। बायपास के एक गार्डन में भाजपाइयों से बात करने आए थे। जैसे ही वे आए बिजली कंपनी के अधिकारी भी सक्रिय हुए और गार्डन के कर्मचारी से कहा कि जनरेटर चालू करो। कर्मचारी वहां से यह कहते हुए खिसक गया कि सेठ ने मना किया है और कहा है कि बिजली जब जाएगी तब जनरेटर चालू होगा। अब अधिकारियों की जान सांसत में कि बिजली चली गई तो किसी न किसी की फाइल जरूर निपटेगी, जैसी पिछली बार सीएम को ठंडा खाना खिलाने पर निपटी थी। अधिकारी गार्डन मालिक को फोन लगाते रहे, लेकिन उसने बिजली कंपनी के अधिकारियों को तवज्जो नहीं दी।

सत्तू पटेल ने लूट लिया मजमा
भाजपा में गए नेताओं की लाख कोशिशों के बाद सत्तू पटेल अपनी जगह टिके हुए हैं। सांवेर और अन्य सीटों पर उन्हें जवाबदारी दी गई है और वे वहां नजर भी आ रहे हैं। जयवर्धन इंदौर में थे तो सत्तू ने अपने यहां नेताओं और मीडिया को इक_ा कर लिया। मीडिया भी अच्छी संख्या में पहुंचा और जेवी को जो फायदा जनसंपर्क में नहीं मिला वो फायदा उनको सत्तू की स्कूल में मिल गया। मीडिया वेटेज तो मिला ही, सभी नेताओं से मुलाकात भी हो गई। फिर बाद में वे जेवी के सारथी के रूप में भी रहे। वैसे दूसरे कांग्रेसी नेता जेवी की गाड़ी का स्टेयरिंग पकडऩे के लिए जद्दोजहद करते दिखाई दिए।

गुड्डू के लिए संजू की मेहनत
विधायक संजय शुक्ला जिस काम में जुट जाते हैं उसमें ऐसे जुटते हैं कि सबकुछ छोड़ देते हैं। यही अभी सांवेर विधानसभा में नजर आ रहा है। सुबह अपने घर पर क्षेत्र के लोगों से मिलने के बाद वे अपनी टीम के साथ सांवेर में निकल जाते हैं और शाम को ही वापस पहुंचते हैं। गुड्डू के लिए संजू की मेहनत को देखकर दूसरे कांग्रेसी भी हतप्रभ हैं कि शुक्ला आखिर इतना समय कैसे निकाल रहे हैं?

… और अंत में
चुनाव के वक्त ही भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की याद आती है और उन्हें ऐसे फील्ड में न भेजकर उनका उपयोग विशेष तौर पर किया जाता है। अब वॉर रूम में ऐसे ही नेताओं को जगह दी गई है और उन्होंने अपना काम शुरू भी कर दिया है, लेकिन मीडिया से जुड़े कुछ नेताओं को तवज्जो नहीं मिलने से कल वॉर रूम के शुभारंभ में उनके चेहरे देखने लायक थे।

 

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