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उप्र: ओमप्रकाश राजभर के लिए आत्मचिंतन का अवसर

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

अस्थिर वैचारिक स्थिति व्यक्ति को विचलित बनाये रखती है। ऐसे लोग स्वयं विश्वास के संकट से घिर जाते हैं। सुहेलदेव पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर आज इसी अवस्था में हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्णय लिया था। उन्होंने भाजपा के साथ गठबन्धन किया। यह उनके व उनकी पार्टी के लिए सार्थक साबित हुआ। इसके पहले भी वह विधानसभा चुनाव लड़े थे लेकिन उन्हें कभी जीत नसीब नहीं हुई थी। भाजपा के साथ गठबंधन ने उनकी पार्टी को नया मुकाम व नई पहचान दी। वह स्वयं भी विधानसभा पहुंचे। उनकी पार्टी के चार विधायक भी विजयी रहे। भाजपा ने उन्हें पूरा सम्मान दिया। योगी आदित्यनाथ सरकार में वह कैबिनेट मंत्री बनाये गए।

जाहिर है कि यह उनके राजनीतिक जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय था। कैबिनेट मंत्री के रूप में बेहतर कार्य करने का उनके लिए अवसर था। लेकिन उन्होंने इस स्थिति को स्वभाविक रूप में स्वीकार नहीं किया। वह अस्थिर व असंतुष्ट बने रहे। भारत में संसदीय शासन व्यवस्था है। इसमें मंत्री परिषद सामूहिक दायित्व की भावना से कार्य करती है। यदि एक मंत्री के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव विधानसभा से पारित हो जाये तो पूरी मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना होता है। मंत्री पद के साथ ही गोपनीयता की शपथ भी लेनी पड़ती है। ओमप्रकाश राजभर ने मंत्री रहते हुए संविधान की इस भावना का सम्मान नहीं किया। वह जिस सरकार की कैबिनेट के सदस्य थे, उसी पर हमला बोलते थे। इस स्थिति को भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा हाईकमान ने बहुत समय तक बर्दाश्त किया। क्योंकि उनका गठबंधन धर्म के प्रति सम्मान भाव रहा है। यह उम्मीद की गई कि ओमप्रकाश राजभर भी गठबंधन धर्म का सम्मान करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हद पार होने के बाद मुख्यमंत्री ने उन्हें अपनी कैबिनेट से हटाने का निर्णय लिया। उसके बाद ओमप्रकाश राजभर दिग्भ्रमित रहे। पांच वर्षों में उन्हें भाजपा के साथ और भाजपा के बाद की स्थिति का भरपूर अनुभव हुआ। पहले उन्होंने एक अन्य पार्टी से भी सम्पर्क किया था लेकिन उन्हें भाजपा में जो सम्मान मिला था, वैसा अनुभव उनको नहीं हुआ। इसलिए बात आगे नहीं बढ़ी। इसके बाद दस पार्टियों के साथ भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने की कवायद हुई। इसकी शुरुआत ही हास्यास्पद थी। इसमें प्रतिवर्ष मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री बदलने की सौदेबाजी शामिल की गई। किसी का दूसरे पर विश्वास नहीं था। पहले राजनीतिक कदम के साथ ही इसके बिखरने की अटकलें शुरू हो गई।

बताया गया कि उत्तर प्रदेश में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तिहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के साथ सरकार बनाने का दावा करने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का उनसे मोहभंग हो गया है। ओमप्रकाश राजभर ने असदुद्दीन ओवैसी के साथ शुरू हो रही अपनी चुनावी यात्रा से खुद को अलग कर लिया। ये बात अलग है कि उन्होंने इसका कारण अपनी निजी परेशानी को बताया लेकिन बात इतनी सहज नहीं है। वस्तुतः ओवैसी की चाल ने ओमप्रकाश राजभर के राजनीतिक अस्तित्व को ही चुनौती मिल रही थी। ओवैसी के कदम उनके आधार को ही समाप्त करने वाला था।

ओवैसी ग़ज़नवी सेनापति सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की मजार पर गए थे। उनका सम्मान इस आक्रांता के प्रति था। इस प्रकरण के बाद मुरादाबाद सर्किट हाउस में उत्तर प्रदेश के पंचायत राज मंत्री भूपेंद्र सिंह ओमप्रकाश राजभर की मुलाकात ने सियासी हलचल मचा दी थी। इसे आगामी विधानसभा चुनाव के भाजपा के साथ सुलह समझौते से जोड़कर भी देखा जा रहा है। दोनों नेताओं ने इसे व्यक्तिगत मुलाकात बताया।

असदुद्दीन ओवैसी के साथ ओपी राजभर को गाजियाबाद में चुनावी यात्रा में शामिल होना होना था। जहां से दोनों ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, बुलंदशहर और संभल के पार्टी के कार्यकर्ताओं से मुलाकात के साथ ही मंच साझा करते हुए मुरादाबाद पहुंचते। वहां दोनों ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का साझा मंच वाला कार्यक्रम तय था। लेकिन राजभर ने ओवैसी के साथ शुरू हो रही अपनी चुनावी यात्रा से खुद को अलग कर लिया।

दूसरी ओर भाजपा ने विजेता भारतीय राजा सुहेलदेव को उचित सम्मान दिया। कुछ वर्ष पहले गाजीपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजा सुहेलदेव पर डाक टिकट जारी किया था। उन्होंने कहा था कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रति जिज्ञासा बढ़ेगी। नई पीढ़ी उनके शौर्य और देशभक्ति से प्रेरणा लेगी। इसके पहले भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बहराइच में राजा सुहेल देव की प्रतिमा का अनावरण किया था।

नरेंद्र मोदी ने गौरवशाली रूप में राजा सुहेल देव के प्रति श्रद्धा व्यक्त की थी। कहा था कि उनका नाम विजयी और यशस्वी भारतीय राजाओं में शुमार है। नरेंद्र मोदी के प्रयासों से उनको गरिमा के अनुकूल प्रतिष्ठा मिल रही है लेकिन उस ऐतिहासिक अवसर पर ओमप्रकाश राजभर शामिल नहीं थे। वोटबैंक की राजनीति करने वालों के बयान राजा सुहेल देव की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं थे।

महाराज सुहेलदेव ग्यारहवीं शताब्दी में हुए। उन्होंने बहराइच में गजनवी सेनापति सैयद सालार मसूद गाजी को पराजित कर मार डाला था। सत्रहवीं शताब्दी के फारसी भाषा के मिरात-ए-मसूदी में उनका उल्लेख है। राजा सुहेलदेव ने विदेशी आक्रांता की सवा लाख सेना के साथ कुटिला नदी के तट पर युद्ध किया। उनको पराजित कर हिन्दू धर्म की रक्षा की। जाहिर है कि यह ओमप्रकाश राजभर के लिए आत्मचिंतन का अवसर है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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