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21 से 40 साल के युवा सर्वाधिक कोरोना पीडि़त और वैक्सीन से भी वंचित

 

केन्द्र की गजब वैक्सीनेशन पॉलिसी… इंदौर में 26362 युवा संक्रमित… मार्च के महीने में ही 10 हजार से ज्यादा मिले
भोपाल। वैक्सीन के विश्वगुरु घोषित करवाकर अपनी पीठ खुद ही थपथपाने वाली केन्द्र की मोदी सरकार (Modi Sarkar) पहले कोरोना संक्रमण को रोकने और फिर तेजी से वैक्सीनेशन (Vaccination) करवाने में फिसड्डी साबित हुई है। 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को ही वैक्सीन (Vaccine) लगवाने की अनुमति अभी दी गई है, जबकि इंदौर के ही आंकड़े अगर गत एक वर्ष, जबसे कोरोना संक्रमण (Corona Infection) शुरू हुआ तब से देखे जाएं तो 21 से 40 वर्ष के युवा सबसे अधिक संक्रमित हुए, जिन्हें वैक्सीन से वंचित रखा गया है। 26362 इस उम्र के युवा कोरोना पॉजिटिव निकले हैं और अभी मार्च के महीने में जो 10 हजार 63 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं उनमें भी सर्वाधिक 4 हजार 7 इस आयु वर्ग के ही हैं। जबकि 41 से 60 साल की उम्र वाले 23851 और 61 से 80 साल की उम्र वाले 11129 लोग संक्रमित हुए। वहीं 80 साल या उससे अधिक उम्र के 945 और शून्य से 20 साल तक की उम्र के 7667 कम उम्र के बच्चे भी संक्रमण का अब तक शिकार हो चुके हैं। कुल 69915 पॉजिटिव मरीजों में से सर्वाधिक युवा वर्ग चपेट में आया और पिछले दिनों कुछ कम उम्र के युवाओं की मौत तक संक्रमण बढऩे के कारण हो गई।


जब देश में ही दोनों कोरोना वैक्सीन (Vaccine) बन रहे हैं तो जनता तक पहुंच क्यों नहीं रहे..? 6 करोड़ से अधिक डोज (Dose) विदेशों को दिए गए और उसकी तुलना में देश में अब जाकर उतने डोज लोगों को लगे हैं और उसमें भी ढेर सारे बंधन लगा रखे हैं। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के अलावा 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को ही वैक्सीन (Vaccine) लगाए जा रहे हैं। पहले तो 45 साल से अधिक उम्र के उन्हीं लोगों को वैक्सीन (Vaccine) लग रहे हैं, जो बीमारियों से पीडि़त हों, जबकि केन्द्र सरकार डंके की चोंट पर यह कहती रही है कि वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है और सभी को लगवाना भी है। अभी भी युवा वर्ग बड़ी संख्या में वैक्सीन (Vaccine) लगवाना चाहता है, क्योंकि एक्सपोजर में ये ही रहता है। अधिक उम्र के लोग तो घरों में रहते हैं, लेकिन 21 से 40-45 और 50 साल के लोगों को कामकाज से लेकर अन्य कारणों से बाहर रहना पड़ता है। इंदौर के ही आंकड़े पिछले साल मार्च जब कोरोना संक्रमण शुरू हुआ था, तब से लेकर इस मार्च के देखें तो 69915 कुल मरीजों में से सर्वाधिक 26362 कोरोना पॉजिटिव 21 से 40 साल की उम्र के युवा हुए हैं। उसके बाद 41 से 60 साल की उम्र वाले चपेट में आए। यहां तक की अभी इस साल मार्च के महीने में जो 10 हजार 63 पॉजिटिव मरीज घोषित हुए उनमें भी सबसे अधिक संख्या 21 से 40 साल के युवाओं की 4 हजार 7 रही है और उसके बाद 41 से 60 साल की उम्र वाले 3204, 61 से 80 साल वाले 1472 और शून्य से 20 साल वाले 1247 तथा 80 साल से अधिक उम्र के 133 पॉजिटिव निकले हैं। सभी चिकित्सकों और विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि गर्भवती महिलाओं और 18 साल से कम उम्र के बच्चों को छोडक़र सभी के लिए वैक्सीनेशन शुरू कर दिया जाना चाहिए, तभी बढ़ते कोरोना संक्रमण पर अगले 3-4 महीनों में काबू पाया जा सकेगा, क्योंकि बार-बार लॉकडाउन या प्रतिबंध लगाने से कोई फायदा नहीं है। जब भी लॉकडाउन या प्रतिबंध हटते हैं, कुछ समय बाद फिर तेजी से मरीज बढऩे लगते हैं। जब वैक्सीन सुरक्षित और कोरोना से लडऩे में प्रभावी है तो फिर केन्द्र सरकार अपनी पॉलिसी में बदलाव क्यों नहीं करती..? कम से कम अभी उन राज्यों में ही 18 से अधिक उम्र वाले सभी लोगों को वैक्सीन लगवाना शुरू की जाए, जहां पर तेजी से संक्रमण फैल रहा है, जिसमें महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब जैसे राज्य प्रमुख हैं। यह भी एक तथ्य सामने आया कि कोरोना से चपेट में आने वालों में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में ज्यादा है। गत वर्ष की तुलना में अभी मार्च और अप्रैल के शुरुआती दिनों में संक्रमण की दर 15 से 20-22 फीसदी तक पहुंच गई है और घोषित से ज्यादा अघोषित मरीज हर 24 घंटे में निकल भी रहे हैं।


निजी लैबों ने बंद की होम कलेक्शन सुविधा
मेडिकल कालेज की लैब में जहां सैम्पलों की संख्या बढ़ गई, तो निजी लैबों (Private Lab) में तो भीड़ लगी है। हालत यह है कि 24 घंटे में भी नम्बर नहीं आ रहा और कई लैबों ने तो होम सैम्पल कलेक्शन (Home Sample Collection)  की सुविधा भी बंद कर दी है। सेन्ट्रल लैब ने तो बकायदा इस आशय का विज्ञापन ही छपवा दिया है कि 15 अप्रैल तक होम कलेक्शन नहीं कर सकेंगे, क्योंकि सैम्पलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इतना ही नहीं, रिपोर्ट देने में भी अब समय लग रहा है। वरना पहले निजी लैब से सुबह सैम्पल देने पर रात तक रिपोर्ट मिल जाती थी, मगर अब एसएमएस पर रिपोर्ट आने का समय कम से कम 30 घंटे या उससे भी अधिक बताए जा रहे हैं। इन निजी लैबों ने जगह-जगह कलेक्शन सेंटर भी शुरू कर दिए और कार में बैठे-बैठे भी मरीजों के सेंटर के बाहर सैम्पल लिए जा रहे हैं। आरटीपीसीआर टेस्ट के लिए निजी लैब 999 रुपए का शुल्क ले रही है, मगर अभी यहां पर भी सैम्पल देने वालों की प्रतीक्षा सूची लम्बी हो गई है। दूसरी तरफ सरकारी लैब में जांच करवाने पर 3 से 4 दिन में रिपोर्ट आती है और अभी उन लोगों को परेशानी उठाना पड़ रही है जो महाराष्ट्र-गुजरात या उन राज्यों की यात्रा कर रहे हैं जहां आने पर 72 घंटे की नेगेटिव रिपोर्ट मांगी जाती है।

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