भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

1 साल में प्रदेश में पकड़ाए 150 घूसखोर

  • रिश्वतखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से कतरा रहे विभाग

भोपाल। प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के बाद भी सरकारी महकमों में घूसखोरी रूकने का नाम नहीं ले रही है। आलम यह है की सरकार की सख्ती और जांच एजेंसियों की निगरानी के बाद भी रिश्वतखोरी चरम पर है। इसकी वजह यह है कि विभाग रिश्वतखोर अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। प्रदेश में पिछले एक साल में 150 घूसखोर अधिकारी-कर्मचारी ट्रैप हुए हैं, लेकिन पुलिस विभाग को छोड़कर किसी अन्य विभाग ने इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की है।
गौरतलब है कि लोकायुक्त प्रदेश में लगातार घूसखोर अधिकारियों-कर्मचारियों को ट्रैप कर रहा है। लोकायुक्त टीम की कार्रवाई के दौरान घूस लेते रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद सरकारी अफसर-कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई करने में सिर्फ पुलिस विभाग ही सख्त है। पिछले एक साल (दिसंबर 21 से दिसंबर 22 तक) के दौरान प्रदेश में पकड़े गए 150 से अधिक घूसखोरों में 25 पुलिसकर्मी शामिल हैं। इन सभी को 24 घंटे के भीतर पुलिस विभाग ने सस्पेंड कर दिया लेकिन दूसरे विभागों के सवा सौ से अधिक घूसखोर अफसर-कर्मचारियों का सिर्फ तबादला किया गया। इनमें दो अफसर तो ऐसे हैं, जो बतौर सजा हुए तबादले में भी मलाईदार पद पा गए। कुछ कर्मचारी दूसरी बार रिश्वत लेने के बाद भी कड़ी कार्रवाई से बचे हुए हैं।

जीएडी का आदेश राह में रोड़ा
बताया जाता है कि कई विभाग चाहते हुए भी घूसखोरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। इसकी वजह है सामान्य प्रशासन विभाग का एक आदेश। यह आदेश लोकायुक्त की कार्रवाई में ट्रैप होने के बाद स्थानांतरण की इजाजत देता है। लेकिन निलंबन को भी नियम विरूद्ध नहीं माना है। बड़वानी एसपी दीपक शुक्ला कहते हैं-ट्रैप में नियम तो सभी विभागों के लिए तबादले का ही है। लेकिन पुलिस विभाग निलंबित इसलिए करता है ताकि कड़ी कार्रवाई का संदेश जाए। इधर, बड़ा सवाल यह है कि आखिर कड़ा संदेश दूसरे सरकारी विभाग प्रमुख क्यों नहीं देना चाहते। रिटायर्ड मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि लोकायुक्त की कार्रवाई में रिश्वत लेते पकड़े गए अधिकारी-कर्मचारियों को तत्काल निलंबित कर लूप लाइन में भेजना चाहिए। इससे रिश्वत लेने वालों के प्रति समाज में संदेश जाए। तबादले से संदेश गलत जाता है। दूसरे जिले में समकक्ष पद पर पदस्थ करना भी शर्मनाक है। घूस लेने वालों पर पुलिस विभाग की सख्ती सराहनीय है।


सजा में दे दिया मलाईदार पद
भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति की किस तरह अवहेलना की जा रही है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दो अफसरों को बतौर सजा तबादले में भी मलाईदार पद दे दिया गया। इस साल मई में होशंगाबाद के सीएमएचओ डॉ. प्रदीप मोजेस दो हजार की रिश्वत लेते पकड़े गए थे। उन्हें एक माह बाद ही बुरहानपुर में सिविल सर्जन बना दिया गया। घूसखोरी के मामले में लोकायुक्त टीम से पकड़े जाने वाले डॉ. मोजेस को सिविल सर्जन बनाने से इसलिए भी सवाल खड़े हुए क्योंकि जिस समय उनकी बुरहानपुर में तैनाती हुई, उस समय वहां के जिला अस्पताल में 12 करोड़ के घपले में ताबड़तोड़ कार्रवाईयां हो रही थीं। कुछ ऐसा ही शिवपुरी जिले में आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला संयोजक आरएस परिहार के घूस लेते पकड़े जाने के बाद उन्हें सीधी में इसी पद पर तैनात कर दिया गया। वहीं रिश्वत लेते पकड़े जाने वालों में 40 साल से ज्यादा उम्र वाले 80 प्रतिशत सरकारी अधिकारी-कर्मचारी हैं। हालांकि इंदौर में कुछ पुलिसकर्मी ऐसे थे, जो ज्वाइनिंग के दो से छह माह में ही ट्रैप हो गए। करीब पांच प्रतिशत कर्मचारी रिटायरमेंट से सालभर पहले रिश्वत लेते पकड़े गए। इनमें खंडवा के सीएमएचओ डॉ. डीएस चौहान जब नर्स के तबादले के बदले दस हजार की रिश्वत लेते पकड़े गए, तब उनके रिटायरमेंट के महज ढाई माह ही बचे थे। रीवा जिले के गोविंदगढ़ थाने के प्रभारी वीरेंद्र सिंह परिहार सेवानिवृत्ति से छह माह पहले और आगर मालवा जिले के कानड़ थाना टीआई मुन्नी परिहार रिटायरमेंट से एक माह पहले रिश्वत लेती पकड़ी गईं।

