ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

अपनी ही सरकार की घेराबंदी पर नाराज संगठन
होली जलाने को लेकर उमेश शर्मा (Umesh Sharma) के विरोध की लपट ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि नगर निगम ने कांग्रेसियों (Congressmen) को टैक्स (Tax) दोगुना करने और नया टैक्स लादने के रूप में एक मुद्दा और दे दिया। इस बार उमेश मुखर नहीं हुए, लेकिन जिन लोगों को शहर में महापौर चुनाव लडऩा था, उनमें सबसे पहली आवाज गोपी नेमा (Gopi Nema) की आई तो विधायक मालिनी गौड़ ने भी सुर में सुर मिलाकर मुख्यमंत्री से बात करने का कह दिया। फिर भला साब यानि मोघे भी कहां चुप रहने वाले थे। उन्होंने जाहिर कर दिया कि इस टैक्स वृद्धि से नाराज हैं और उन्होंने भी मुख्यमंत्री से बात कर ली है। सुदर्शन गुप्ता ने असम से ही इस मामले में आपत्ति जता दी। हालांकि दूसरे दिन शासन की ओर से मंत्री सिलावट ने इसे स्थगित करार दे दिया। यह दूसरा मौका था जब अपनी ही सरकार में लिए गए इस फैसले पर भाजपा नेताओं को विरोध का सामना करना पड़ा। भले ही नेताओं की जीत हो गई हो, लेकिन भाजपा संगठन नाराज हैं और इन नेताओं को समझा दिया गया है कि जो भी बोलना हो संगठन के अंदर बोलो। बाहर बोलने से विपक्षियों को मौका मिलता है।

दो फाड़ हो गया अल्पसंख्यक मोर्चा
भाजपा ( BJP)  की राजनीति अल्पसंख्यकों में बहुत ही कम चलती है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो तमाम विरोध के बाद पार्टी का झंडा उठाए हुए हैं। फिलहाल तो इस अल्पसंख्यक मोर्चा में दो फाड़ नजर आ रही है। एक काम करने वाला गुट है और दूसरा कॉलर ऊंची कर घूमने वाला। काम करने वाले का कार्यकाल खत्म होने को है और नए-नए नाम सामने आ रहे हैं। इसमें प्रदेश स्तर के एक नेता अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

दूध से जले हैं, छांछ तो फूंककर पिएंगे ही
भाजपा के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे (Gaurav Ranadive) अपने स्टॉफ के साथ कोरोना से जंग लडक़र वापसी कर चुके हैं। इसके बाद उन्होंने रोको-टोको अभियान पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है। जैसे ही किसी का मास्क नाक के नीचे उतरा वे तुरंत टोक देते हैं। जिसके पास मास्क नहीं होता, उसे अपनी गाड़ी से मास्क निकालकर दे भी देते हैं। कोरोनाकाल में सावधानी के बावजूद संक्रमित हुए गौरव अब सबको आगाह कर रहे हैं और अपने अनुभव भी बता रहे हैं।

मास्क पहनने में अटक गए पूर्व मंत्री
भाजपा नेताओं पर आक्रामक रहने वाले पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा (Sajjan Singh Verma) पिछले दिनों एक कार्यक्रम में ठीक से मास्क नहीं पहन पाए। दरअसल खादीवाला प्रतिमा पर वे माल्यार्पण करने पहुंचे थे। मीडिया के कैमरे देखकर उन्होंने सर्जिकल मास्क लगाया, लेकिन वह उलटा लग गया। पास में खड़े शहर विनय बाकलीवाल ने उनकी मदद की, लेकिन वे फिर भी मास्क नहीं पहन पाए। यही नहीं बाद में जब वे जागरूकता के लिए दूसरे कार्यकर्र्ताओं को मास्क पहनाने लगे तो कई कार्यकर्ताओं ने अपना मास्क निकालकर जेब में रख लिया और सजन भिया के हाथों मास्क पहनकर ऐसे खुश हो गए, जैसे उन्हें कोई बड़ा पुरस्कार मिल गया हो।


विरोध के बहाने ही सही, एकजुट तो होने लगे
इन दिनों कांग्रेसी गुटों के छत्रपों को एकसाथ देखकर हर कोई आश्चर्यचकित हो रहा है। जब से संजय शुक्ला (Sanjay Shukla) के सिर महापौर चुनाव का चेहरा सजा है, तब से कांग्रेस का हर बड़ा नेता उनके साथ नजर आ रहा है। इसे कोई शुक्ला का प्रभाव कह रहा है तो कोई कह रहा है कि 15 साल के बाद 15 माह की सत्ता को जिस तरह से खोया है, उसने कांग्रेसियों को सबकुछ सिखा दिया है। देखना तो यह दिलचस्प है कि कांग्रेसियों की एकता की ये गाड़ी कहां तक चल पाती है, क्योंकि निगम चुनाव अभी दूर है और प_ों ने भी बड़े नेताओं से किनारा करना शुरू कर दिया है।


अब वैक्सीनेशन में अवसर तलाश रहे नेता
कोरोना वैक्सीनेशन (Vaccination) को लेकर शहर में जोर-शोर से काम हो रहा है, लेकिन उन नेताओं ने भी वैक्सीन के कैम्प लगवाना शुरू कर दिए हैं जो अपने वार्ड से चुनाव लडऩा चाहते हैं। भाजपा के दावेदारों में तो होड़ाहोड़ मची है कि कौन कैम्प लगवा सकता है। वार्ड स्तर पर कैम्प लग रहे हैं और बाकायदा सोशल मीडिया पर प्रचारित किया जा रहा है कि फलाने भिया ने कैम्प लगवाया है, जबकि पूरा खर्चा सरकार का है। इसमें कांग्रेसी नेता पीछे रह गए हैंं। वे कैम्प लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अधिकारियों से भाव नहीं मिल रहे हैं।


सिलावट को याद आया चलो-चलो
भाजपा में आए कांग्रेसी एक ही बात रटते थे कि जब भी वे कमलनाथ (Kamal Nath)  से कोई बात करने जाते थे तो वे कह देते थे चलो-चलो। इसलिए हमने कमलनाथ को ही चलता कर दिया। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान सहित भाजपा के नेताओं ने भी कई बार अपने भाषण में चलो-चलो दोहराया। हालांकि अब सब इसे भूल गए हैं, लेकिन मंत्री सिलावट को सब याद है। पिछले दिनों निगम की करवृद्धि का जो मामला उठा, उसमें मंत्री सिलावट पहले स्थगित और बाद में रद्द होने का कहते रहे। मीडिया जानना चाह रही थी कि स्थगित और रद्द में अंतर बताएं, क्योंाकि दोनों ही अलग-अलग है। गौरव रणदिवे बोलते, इसके पहले ही सिलावट कुर्सी से खड़े हुए और रणदिवे से कहा कि चलो-चलो। पीछे से किसी ने आवाज लगाई कि पेलवान को चलो-चलो की याद आ गई है, इस पर वे मुड़े और मुस्कुरा दिए।

शहर में जिस तरह से कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं, उसको देखते हुए कुछ सख्त निर्णय होने की संभावना आने वाले दो-चार दिनों में हैं। वैसे कुछ नेता लॉक डाउन के मूड में हैं तो कुछ नहीं। उनका कहना है कि पहले दौर में तो लोगों ने होड़-होड़ में खूब खिलाया, लेकिन अब सबकी हालत खराब है और लॉक डाउन हो गया तो… -संजीव मालवीय

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