जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जोधपुर के जस्टिस मनोज कुमार गर्ग की बैंच ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत तलाकशुदा पत्नि को भी राहत का हकदार मानते हुए अहम और बड़ा आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता पति की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया है. हाईकोर्ट का मानना है कि जब एक बार घरेलू हिंसा की घटना घटित हो जाती है तो तलाक का आदेश भी दोषी को उसके की ओर से किए गए अपराध से मुक्त नहीं कर सकता. इसके साथ ही वह ना ही पीड़िता को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मिलने वाली राहत से वंचित कर सकता है.
जानकारी के अनुसार याचिकाकर्ता ने सेशन न्यायाधीश चूरू की ओर से 4 मार्च 2021 को पारित आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर की थी. इस याचिका में याचिकाकर्ता ने बताया अपीलीय अदालत ने उसकी अपील को खारिज करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट सरदारशहर की ओर से 27 सितंबर 2019 को पारित किए गए आदेश को यथावत रखा है. इस पर सुनवाई करते हुए जोधपुर हाईकोर्ट ने बीते बुधवार को यह फैसला सुनाया.
इसमें घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को प्रतिवादी पत्नी को मासिक रूप से 3000 रुपये का भत्ता देने का आदेश दिया गया था. याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में इसी अपीलीय अदालत के आदेश को चुनौती दी थी. इस पर हाईकोर्ट ने इस महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट के प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी मामले में दिए गए निर्णय के संदर्भ में घरेलू हिंसा की परिभाषा के व्यापक दायरे को ध्यान में रखते हुए यह आदेश दिया है.
कोर्ट ने साफ साफ कहा कि तलाकशुदा पत्नी भी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत पाने की हकदार है. इसके साथ ही अदालत ने इस बात पर भी जोर देते हुए कहा कि अधिनियम के तहत घरेलू संबंध की परिभाषा में एक साथ रहते हुए बिताया गया समय शामिल है न कि केवल वर्तमान तलाक के संबंध. अदालत ने कहा कि भले ही पीड़ित आवेदन दाखिल करने के समय प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में न हो फिर भी वह घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन दाखिल करने की हकदार है.
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