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    Bangladesh: बड़े सियासी फेरबदल का जमात और बीएनपी को हुआ फायदा, पर अब बढ़ी दोनों के बीच दूरियां

  • September 20, 2024

    ढाका। बांग्लादेश (Bangladesh) में अगस्त के महीने में बड़ा सियासी फेरबदल (Big political reshuffle) देखने को मिला है। छात्र आंदोलन (Student movement) के बाद 5 अगस्त को शेख हसीना को पीएम पद और देश छोड़ना पड़ा था। हसीना के बाद बांग्लादेश (Bangladesh) में मोहम्मद यूनुस (Mohammad Yunus) के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी है। इस पूरे सियासी घटनाक्रम से सबसे ज्यादा फायदा जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश (Jamaat-e-Islami Bangladesh.) और खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी (Khaleda Zia’s party BNP) को हुआ, जो लंबे समय से हसीना सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। दोनों दल शेख हसीना के खिलाफ एकजुट थे लेकिन लगता है कि अब दोनों में दूरियां बढ़ रही हैं। जमात और बीएनपी नेताओं की ओर से ऐसे बयान आए हैं, जो मतभेद का संकेत देते हैं।


    द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, बीएनपी और जमात नेताओं के एक-दूसरे पर दिए बयानों से साफ होता है कि तीन दशकों से एक-दूसरे का सहयोग कर रहे दोनों दलों के संबंधों में खटास आ गई है। शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से ही बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी नेताओं के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि उन्होंने इन दोनों दलों में पहले इस तरह के विरोधी विचार नहीं देखे हैं। दोनों दल पूर्व में कई मौकों पर चुनावी गठबंधन कर चुके और हसीना को सत्ता से हटाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ते रहे हैं। एक्सपर्ट को लगता है कि हालिया राजनीतिक बदलाव के बाद ऐसा लगता है कि दोनों पार्टियों को अब एक-दूसरे की जरूरत नहीं है क्योंकि अब सामने हसीना की चुनौती नहीं है।

    जमात चीफ के बयान ने डाली फूट!
    बीएनपी नेताओं का कहना है कि दोनों सहयोगियों के बीच दरार तब सामने आई जब जमात प्रमुख शफीकुर्रहमान ने 26 अगस्त को एक बयान में आरोप लगाया कि बीएनपी ने 80 प्रतिशत सत्ता हथिया ली है। रहमान ने कहा था कि बीएनपी को चुनाव की जरूरत ही नहीं है। उन्होंने सबकुछ हड़प लिया है। ऐसा लगता है कि बीएनपी और जमात के बीच प्रमुख सरकारी पदों पर नियुक्तियों को लेकर भी टकराव है। दोनों पार्टियां विभिन्न संस्थानों पर अपना नियंत्रण मजबूत करना चाहती हैं।

    25 अगस्त को प्रोफेसर यूनुस के राष्ट्र के नाम संबोधन के तुरंत बाद ही दोनों दलों में मतभेद स्पष्ट हो गए, जहां उन्होंने चुनाव की समय-सीमा का उल्लेख नहीं किया। बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि मुख्य सलाहकार चुनावी मुद्दे को संबोधित करने में विफल रहे। उसी दिन जमात प्रमुख ने कहा कि देश ऐसे समय में किसी भी राजनीतिक दल की चुनाव की मांग को स्वीकार नहीं करेगा, जब लोग जुलाई के विद्रोह के बाद अस्पतालों में हैं।

    द डेली स्टार से बात करते हुए बीएनपी के मिर्जा फखरुल ने साफ कह दिया कि जमात अब उनकी सहयोगी नहीं है और बीएनपी अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। हालांकि जमात के सैफुल आलम खान ने इस बात से इनकार किया कि दोनों पक्षों के बीच संबंधों में कोई तनाव है। उन्होंने कहा कि दोनों राजनीतिक दलों के अपने-अपने दृष्टिकोण हैं और वे अपनी राय के आधार पर बात करेंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे बीच तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गई है। एक्सपर्ट का कहना है कि फिलहाल दोनों पार्टियां अपना-अपना गुना-भाग कर रहे हैं और एक-दूसरे से दूरी बनाए हुए हैं।

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