पटवारी सबसे अधिक रिश्वतखोर
रिश्वतखोरी में राजस्व विभाग के सबसे ज्यादा 35 से अधिक कर्मचारी-अधिकारी ट्रैप हुए। इनमें भी 27 पटवारी हैं। चेक से रिश्वत लेने के मामले भी सामने आए हैं। इस साल नवंबर में पन्ना में पीडब्ल्यूडी के उपयंत्री मनोज रिछारिया को 7 लाख की रिश्वत लेते लोकायुक्त टीम ने दबोच लिया। इसमें रिश्वत के रूप में एक लाख नगद और छह लाख का चेक दिया गया था। आयकर विभाग गुमनाम शिकायतों को खत्म नहीं करता है। ऐसी शिकायत आती है तो गोपनीय रूप से छानबीन की जाती है। शिकायत के तथ्य संज्ञान में लिए जाते हैं। इसमें सत्यता होती है तो आगे की कार्रवाई होती है। प्रदेश में जीएडी के अधीन जांच एजेंसी लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई का तरीका भी लगभग ऐसा ही है। ये जांच एजेंसी गुमनाम शिकायत को सीधे खारिज नहीं करती है। इस शिकायत में से जो भी काम के तथ्य होते हैं, उनको जांच में लिया जाता है। सामान्य प्रशासन विभाग के एसीएस विनोद सेमवाल का कहना है कि रिश्वत लेने वालों को सस्पेंड भी करते हैं। ये भी देखते हैं कि लोकायुक्त टीम ने क्या रिपोर्ट दी है। ट्रैप मामलों में सस्पेंड और अटैच कर्मचारियों के मामले में लोकायुक्त की रिपोर्ट देखने के बाद ही कुछ कहना सही होगा।

वल्लभ भवन में शिकायत पेटी ही नहीं
भ्रष्टाचार खिलाफ जीरो टॉलरेंस के दावों के बीच प्रदेश के सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार खिलाफ शिकायतों वाली पेटियां गुमनामी में खोने लगी हैं। सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) के आदेशों में साफ है कि हर कार्यालय में सीलबंद शिकायत पेटी रखी जाने के साथ ही विभाग प्रमुख के हाथों सोमवार को खोली जाएगी। इन शिकायतों का अलग से रजिस्टर मेंटेन होगा, लेकिन इन आदेशों पर अमल नहीं हो रहा है। वल्लभ भवन की 650 करोड़ की नई एनेक्सी में कोई शिकायत पेटी नहीं लगाई गई है, जबकि पुरानी इमारत में जो एकमात्र पेटी नजर आती है, उसका ताला नहीं खुलता है। प्रदेश के मंत्रियों की सलाह पर मंथन-2007 में तय हुआ था कि गुमनाम शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। इसे अमल में लाने के लिए जीएडी से आदेश जारी किए गए थे। इसके अलावा पारदर्शिता के लिए अहम बिंदु जारी हुए थे, जो कागजों में सिमट गए। यह भी कहा गया था कि प्रत्येक छह महीने में विभागाध्यक्ष और 3 महीने में कलेक्टर जिलास्तर पर मानिटरिंग करेंगे। वे कार्यालयों में शिकायत पेटी और रजिस्टर का निरीक्षण भी करेंगे। विंध्याचल, सतपुड़ा भवन में भी शिकायत पेटी खानापूर्ति के लिए लगी हुई है।

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