भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

लावारिस नवजातों को मां का एहसास दिलाती हैं जेपी हॉस्पिटल की 16 नर्स

भोपाल। जन्म के बाद मां बच्चे को उसे लावारिस हालत में फेंक कर चली जाती हैं। ऐसे लावारिस मिलने वाले मासूम कई बार नाली में, कांटों और गंदगी के बीच पड़े रहते हैं। इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी जिन नवजातों की सांसें बच जाती हैं। उन्हें जेपी अस्पताल के एसएनसीयू की स्टाफ नर्स उपचार के साथ मां का प्यार भी देती हैं। बेसहारा मिले गंभीर बीमार नवजातों के जख्मों पर मरहम लगाने से लेकर उन्हें नहलाना-धुलाना, भोजन कराना, साफ-सफाई करने और सुलाने का काम बिल्कुल मां की तरह करती हैं। जब वे बच्चे ठीक होकर शिशु गृह जाने लगते हैं, तो भावनात्मक रूप से उनकी यशोदा माताओं की आंखों में आंसू तक आ जाते हैं।



जेपी हॉस्पिटल के एसएनसीय में पिछले 14 सालों से सेवाएं दे रही स्टाफ नर्स मीनाक्षी पिल्लई बताती हैं कि एक नवजात कांटों में पड़ा मिला था। उसकी हालत खराब थी। शरीर में चीटियां चिपकी थीं। कान-सिर में कांटे लगे थे। जब उसे पुलिस यहां लेकर आई, तो उसकी हालत देखकर रोना आ गया था, लेकिन उसे हमने अपने बच्चे की तरह रखा। वजन कम होने के कारण उसकी स्पेशल केयर की गई। करीब पांच महीने वह हमारे बीच रहा। उसका नाम ‘शिवाÓ रखा था। जब उसे किलकारी संस्था के सुपुर्द किया जा रहा था, तो हमारी साथी स्टाफ में कोई ऐसा नहीं था, जिसकी आंखों से आंसू न आए हों। जब भी किसी की शिफ्ट खत्म होती, तो ये बताकर जाते थे कि उसे क्या खिलाना है, कौन सी दवा कितने बजे देनी है। उसके साथ हम सभी लोग इमोशनल अटैच हो गए थे। ऐसा लगता था कि वह हमारे बीच ही खेलता रहे।

इनकी मां नहीं होती, इसलिए रखना पड़ता है विशेष ख्याल
स्टाफ नर्स करुणा चौकीकर कहती हैं कि वैसे तो सभी बच्चे हमारे लिए बराबर होते हैं। हम सभी का ध्यान रखते हैं, लेकिन लावारिस मिलने वाले बच्चों की खैर खबर लेने वाले उनके कोई सगे संबंधी नहीं होते। बाकी बच्चों की मां उन्हें स्तनपान कराने के लिए आती हैं। इस दौरान उन्हें मां की गोद और दुलार मिलता है। बेसहारा मिले बच्चों के लिए हम ही उनकी मां और परिवार होते हैं। उनके डायपर बदलने से लेकर उन्हें सुलाने तक का काम हम लोग करते हैं।

नर्स का मां का रोल इसलिए अहम
राजधानी के किसी भी जगह पर बच्चे के लावारिस पड़े होने पर पुलिस को सूचना मिलती है, तो उसे पहले जेपी हॉस्पिटल ही लाया जाता है। यहां प्राथमिक जांच के बाद उसे न्यू बोर्न केयर यूनिट में एडमिट कराया जाता है। यहां 16 स्टाफ नर्स पदस्थ हैं, जो रोटेशन में आठ-आठ घंटे की शिफ्ट में ड्यूटी करती हैं। एसएनसीयू में पदस्थ डॉक्टरों के बाद बच्चों की देखभाल इन्हीं के जिम्मे होती है।

ये हैं जेपी अस्पताल की माएं
स्टाफ नर्स सरोजिनी नायर, सुनीता कुशवाह, मीनाक्षी पिल्लई, भारती बेलवंशी, हिना बानो, रेखा विश्वकर्मा, सरिता, निकिता सिंह, करुणा चौकीकर,  ज्योति पवार, श्वेता वराठे, सोनल डेहरिया, रिंसी, शिखा श्रीमाली, दिव्या, ज्योति बरपेटे।

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