महाराष्ट्र। महाराष्ट्र (Maharashtra) में शिवसेना (Shiv Sena) की एक महिला ने अपननी पार्षदी बचाने के लिए अपने ही बच्चे को पराया बता दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए इस तरह की हरकतें नहीं करनी चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शिवसेना की उक्त महिला नेता की चुनावी अयोग्यता को बरक़रार रखा। सोलापुर नगर निगम से पार्षद चुनी गई थीं।
बता दें कि दो से अधिक बच्चे होने के कारण उनका चुनाव रद्द कर दिया गया था और पार्षदी से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट से निराशा हाथ लगने के बाद वो सुप्रीम कोर्ट पहुँची थीं। जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने शिवसेना की अनीता मागर से पूछा कि आपने सिर्फ पार्षदी बचाने के लिए अपने बच्चे को नकार दिया? साथ ही नसीहत दी कि चुनाव जीत कर एक पद पाने के लिए अपने बच्चे को अस्वीकार न करें।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मागर की ओर से पेश वकील ने दावा किया कि मागर के केवल दो जैविक बच्चे हैं और तीसरा बच्चा पति के भाई का है। वकील ने कहा कि अदालत को बच्चे के हित में हस्तक्षेप करना चाहिए, क्योंकि अब उसके माता-पिता पर सवाल खड़ा हो गया है। वकील ने कहा कि बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में उसके माता-पिता का नाम अलग है लेकिन हाईकोर्ट ने मागर और उनके पति को उस बच्चे का माता-पिता माना। लिहाजा बच्चे के हितों को ध्यान में रखते हुए इस मामले में विचार करने की आवश्यकता है।
पीठ वकील की दलीलों से पूरी तरह से असंतुष्ट थी। पीठ ने मागर की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि चुनाव जीतने के लिए आपने यह कहानी बनाई थी। स्कूल के रिकॉर्ड के मुताबिक मागर उसकी मां है। जन्म प्रमाणपत्र को बाद में बदल दिया गया। कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यह सब किया गया। कोर्ट ने मागर से कहा कि हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। आपको अपने बच्चे के बारे में सोचना चाहिए।
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