नई दिल्ली। एलएसी पर चीन के खिलाफ अपनी तैयारियों को और मजबूत करने के लिए भारत ने बुधवार को विस्तारित रेंज पिनाका रॉकेट मार्क-I से 6 फायर किए। डीआरडीओ द्वारा विकसित रॉकेट का टेस्ट एकीकृत परीक्षण रेंज, ओडिशा तट से चांदीपुर में किया गया। भारत ने देश की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर छह पिनाका रॉकेट रेजिमेंट बनाने का फैसला किया है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने पिनाका रॉकेट और लॉन्चरों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पिनाका लम्बी दूरी तक मार करने के लिए फ्री फ्लाइट आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम है, जिसकी रेंज 37.5 किलोमीटर है। इसका लॉन्चर सिर्फ 44 सेकेंड्स में 12 पिनाका रॉकेट्स दागने में सक्षम है। भारत ने करगिल युद्ध में भी पिनाका रॉकेट का इस्तेमाल किया था। इसके बाद में इसकी कई रेजिमेंट्स बनाई गईं लेकिन अब चीन के साथ चल रहे टकराव के बीच देश की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर छह पिनाका रेजिमेंट चालू करने का फैसला किया गया है। डीआरडीओ ने पिनाका रॉकेट और लॉन्चरों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसी के तहत सभी जानकारियां गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय (डीजीक्यूए) को सौंप दी गई हैं। भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों, गोला-बारूद और अन्य सभी रक्षा उपकरणों की गुणवत्ता की जांच करने की जिम्मेदारी इसी संस्थान की है। छह पिनाका रेजिमेंटों में 114 लॉन्चर तैनात होंगे। इसके लिए ऑटोमेटेड गन ऐमिंग एंड पोजिशनिंग सिस्टम और 45 कमांड पोस्ट्स टाटा पावर कंपनी लिमिटेड (टीपीसीएल) और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) से खरीदे जाएंगे। इसी तरह 330 वाहन भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) से खरीदे जाएंगे। इन पर 2580 करोड़ के आसपास खर्च होंगे। पिनाका रॉकेट्स को मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर से छोड़ा जाता है, जो 44 सेकंड में 12 रॉकेट लॉन्च करने में सक्षम है। भारत के पास पहले रॉकेट्स दागने के लिए ‘ग्राड’ नाम का रूसी सिस्टम हुआ करता था। इसके विकल्प के रूप में 1980 के दशक में डीआरडीओ ने भगवान शिव के धनुष ‘पिनाक’ के नाम पर पिनाका रॉकेट सिस्टम को विकसित करना शुरू किया। पिनाका सिस्टम की एक बैटरी में छह लॉन्च व्हीकल होते हैं, साथ ही लोडर सिस्टम, रडार और नेटवर्क सिस्टम से जुड़ी एक कमांड पोस्ट होती है। एक बैटरी के जरिए 1×1 किलोमीटर एरिया को पूरी तरह ध्वस्त किया जा सकता है। मार्क-I की रेंज करीब 37.5 किलोमीटर है जबकि मार्क-II से 75 किलोमीटर दूर तक निशाना साधा जा सकता है। डीआरडीओ के सहयोग से इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) द्वारा विकसित मार्क-I रॉकेट में पहले संस्करणों की तुलना में 25% अधिक रेंज और 5 साल की अधिक शेल्फ लाइफ है। (हि.स.)
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