नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि दिल्ली किराया नियंत्रण (डीआरसी) अधिनियम, 1958 (Delhi Rent Control (DRC) Act, 1958) एक पुराने कानून का घोर दुरुपयोग है। इस अधिनियम के तहत संपन्न किरायेदार (Affluent tenant.) मामूली किराया देकर गलत तरीके से परिसर पर कब्जा कर लेते हैं, जबकि मकान मालिकों को निर्धन व निराशाजनक परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। यह पूरी तरह से अनुचित और अवैध है। मकान मालिक को उसका हक मिलना चाहिए।
हाईकोर्ट अतिरिक्त किराया नियंत्रक (एआरसी) के 2013 के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रहा था। इसमें सदर बाजार में एक संपत्ति के ब्रिटेन व दुबई स्थित मालिकों की बेदखली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था और किरायेदारों के पक्ष में फैसला सुनाया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने इस आधार पर परिसर को खाली कराने की मांग की थी कि वे लंदन में दो रेस्तरां चलाते हैं। भारत में कारोबार बढ़ाने के लिए उन्हें परिसर की वास्तविक आवश्यकता है। एआरसी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ फैसला सुनाते हुए दर्ज किया था कि वे लंदन व दुबई में बसे हुए हैं। अपना कारोबार चला रहे हैं। उन्हें अपने जीविका या अस्तित्व के लिए परिसर की आवश्यकता नहीं है, इसलिए उनकी वास्तविक आवश्यकता नहीं है। एआरसी ने यह भी तर्क दिया था कि परिसर सिट-इन रेस्तरां चलाने के लिए बहुत छोटा था।
मकान मालिक को उसका हक मिलना चाहिए : कोर्ट
जस्टिस अनूप भंभानी की बेंच ने एआरसी के आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि मकान मालिक की वित्तीय भलाई या किरायेदार की वित्तीय अस्वस्थता, डीआरसी अधिनियम की धारा 14(1)(ई) के तहत बेदखली याचिका पर फैसला करते समय प्रासंगिक विचार नहीं हैं। अदालत ने आगे कहा कि एआरसी का यह विचार कि याचिकाकर्ताओं की आवश्यकता वास्तविक नहीं है। पूरी तरह से अनुचित और अवैध है। मकान मालिक को उसका हक मिलना चाहिए। फिर चाहे वह विदेश में ही क्यों ना रह रहा हो। बेंच ने कहा कि इस परिसर के एवज में मकान मालिकों को महज 40 रुपये प्रतिमाह किराया मिल रहा था।
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