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इंदिरा गांधी की हत्या के बाद संघ ने की थी राजीव की मदद, किताब द हाउस ऑफ सिंधियाज में दावा

भोपाल। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Former Prime Minister Indira Gandhi) की हत्या के बाद 1984 के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने उनके बेटे राजीव गांधी की मदद की थी। बीजेपी (BJP) के चुनावी मैदान में होने के बावजूद उसकी पितृ संस्था मानी जाने वाली आरएसएस ने उसका साथ छोड़ दिया था। यह दावा वरिष्ठ पत्रकार और लेखक ने अपनी हालिया प्रकाशित किताब द हाउस ऑफ सिंधियाज में दावा किया गया है कि 1984 के चुनाव में संघ के स्वयंसेवक कांग्रेस के लिए काम कर रहे थे। इसका कारण यह था कि संघ की इच्छा थी कि राजीव प्रधानमंत्री बनने पर अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता तैयार करें।
किताब में दावा किया गया है कि 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब लोकसभा के चुनाव हुए, तब राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को रेकॉर्डतोड़ जीत मिली थी। कांग्रेस ने 514 में से 404 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी को पूरे देश में केवल 2 सीटें ही मिल पाई थीं।



एक पत्रकार की लिखी इस किताब में बताया गया है कि इसमें कहीं न कहीं आरएसएस की भी भूमिका थी। संघ ने अपने स्वयंसेवकों को कांग्रेस के पक्ष में काम करने को कहा था। दरअसल, संघ चाहता था कि चुनाव के बाद राजीव प्रधानमंत्री बनें तो अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का दरवाजा खोलें।
चुनाव से पहले बाला साहब देवरस के छोटे भाई भाऊराऊ देवरस से राजीव की कम से कम आधा दर्जन मुलाकातों का जिक्र किताब में किया गया है। बाला साहव देवरस के साथ राजीव की एक गोपनीय मीटिंग का दावा भी किताब में किया गया है। इन मुलाकातों में राजीव के साथ अरुण सिंह, दिल्ली के तत्कालीन मेयर सुभाष आर्य और अनिल बाली भी मौजूद रहते थे। मुलाकातें कपिल मोहन के घर पर हुई थीं जो राजीव गांधी के पारिवारिक मित्र थे और शराब कंपनी के मालिक थे।
वहीं राजीव ने चुनाव से पहले ऐसा कोई वादा आरएसएस से किया था या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। इतना जरूर है कि प्रधानमंत्री बनने पर साल 1985 में विवादित स्थल का ताला राजीव ने खुलवाया था। राजीव ने तब देश में राम राज्य की स्थापना की बात भी कही थी। अयोध्या में अब राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। इसका श्रेय लेने की होड़ में कई बार कांग्रेस नेता यह तर्क रख चुके हैं। किताब के खुलासे के मुताबिक यह सब 1984 में राजीव और संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस के बीच हुई मुलाकातों का ही नतीजा था।

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