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गौ संरक्षण पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का बड़ा फैसला

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बड़ा और अहम फैसला दिया है कि गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाना चाहिए और गाय के संरक्षण को मौलिक अधिकार में शामिल किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने कहा है कि सरकार को संसद में अध्यादेश लाकर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करना चाहिये और उन लोगों के विरुद्ध कड़े कानून बनाने चाहिये, जो गायों को नुकसान पहुंचाते हैं। अदालत ने यह भी कहा है कि जब गाय का कल्याण होगा, तभी इस देश का कल्याण होगा।

यह अपने आप में बड़ा और बेहद साहस भरा निर्णय है। ऐसा नहीं कि गौ संरक्षण को लेकर इससे पहले इस देश की बड़ी अदालतों ने इस तरह के निर्णय नहीं दिए हैं लेकिन यह निर्णय इसलिए भी विलक्षण और अहम है क्योंकि यह गौहत्या के आरोपी को जमानत देने के संदर्भ में था जबकि इससे पहले जो आदेश आए वे या तो गौशाला प्रबंधकों की लापरवाही के चलते गायों की मौत होने को लेकर थे या फिर किन्हीं अन्य वजहों से अदालतों के विचारणार्थ प्रस्तुत हुए थे।

गौरतलब है कि वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें हिंसा करने वाले गौरक्षा समूहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका में अदालत से गुजरात पशु निवारण अधिनियम,1954 की धारा 12, महाराष्ट्र पशु निवारण अधिनियम,1976 की धारा 13 और कर्नाटक गौहत्या निवारण और मवेशी संरक्षण अधिनियम,1964 की धारा 15 को असंवैधानिक करार देने का अनुरोध किया गया। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि ये धाराएं नेकनीयती से काम करने वाले सरकारी अधिकारियों और किसी भी व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करती हैं। ये कानून और इनसे मिल रहा संरक्षण गौरक्षक समूहों को हिंसा के लिए उकसाते हैं जबकि इसके विपरीत राज्यों के तर्क यह थे कि संबंधित प्रावधान गौरक्षा समूहों या गौरक्षकों का बचाव नहीं करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय में इस तरह की याचिका करने वालों और उनके समर्थकों की इस निर्णय पर क्या प्रतिक्रिया होगी, यह देखने वाली बात होगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का मानना है कि भारतीय संस्कृति में गाय को देवताओं की तरह पूजा जाता है। हिंदू उसे गौ माता कहते हैं। भारतीय शास्त्रों, पुराणों व धर्मग्रंथों में भी गाय के महत्व का विस्तार से वर्णन है। कोर्ट ने कहा कि भारत में विभिन्न धर्मों के नेताओं और शासकों ने भी हमेशा गो संरक्षण की बात की है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में भी गाय की नस्ल को संरक्षित करने और दुधारू व भूखे जानवरों सहित गौ हत्या पर रोक लगाने की बात कही गई है। भारत के 29 राज्यों में से 24 में गौ हत्या पर प्रतिबंध है। गाय के संरक्षण, संवर्धन का कार्य मात्र किसी एक मत, धर्म या संप्रदाय का नहीं है बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का काम देश में रहने वाले हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है। फोटो खिंचाकर गो संवर्धन करने वालों से सावधान रहने की भी कोर्ट ने लोगों को नसीहत दी है। अदालत ने यह भी कहा है कि गौ मांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है। स्वाद के लिए किसी के भी जीवन का अधिकार नहीं छीना जा सकता। बूढ़ी बीमार गाय भी कृषि के लिए उपयोगी है। इसकी हत्या की इजाजत देना ठीक नहीं है। गाय भारतीय कृषि की रीढ़ है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्यों को गायों और बछड़ों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। 26 अक्टूबर 2005 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देकर भारत में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अधिनियमित गौवंश हत्या विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी थी। यह और बात है कि केरल, पश्चिम बंगाल, गोवा, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा ऐसे राज्य हैं जहां गायों के वध पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

26 मई 2017 को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने पूरे विश्व में पशु बाजारों में वध के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंध को निलंबित कर दिया। जाहिर तौर पर इससे मांस और चमड़े का व्यापार करने वाले व्यापारियों को राहत मिली लेकिन इससे नुकसान तो गौवंश और भारतीय संस्कृति का हुआ।

इससे पूर्व राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने गौ संरक्षण को लेकर केंद्र सरकार को सलाह दी थी कि वह गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करे और इसकी हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा हो। हालांकि उसने यह निर्देश हिंगोनिया गौशाला में गायों की मौत के मामले की सुनवाई करते हुए दिए थे। उन्होंने कहा था कि जिस तरह से उत्तराखंड में गंगा को सजीव मानव का दर्जा दिया गया है, उसी तरह गाय तो एक जीवित पशु है, जिसके दूध से लेकर अन्य उत्पाद लोगों के लिए जीवनदायी है। राज्य सरकार इसे राष्ट्रीय पशु घोषित कराने का प्रयास करे।

महाराष्ट्र सरकार ने राज्य पशु संरक्षण अधिनियम के तहत बीफ पर प्रतिबंध मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया था कि महाराष्ट्र में गौ वध पर प्रतिबंध लगा रहेगा लेकिन बाहर से गौमांस आ सकता है। अदालत ने कहा कि बीफ खाना जुर्म नहीं है, लेकिन गौ हत्या पर सजा मिल सकती है।

1940 के दशक के उत्तरार्ध में भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान गौहत्या पर तीखी बहस हुई थी। संविधान सभा के कुछ सदस्य गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध चाहते थे और उन्होंने गौरक्षा को मौलिक अधिकार बनाने की मांग की थी। आखिरकार, गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने पर एक समझौता किया गया, जिसके तहत इसे मौलिक अधिकार नहीं बनाया गया, लेकिन इसे नीति निर्धारण में केंद्रीय और राज्य सरकारों का मार्गदर्शन करने वाले “राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत” के रूप में शामिल कर लिया गया। मतलब संविधान ने धार्मिक भावनाओं के सवाल को सावधानीपूर्वक बाहर रखा। न ही उसने राज्य द्वारा गौहत्या पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की जरूरत महसूस की।

धर्मशास्त्रों और तमाम वैज्ञानिक प्रतिपादनों से भी यह बात प्रमाणित हो गई है कि गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है, उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं। गाय ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं।

रूस में गाय के घी से हवन पर वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं। एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर एक टन ऑक्सीजन बनती है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना गया है। गाय में 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विनी कुमारों का वास होता है। भगवान शिव के प्रिय पत्र ‘बिल्वपत्र’ की उत्पत्ति गाय के गोबर से ही हुई थी। ऋग्वेद में गाय को अवध्या और यजुर्वेद में अनुपमेय कहा गया है। अथर्ववेद में गाय को संपत्तियों का घर कहा गया है। गौएं सर्व वेदमयी और वेद गौमय है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भगवद्भीता में कहा है- ‘धेनुनामस्मि कामधेनु’ अर्थात मैं गायों में कामधेनु हूं। ईसा मसीह ने भी कहा था कि एक गाय या बैल को मारना एक मनुष्य को मारने के बराबर है। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद साहब ने भी गाय की हत्या न करने की अपने अनुयाइयों को सलाह दी थी। इसके बाद भी गायों के वध का सिलसिला निरंतर चला आ रहा है। अब इस पर रोक लगनी चाहिए।

जो गाय सबके हित के लिए सदैव समर्पित रहती है, उस गाय की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में राष्ट्रीय पशु घोषित करने की पहल तो करनी ही चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी। गाय को अब नहीं, तो आखिर कब न्याय मिलेगा ?

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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