अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) का कब्जा हो जाने के बाद दुनियाभर (World) में फिर से राजनीतिक अनिश्चितता और चिंता के बादल छा गए हैं, क्योंकि जिस तरह तालिबान ने अफ़ग़ान पर अपना हुकूमत की उससे ऐसा माना रहा है कि इसके साथ कई और संगठन जुड़े हो सकते हैं, जबकि अफगान में सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और साजो-सामान पर अमेरिका (USA) और उसके सहयोगियों के ख़र्च किए गए अरबों डॉलर पर पानी फिर गया है। अफगानिस्तान में तालिबान की ताकत बढ़ने के पीछे एक बड़ी साजिश भी लग रही है।
हालांकि अभी सभी देश अपने नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकालने में लगे हुए इसके बाद ही आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा। इसी बीच अफगानिस्तान में तुर्किश नागरिकों की भलाई और अफगानिस्तान में अपने हितों की सुरक्षा के लिए किसी भी तरह के सहयोग के लिए तैयार है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन तालिबान की मदद के लिए अफगानिस्तान में सैनिकों को बनाए रखना चाहते हैं और उन्होंने लीबिया की तर्ज पर सैन्य समझौते की पेशकश की है। वह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तालिबान की भी मदद करना चाहते हैं। एर्दोगन ने काबुल एयरपोर्ट पर तुर्की के सैनिकों की मौजूदगी को बनाए रखने पर कहा कि इससे नए अफगानिस्तान प्रशासन को मदद मिलेगी। एर्दोगन का तालिबान पर यह रुख हैरान करने वाला है।
विदित हो कि एक दिन पहले इसी तरह बयान पाक आर्मी चीफ जनरल बाजवा ने पाकिस्तान मिलेट्री एकेडमी के एक कार्यक्रम में दिया था। पाक चीफ ने इस बात पर भी जोर दिया कि पूरी दुनिया को निष्पक्ष होकर अफगानिस्तान में शांति बहाल करने का प्रयास करना होगा। Share: