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डिजिटल अरेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, सरकार से जवाब तलब

October 18, 2025

नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने हरियाणा के अंबाला(Ambala, Haryana) में अदालत और जांच एजेंसियों(investigative agencies) के फर्जी आदेशों(fake orders) के आधार पर बुजुर्ग दंपति को डिजिटल अरेस्ट कर उनसे 1.05 करोड़ रुपये की उगाही की घटना को गंभीरता से लिया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने देश भर में डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामलों पर शुक्रवार को चिंता जताई।

73 वर्षीय महिला की ओर से भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई को लिखे पत्र पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दर्ज किए गए मामले में केंद्र और सीबीआई से जवाब मांगा। पीठ ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों सहित निर्दोष लोगों को डिजिटल अरेस्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के आदेशों और न्यायाधीशों के हस्ताक्षरों की जालसाजी करना न्यायिक संस्थाओं में लोगों के विश्वास और आस्था पर कुठाराघात है।


डिजिटल अरेस्ट ऑनलाइन धोखाधड़ी है, जिसमें जालसाज खुद को फर्जी तरीके से किसी सरकारी एजेंसी या पुलिस का अधिकारी बताते हैं। वे लोगों पर कानून तोड़ने का आरोप लगाते हुए उन्हें धमकाते हैं और गलत तरह से धन वसूली की कोशिश करते हैं। एससी ने कहा, ‘न्यायाधीशों के जाली हस्ताक्षरों वाले न्यायिक आदेश तैयार करना, कानून के शासन के अलावा न्यायिक व्यवस्था में जनता के विश्वास की नींव पर कुठाराघात करता है। इस तरह की कार्रवाई संस्था की गरिमा पर सीधा हमला है।’ पीठ ने कहा कि इस तरह के गंभीर आपराधिक कृत्य को धोखाधड़ी या साइबर अपराध के सामान्य या एकल अपराध के रूप में नहीं माना जा सकता।

एससी ने अपने फैसले में क्या कहा

बेंच ने कहा, ‘हम इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लेने के लिए भी इच्छुक हैं कि यह मामला एकमात्र मामला नहीं है। मीडिया में कई बार ये खबरें आई हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे अपराध हुए हैं। इसलिए हमारा मानना ​​है कि न्यायिक दस्तावेजों की जालसाजी, निर्दोष लोगों, खासकर वरिष्ठ नागरिकों से जबरन वसूली/लूट से जुड़े आपराधिक उपक्रम का पूरी तरह से पर्दाफाश करने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच प्रयासों और कार्रवाई की आवश्यकता है।’ पीठ ने अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी और हरियाणा सरकार व अंबाला साइबर अपराध विभाग को बुजुर्ग दंपति के मामले में अब तक की गई जांच पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

आखिर क्या था पूरा मामला

यह मामला शिकायतकर्ता महिला की ओर से अदालत के संज्ञान में लाया गया था, जिन्होंने आरोप लगाया कि घोटालेबाजों ने 3 से 16 सितंबर के बीच दंपति की गिरफ्तारी और निगरानी की बात करने वाला स्टाम्प व मुहर लगा एक जाली अदालती आदेश पेश किया। कई बैंक लेनदेन के माध्यम से एक करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की।

महिला ने कहा कि उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी देते हुए फर्जी तरीके से सीबीआई और ईडी अधिकारी बनकर कुछ लोगों ने कई ऑडियो व वीडियो कॉल के जरिए अदालती आदेश दिखाए। शीर्ष अदालत को बताया गया कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) के प्रावधानों के तहत अंबाला स्थित साइबर अपराध विभाग में 2 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।

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