इंदौर न्यूज़ (Indore News)

हवाएं सुधरी इंदौर की, 254 के स्तर पर पहुंच चुका प्रदूषण 58 पर आया

सन्नाटे भरे शहर में हवाओं ने ली सांसें…
इंदौर।  कोरोना काल (Corona period) में शहर के कंपकंपाते हालात जहां दर्द… पीड़ा और मौतों से आहत किए बैठे हैं, वहीं राहत की खबर यह है कि शहर में जानलेवा स्तर तक पहुंच चुका प्रदूषण का स्तर मात्र 20 प्रतिशत पर रह गया है। सन्नाटे से भरे शहर में न सडक़ों पर वाहन है और न ही उद्योग-धंधों की चिमनियों का धुआं, न नगर निगम की खुदाई नजर आ रही है और न ही धूल का गुबार उठ रहा है… खेतों में भी पराली नहीं जलने से प्रदूषण ठहर-सा गया है। इंदौर की कान्ह और सरस्वती नदी का जल भी इस कदर साफ-सुथरा हो गया है कि वहां मछलियां (fishes)  नजर आने लगीं।
इंदौर शहर में जहां विगत दिनों वायु गुणवत्ता सूचकांक (air quality index)  (एक्यूआई) (air quality index) का स्तर 4 अप्रैल को 254 तक पहुंच गया था, वह मई में वर्ष 2021 के न्यूनतम स्तर 58 पर आ गया। अप्रैल माह में खराब स्तर तक जा पहुंचा वायु गुणवत्ता सूचकांक यदि निरंतर बना रहता तो वह शहर को रेड जोन की स्थिति में लाकर खड़ा कर देता, मगर शहरवासियों के लिए राहत की बात यह है कि मई में शहर की प्राणवायु शुद्ध हो गई है, वहीं वातावरण की वायु में प्रदूषण के कण का स्तर भी घट रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार हवा की गति बढऩे पर प्रदूषण में और कमी आएगी।

घट रहे हैं कण और उनका आकार
शहर के वायु स्तर में पीएम 10 घटकर 10 तो पीएम 2.5 का स्तर भी घट रहा है।(PM10) का तात्पर्य है, ऐसे कण पदार्थ जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर या उससे कम हो। वहीं (PM2.5) का तात्पर्य है हवा में मौजूद ऐसे कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम हो ।
अप्रैल माह में खराब स्तर तक जा पहुंचे वायु गुणवत्ता सूचकांक में शहर में लगाए गए जनता कफ्र्यू ( public curfew) के बाद प्रदूषण का स्तर कम दिखने लगा है। विगत माह में शहर में वायु प्रदूषण (air pollution) स्तर कम होने का नाम नहीं ले रहा था, जिसकी मुख्य वजह था शहर में नाला टेपिंग के युद्धस्तर पर किए जा रहे कार्यों के चलते शहर की सडक़ों पर बड़े-बड़े गड्ढ खोदने से धूल-मिट्टी का उडऩा, जो सीधे वायुमंडल को प्रदूषित कर रही थी। वहीं मार्च में फसल कटने के बाद खेतों में जलाई जाने वाली पराली की प्रक्रिया से हवा के साथ कार्बन के कण दूर-दूर तक फैलने लगते हैं और वह वायु प्रदूषण का काम करते हैं। पराली/नरवाई के जले हुए कण 10-15 किलोमीटर तक हवा में ट्रेवल करते हैं। इस मौसम में हवा की गति भी कम रहती है, अत: प्रदूषक तत्व बहुत समय तक वातावरण में विद्यमान रहते हैं। अप्रैल माह में जहां वायु प्रदूषण से शहर की प्राणवायु खराब हो गई थी, वही प्राणवायु मई माह के शुरुआती दिनों में अपने गुणवत्ता स्तर तक जा पहुंची है। इसके अलावा लॉकडाउन के चलते सडक़ों पर वाहनों का घटना और उद्योग-धंधों का थमना भी मुख्य कारण रहा।


कोरोना काल में घर की छतों या कालोनियों की सडक़ों पर मार्निंग वाक करने वालों की तादाद बढ़ी
लॉकडाउन (Lockdown)  के चलते घरों में कैद लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति खासतौर पर जागरूक नजर आ रहे हैं। घरों की छतों से लेकर कालोनियों की सडक़ों पर इन वॉकरों का तांता लगा रहता है। कोरोना के कहर से घबराए कई लोग घर के छोटे-छोटे कमरों मेें ही जहां कदमताल कर रहे हैं, वहीं योगा द्वारा श्वसन तंत्र को मजबूत बनाने में लगे हैं। वायु में प्रदूषण घटने से इन सभी लोगों को स्वच्छ प्राणवायु मिल रही है।
पक्षियों का कलरव भी बढ़ा
लॉकडाउन (Lockdown)  के चलते सुधरे प्रदूषण में पक्षियों की चहचहाहट भी जहां बढ़ गई है, वहीं विदेशी पक्षी भी शहर में नजर आने लगे। तालाबों में मछलियां (fishes) बढ़ गईं और जल शुद्ध हो गया, लेकिन इन पक्षियों के लिए दाना डालने वाले जहां कम हो गए, वहीं चिलचिलाती धूप के कारण इन पक्षियों को पानी की तलाश में भटकना पड़ रहा है। लॉकडाउन के चलते शहर के श्वान भी भूख से बिलबिलाते नजर आ रहे हैं। पहले से ही स्वच्छता अभियान के चलते उनको पोषण की समस्या थी, जो लॉकडाउन में और बढ़ गई।

  • कारण
    सडक़ों पर वाहन घटे
    उद्योग-धंधों का प्रदूषण घटा
    शहर में खुदाई बंद, धूल घटी
    खेतों में पराली नहीं जली
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