विजय मनोहर तिवारी का नाम ज़हन में आते ही उनके तीन किरदार नुमायां होते हैं। पहले किरदार में ये हमे ज़हीन तरीन सहाफी (पत्रकार) के रूप में नजऱ आते हैं, जिसकी खबरों और ज़बान पे गहरी पकड़ रही है। इनका दूसरा किरदार है सूबे का बहुत सजग सूचना आयुक्त होना। इनका तीसरा और सबसे अहम किरदार एक लेखक का है। जिसकी लेखनी किसी मुसव्विर (पेंटर) की खूबसूरत पेंटिंग की तरह कागज़ पे बिखरती जाती है। हिंदुस्तान की तारीख (इतिहास) इनका पसंदीदा मौज़ू है। इतिहास जैसे उबाऊ सब्जेक्ट पे ऐसा लिखना जिसे पढऩे वाले पढऩे को मजबूर हो जाएं…ऐसी रवानी के साथ लिखते हैं विजय मनोहर तिवारी। तारीफ की बात ये है कि इन्होंने आज तक जो भी लिखा है वो ठोस तथ्यों पर आधारित ही लिखा है। गोया के इनका लेखन उथला न हो कर बहुत गहन अध्ययन और रिसर्च पे आधारित होता है। विजय भाई कभी तारीख़ के तालिबे इल्म (इतिहास के छात्र) नहीं रहे। ये तो मैथेमेटिक्स में एमएससी हैं। बाकी इनके दिल मे इतिहास की उन सच्चाइयों को मंजऱे आम पे लाने की तड़प बरसा बरस से थी। जो अब चार हिस्सों में आने वाली किताबों की शक्ल इख्तियार कर चुकी है। इसकी पेली कड़ी ‘हिंदुस्तान में इस्लाम’ उनवान से आ रही है जिसमे उस तारीख़ी दौर में ‘हिंदुओं का हश्र’ के ज़रिए इस कौम पर हुए भयंकर ज़ुल्मो की असल दास्तान कहानियों के तौर पे पेश की गई हैं। ये तो आप जानतेई हैं कि विजय मनोहर तिवारी ने दैनिक भास्कर में कई बरस मुलाज़मत करी। वहां बतौर घुमंतू संवाददाता इन्होंने मुल्क के कुछ मख़सूस हिस्सों को देखा और समझा। शहर दर शहर उसकी रिवायत और उसके इतिहास को इंन्ने करीब से समझा। ‘हिंदुस्तान में इस्लाम’ का पहला बाब गरुड़ प्रकाशन ने 14 अगस्त को ‘हिंदुओं का हश्र’ उनवान से जारी कर दिया है। इसमे इतिहास में हिंदुओं क्या हश्र हुआ उसकी 25 दर्दनाक कहानियां शामिल की गईं हैं। विजय भाई के मुताबिक ये वो अनकही कहानियां हैं जिन्हें इतिहास में बयां ही नहीं किया गया। एक हज़ार साल से ज़्यादा के इतिहास में हिंदुओं पे हुए ज़ुल्मो सितम को ये दस्तावेज़ लाइवली महसूस कराता चलेगा। ‘हिंदुस्तान में इस्लाम’ नामक इनकी किताबों के चार बाब शाया होंगे। हर बाब में वो 25 अनकही कहानियां शामिल रहेंगी जो उस दौर में हिंदुओं पे हुए ज़ुल्म को पूरे फेक्ट के साथ बयां करेंगी। चार जिल्दों में आ रही इन किताबों में हर एक मे 25 दिल दहलाने वाली कहानियां ली गई हैं। ये दस्तावेज़ चंद महीनों में तैयार नहीं हुआ। इसमें लेखक ने तकरीबन 25 बरस झोंक दिए हैं। इसके लिए इन्होंने अनगिनत तारीखी किताबों को छान मारा। तैमूर लंग की डायरी, अमीर खुसरो का दौर, अबुफज़़ल की अकबरनामा, तुजुके बाबरी जैसी किताबों का बड़ी संजीदगी से मुताला इन्होंने किया। वहीं उस दौर के इतिहासकार फकरे मुदव्विर, मिन्हाज उद्दीन और जिय़ाउद्दीन बर्नी जैसे इतिहासकारों को बहुत गहराई से पढ़ा। खुद के लेवल पे बहुत रिसर्च करी, रिफरेंस जुटाए तब कहीं जाके इस सिलसिले वार किताब के चार बाब तैयार हुए हैं। विजय मनोहर तिवारी ने भारत मे इस्लाम के आने और फैलने की 12 सदी पहले तक की कहनियों का पूरा लेखा जोखा तैयार किया। इस दौरान हिंदुओं का वो हश्र दिखाने की कोशिश की गई है जो अक्सर इतिहास का हिस्सा नहीं बन पाता। इस पूरे घटनाक्रम को इन्होंने एक फिक्शन के अंदाज़ में लिखा है। मीडिया में इनकी मसरूफियात की वजह से जो हिस्सा अधूरा छूट गया था उसे इन्होंने साल 2018 में मीडिया से मुक्त होने के बाद बहुत जि़म्मेदारी और संजीदगी के साथ पूरा किया। नतीजतन ‘हिंदुस्तान में इस्लाम’ के पहले भाग के तौर पे ‘हिंदुओं का हश्र’ मंजऱे आम पे आ चुकी है। ये दस्तावेज़ रूपी किताब अमेज़ॉन और फ्लिप्कार्ट पर भी मुहैया है। बकौल विजय मनोहर तिवारी ये किताब किस्सागोई के अंदाज़ में आपको किसी लाइव रिपोर्टिंग की तरह महसूस होगी। इसमे आप, फिरोजशाह, मोहम्मद तुगलक को किसी रिपोर्टर के तौर पे सीधा प्रसारण करते हुए पाएंगे। तथ्यों को दिलचस्प अंदाज़ में पेश करने के लिए कई प्रयोग इन्होंने किये हैं। इनका कहना है की ‘हिंदुस्तान में इस्लाम’ सीरीज़ का पहला हिस्सा ‘हिंदुओं का हश्र’ पूरी तरह फेक्ट पर आधारित है। इसमें कोई टीका टिप्प्णी नहीं है। इतिहास में जो लिखा है वही लिखा है। इस किताब को आप लाइव और ग्राउंड रिपोर्ट की तरह पढ़ सकते हैं। इसका दूसरा हिस्सा अगले चार पांच महीने में आ जायेगा। उसमे भी हिंदुओं के हश्र की 25 कहानियां होंगी। विजय मनोहर तिवारी कहते हैं कि मैं इतिहास की डरावनी सुरंगों में खुद को ढूंढता रहा हूं और अब भी अपनी तलाश में लापता हूं। इस किताब का इजरा (विमोचन) जल्द ही दिल्ली और बाद में भोपाल में होगा। मुबारक हो जनाब।
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