ब्‍लॉगर

भाजपा की बारी, दक्षिण की सवारी

– डॉ. विपिन कुमार

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह बीते दिनों कर्नाटक दौरे पर थे। राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उनका यह दौरा बेहद महत्वपूर्ण रहा। इस दौरान उन्होंने ऐलान किया कि यहां भारतीय जनता पार्टी मैदान में अकेले उतरेगी और उनका इरादा दो तिहाई बहुमत हासिल करना है। गौरतलब है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि यहां भारतीय जनता पार्टी, जनता दल (सेक्युलर) और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा। हालांकि यह माना जा रहा था जनता दल (सेक्युलर से भाजपा का गठजोड़ हो सकता है। मगर अब साफ है कि भाजपा अपने बूते जनता की अदालत में जाएगी।


अमित शाह ने भाजपा के लिए कर्नाटक को दक्षिण भारत का प्रवेश द्वार घोषित किया है। उनके इस कथन के बाद दक्षिण भारत में भाजपा के दायरे को लेकर एक बार फिर से नया विमर्श शुरू हो गया है। कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में अपना पैर जमाने के लिए कई अनुभवी कार्यकर्ताओं को तैनात करने का फैसला किया है। इन राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या 50 से भी अधिक है। इस कड़ी में बीते दिनों हैदराबाद में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

यह एक ऐसी योजना है, जिससे भाजपा को विधानसभा के अलावा 2024 के लोकसभा चुनाव में सीधा फायदा मिलेगा और यदि पार्टी वास्तव में इस चुनाव में एक नया कीर्तिमान स्थापित करना चाहती है तो उसे दक्षिण भारतीय राज्यों में उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन करना होगा। वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह यह भली भांति समझते हैं कि यदि उन्हें दक्षिण भारतीय दिलों में अपनी एक चिर स्थायी जगह बनानी है, तो उत्तर भारत से सांस्कृतिक और भाषायी रूप से जोड़ना ही होगा।

एक दौर ऐसा था, जब दक्षिण भारत खुद को कटा हुआ महसूस करता था। लेकिन बीते 8 वर्ष में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अथक प्रयासों से पूरे राष्ट्र को एकसूत्र में पिरोया है और आज लोगों के दिलों में उप-राष्ट्रवाद के स्थान पर राष्ट्रवाद ने अपना घर बना लिया है। इसके हमने कई उदाहरण देखे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने दक्षिण भारतीय राज्यों में अपने दायरे को एक नया आयाम देने के लिए ‘ट्रिपल सी’ की रणनीति अपनाई है, जिसकी व्यापक परिभाषा – सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीकों को पुनर्जीवित करना, विभिन्न क्षेत्रों के लोकप्रिय हस्तियों को पार्टी में शामिल कर जनमानस के बीच अपनी विश्वसनीयता स्थापित करना और जमीनी स्तर पर अपनी सांगठनिक क्षमता को सुदृढ़ करना है।

आंकड़े बताते हैं कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और केंद्र शासित प्रदेश पुद्दुचेरी जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में कुल 130 लोकसभा सीटें हैं। यहां भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 21 सीटों पर, जबकि बीते लोकसभा चुनाव में 29 सीटों पर जीत हासिल की थी। इससे साफ है कि इस क्षेत्र में भाजपा की स्वीकार्यता दिनों-दिन बढ़ रही है और पार्टी यह धारणा भी तोड़ने में सफल हो रही है, “भाजपा एक उत्तर भारतीय पार्टी है”।

वास्तव में, दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा के सामने एक खुला मैदान है। उसके सामने संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। पार्टी मोदी-योगी मॉडल के सहारे इन राज्यों में एक नई ऊंचाई हासिल कर सकती है और अपनी जन-कल्याणकारी नीतियों से कांग्रेस और वाम दलों का अंत कर सकती है। इसके फलस्वरूप देश में परिवारवाद, जातिवाद और ध्रुवीकरण की राजनीति का भी अंत होगा। हालांकि, भाजपा के लिए यह एक अग्निपथ है। लेकिन हम जानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के कुशल नेतृत्व में कुछ भी असंभव नहीं।

(लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)

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