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पिता ने 12 साल से बिस्तर पर पड़े बेटे के लिए मांगी इच्छा-मृत्यु, सुप्रीम कोर्ट ने दिए ये निर्देश

November 27, 2025

नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नोएडा (Noida) के जिला अस्पताल को हरीश राणा (Harish Rana) के मामले में ‘पैसिव यूथेनेसिया’ (निष्क्रिय इच्छा-मृत्यु) की संभावना जांचने के लिए एक प्राथमिक मेडिकल बोर्ड (Primary Medical Board) तुरंत गठित करने का बुधवार को निर्देश दिया, जो 100 प्रतिशत विकलांगता का शिकार है और पिछले 12 साल से अधिक समय से पूरी तरह निष्क्रिय एवं बिस्तर-बंध अवस्था में जीवन-रक्षक प्रणालियों पर जीवित है। बता दें कि हरीश राणा ( 31 ) पंजाब विश्वविद्यालय के छात्र थे। वर्ष 2013 में वह अपने पेइंग गेस्ट हॉस्टल की चौथी मंजिल से गिर गए थे, जिससे उनके सिर में गंभीर चोटें आईं। तब से वह लगातार बिस्तर पर हैं और पूरी तरह वेंटिलेटर पर निर्भर हैं।



न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने नोएडा सेक्टर-39 स्थित जिला अस्पताल को हरीश राणा के पिता की याचिका पर दो सप्ताह के अंदर बोर्ड की रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। पिता ने कहा है कि उनके बेटे की हालत लगातार बदतर होती जा रही है और वह अब और पीड़ा नहीं देख सकते। पीठ ने स्पष्ट निर्देश दिया कि हम चाहते हैं कि प्राथमिक मेडिकल बोर्ड हमें रिपोर्ट दे कि क्या जीवन-रक्षक उपचार रोका जा सकता है। बोर्ड अपनी रिपोर्ट शीघ्र से शीघ्र प्रस्तुत करे। रिपोर्ट आने के बाद हम आगे के आदेश पारित करेंगे। यह पूरी प्रक्रिया दो सप्ताह के भीतर पूरी हो जानी चाहिए।

गौरतलब है कि यह दूसरी बार है जब हरीश राणा के माता-पिता ने अपने बेटे के लिए पैसिव यूथेनेसिया की अनुमति मांगते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पिछले साल 8 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट पर विचार किया था, जिसमें सुझाव दिया गया था कि उत्तर प्रदेश सरकार की सहायता से मरीज को घर पर देखभाल मुहैया कराई जाए और चिकित्सक व फिजियोथेरेपिस्ट उसकी नियमित जांच करें।

सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि यदि घर पर देखभाल संभव न हो तो मरीज को उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए नोएडा जिला अस्पताल में भर्ती किया जाए। बुधवार को पिता की ओर से पैरवी कर रहीं वकील रश्मि नंदकुमार ने कोर्ट को बताया कि हरसंभव प्रयास किए गए और वे राज्य सरकार की दी गई सहायता के लिए आभारी भी हैं, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा।

उन्होंने स्पष्ट किया कि वे एक्टिव यूथेनेसिया नहीं, बल्कि सिर्फ पैसिव यूथेनेसिया की मांग कर रहे हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों के अनुसार अनावश्यक पीड़ा समाप्त करने के लिए जीवन-रक्षक उपचार रोका जा सकता है। रिपोर्ट देखने के बाद न्यायमूर्ति पारदीवाला ने टिप्पणी की कि लड़के की हालत देखिए, यह बहुत दयनीय है।

बता दें कि ‘पैसिव यूथेनेसिया’ वह प्रक्रिया है जिसमें मरीज के जीवन को बनाए रखने वाली जरूरी चिकित्सकीय सहायता (जैसे वेंटिलेटर आदि) को कानूनी प्रक्रिया के तहत धीरे-धीरे वापस लेकर मरीज को स्वाभाविक रूप से मृत्यु की ओर जाने दिया जाता है।

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