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4 माह का इखनूर सिंह, जिसे तालिबान के चंगुल से निकालने के लिए भारत ने तोड़ा नियम

नई दिल्ली। भारत ने तालिबानी आतंकियों से अफगानियों के जान की हिफाजत के लिए ‘मिशन देवी शक्ति’ चला रखा है। मां दुर्गा के अनन्य उपासक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तालिबानी ‘राक्षसों’ से निहत्थे अफगान नागरिकों की रक्षा के लिए भारतीय अभियान को यह नाम दिया है।

सरकार की मंशा बिल्कुल साफ है- हर हाल में ज्यादा से ज्यादा जिंदगियों की रक्षा करना। और जब मंशा इतनी पवित्र हो तो फिर कागजातों के लफड़े अभियान की राह में भला क्या बाधा डाल सकते हैं? यही हुआ जब चार महीने से भी कम उम्र के एक बच्चे की जान बचाने की बारी आई। भारत ने सेकंड भर भी नहीं सोचा और उसे उसके माता-पिता के साथ अफगानिस्तान से निकाल लिया।

4 महीने से भी कम उम्र के मासूम आया भारत
अफगानिस्तान में मचे कोहराम से बेखबर इस मासूम का नाम इखनूर सिंह है। माता-पिता ने उसका पासपोर्ट नहीं बनवाया था, लेकिन जब तालिबानी आतंकियों ने काबुल पर कब्जा कर लिया तो अफगानियों में देश छोड़ने की होड़ मच गई। सभी जान बचाने के लिए अपना घर-बार छोड़कर दूसरे देश जाने लगे। इखनूर के पैरेंट्स भी भारतीय अधिकारियों के पास पहुंचे और बताया कि उनकी गोद में जो नन्हीं जान है, उसका पासपोर्ट वो अब तक नहीं बनवा सके हैं।


भारत ने मासमू के लिए ताक पर रखे नियम
भारतीय अधिकारियों ने कागजी-कार्रवाई की बिल्कुल भी फिक्र नहीं की और अंतरराष्ट्रीय यात्रा का नियम तोड़ते हुए बच्चे के साथ उसके मां-पिता को भारत भेज दिया। इखनूर का कागज उड़ान के दौरान ही तैयार कर दिया गया और जब फ्लाइट हिंडन एयरपोर्ट पर उतरी तो वहां सारी औपचारिकताएं भी पूरी कर दी गईं। अफागनिस्तान संकट के मद्देनजर हिंडन एयरपोर्ट पर फॉरनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस खोला गया है।

अफगानिस्तान से आएंगी दो और नन्हीं जानें
केरपाल सिंह, उनकी पत्नी और इखनूर समेत उनके तीन बच्चे रविवार को भारतीय वायुसेना के विमान सी-17 से भारत पहुंचे अफगानियों के दल में शामिल थे। इखनूर की तरह वहां दो और मासूमों के पासपोर्ट नहीं हैं जिन्हें अगली फ्लाइट से भारत लाना है। इनमें एक बच्चे का जन्म 11 अगस्त को जबकि दूसरे का मई महीने में हुआ है। इखनूर के पैरेंट्स भारत में अपने किसी रिश्तेदार के यहां रहने गए हैं।

अचानक बदल गई किस्मत
हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) से फोन पर बात करते हुए इखनूर के पिता केरपाल सिंह भावुक हो गए। उन्होंने बीते 10 दिनों के खौफनाक मंजर को याद किया। उन्होंने बताया कि उनके पांच और तीन साल के बच्चों के पासपोर्ट हैं। उन्होंने कहा कि अगर भारत सरकार ने इखनूर के लिए मदद का हाथ नहीं बढ़ाया होता तो अफगानिस्तान से निकल पाना संभव नहीं हो पाता।


आखों के आगे अंधेरा
इखनूर का पूरा परिवार भारत आने से पहले काबुल के गुरुद्वारे में तीन दिन बिताया। दिल्ली में इखनूर की बुआ रहती है। केरपाल सिंह अपनी बहन के घर ही रह रहे हैं। उनकी बहन ने हिंसा बढ़ती देख दो साल पहले ही अफगानिस्तान छोड़ दिया था। केरपाल की आखों के आगे अंधेरा छाया हुआ है। उसे बिल्कुल पता नहीं कि वो यहां अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कैसे कर पाएंगे।

तालिबान के खौफ की दर्दनाक दास्तां
यह कहानी तो एक परिवार की है। हालांकि, यह सबकुछ त्याग कर किसी दूसरे देश में शरण लेने को बेचैन हजारों अफगानियों की दास्तां बयां कर रही है। इंडियन वर्ल्ड फोरम के प्रेसिडेंट पुनीत सिंह चंधोक ने टीओआई से कहा, ‘दो फ्लाइट से अब तक 67 सिख और हिंदू अफगानी भारत आ चुके हैं जबकि 165 और अफगानियों को लाया जाना है।’ बीते एक साल में अफगानिस्तान से 407 सिखों और हिंदुओं को मिलाकर करीब 90 परिवार भारत आया है जबकि तालिबानी कब्जे के बाद अन्य समुदायों के भी 60 अफगानी भारत आ चुके हैं।

अफगानी परिवार भी लाए जा रहे हैं भारत
दिल्ली में हिंदू-सिख समुदाय के लोगों का कहना है कि अफगानिस्तान में कभी हिंदुओं और सिखों की संख्या दो लाख से ऊपर थी, लेकिन दशकों की हिंसा ने बड़ी तादाद में उन्हें पलायन करने पर मजबूर कर दिया। जो बचे हैं, काबुल पतन के बाद उनके पास भी भागने के सिवा चारा नहीं बचा है। मानवाधिकार कार्यकर्ता और अफगानिस्तान की सांसद अनारकली होनरयार माता-पिता और भाई के साथ रविवार को दिल्ली पहुंच चुकी हैं। उन्होंने कहा कि माहौल इतना भयावह था कि कठिन परिश्रम से प्राप्त डिग्रियों के डॉक्युमेंट्स भी नहीं ला सकीं।

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