ब्‍लॉगर

चीन, भारत और नेपाल

-सिद्धार्थ शंकर

बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिवसीय दौरे पर पड़ोसी देश नेपाल के लुंबिनी पहुंचे। प्रधानमंत्री ने यहां लुंबनी में मायादेवी मंदिर में पूजा की, पवित्र पुष्कर्णी तालाब और अशोक स्तंभ की परिक्रमा की। भारत की मदद से बन रहे बुद्धिस्ट कल्चरल सेंटर के भूमि-पूजन में भी शामिल हुए। इस दौरान दोनों देशों के बीच सात अहम समझौते किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा कूटनीतिक लिहाज से काफी अहम है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की यह पांचवी बार नेपाल यात्रा है। वहीं, नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा दो बार भारत आ चुके हैं। 2017 और हाल ही में 2022 में उन्होंने भारत की यात्रा की थी। इस दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने समकक्ष नेपाली प्रधानमंत्री देउबा के साथ जल विद्युत, विकास और कनेक्टिविटी जैसे मसलों पर चर्चा की।

नेपाल में प्रमुख रूप से दो राजनीतिक पार्टियों का दबदबा है। पहला कम्युनिस्ट पार्टी और दूसरा नेपाली कांग्रेस। अभी नेपाली कांग्रेस पार्टी की सरकार है। 13 जुलाई 2021 को ही शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बने थे। इसके पहले 2018 से 2021 तक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री थे। केपी शर्मा के कार्यकाल के दौरान भारत-नेपाल के रिश्तों में काफी खटास आई थी। शर्मा कम्युनिस्ट विचारधारा के थे और वह चीन के प्रभाव में थे। उन दिनों चीन की राजदूत का दखल सीधे प्रधानमंत्री से लेकर नेपाल के राष्ट्रपति कार्यालय तक था। इससे भारत और नेपाल के बीच कई विवाद शुरू हो गए थे। दोनों देशों में तनाव की स्थिति बन गई थी। नेपाल और चीन के बीच नजदीकियां बढऩे का असर भारत पर पड़ेगा। नेपाल पर ज्यादा प्रभाव डालकर चीन उसकी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है। यह सबसे खतरनाक स्थिति होगी।

ऐसे में भारत को हर हाल में नेपाल से अपने रिश्ते सही रखने होंगे, वहीं नेपाल को भी चीन से सावधान रहने की जरूरत है। जब से देउबा प्रधानमंत्री बने हैं, भारत-नेपाल के रिश्तों में सुधार देखने को मिला है। यह अच्छी बात है। नेपाल को श्रीलंका के हालातों से सीख लेनी चाहिए। अगर नेपाल किसी भी तरह से चीन पर निर्भर हो जाता है तो आने वाले समय में उसकी हालत बहुत बुरी हो जाएगी। भारत-नेपाल के बीच अच्छे रिश्ते दोनों के लिए जरूरी हैं। चीन के कर्ज तले दबा श्रीलंका बर्बाद हो गया है। आर्थिक, सामाजिक स्थिति को काफी नुकसान पहुंचा है। लोग भूखे सोने को मजबूर हैं। महंगाई चरम सीमा पर है। ऐसे समय में भी चीन ने अपना कर्ज न तो माफ किया और न ही ब्याज पर कोई छूट दी, लेकिन श्रीलंका को भारत का सहारा मिला। इस कठिन परिस्थिति में भारत ने श्रीलंका की न केवल आर्थिक मदद की बल्कि खाद्य, तेल व अन्य जरूरी संसाधन भी मुहैया करा रहा है। इससे दोनों देशों के बीच रिश्ते जहां, मजबूत हो रहे हैं, वहीं श्रीलंका और चीन के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं।



श्रीलंका और नेपाल ही नहीं पिछले कुछ साल में चीन ने भूटान, म्यांमार, मालदीव में भी भारत के रिश्तों को खराब करने की कोशिश की थी। हालांकि, समय रहते भारत ने इन सभी को संभाल लिया। कोरोना के दौरान भारत ने भूटान को काफी मदद दी। इसी तरह म्यांमार में राजनीतिक हालात खराब थे। सेना ने वहां की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद पूरी दुनिया ने म्यांमार को मदद भेजना बंद कर दिया। भारत ने म्यांमार सेना की इस कार्रवाई की तो निंदा की, लेकिन वहां के लोगों के लिए मदद जरूर जारी रखी। मालदीव में भी चीन ने मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ मिलकर भारत विरोधी आंदोलन शुरू करवाया। हालांकि, सत्ताधारी पार्टी ने इस आंदोलन को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। इससे दोनों देशों के बीच रिश्ते अभी भी काफी अच्छे हैं।

शेर बहादुर देउबा ने बीते साल जुलाई में जब नेपाल की कमान संभाली थी, तभी से यह अनुमान लगाए जाने लगे थे कि उनके दौर में भारत से दोस्ती बढ़ेगी। उनसे पहले पीएम रहे केपी शर्मा ओली को चीन का करीबी माना जाता था, जबकि देउबा सभी देशों के साथ समान रिश्तों के पक्षधर रहे हैं। इसके अलावा भारत से उनकी करीबी भी रही है। एक साल पहले बेहतर रिश्तों के लिए लगाए गए कयास अब सही साबित होते दिख रहे हैं और इसमें भारत के पीएम नरेंद्र मोदी की अहम भूमिका है। सवाल यह भी है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने नेपाल यात्रा के लिए बुद्ध पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना? दरअसल मोदी जानते हैं कि महात्मा बुद्ध कैसे नेपाल और भारत की साझा विरासत हैं।

नेपाल पड़ोसी देश के साथ ही भारत का सांस्कृतिक साझेदार भी रहा है और काफी करीब रहा है। हालांकि बीते कुछ वर्षों में अलग-अलग सरकारों के दौर में नेपाल की चीन से भी करीबी बढ़ी है, लेकिन भारत का असर अब भी उस पर गहरा है। इसी असर को बनाए रखने और सांस्कृतिक एकता का संदेश देने के लिए पीएम मोदी ने यह अवसर चुना है।

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