ब्‍लॉगर

अमेरिका-नेपाल की बढ़ती दोस्ती से चीन बेचैन

– प्रो. श्याम सुंदर भाटिया

दुनिया के लिए यह खबर चौंकाने वाली है कि नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा जुलाई में वाशिंगटन का दौरा करेंगे। दो दशक बाद नेपाल के किसी प्रधानमंत्री का यह पहला अमेरिकी दौरा होगा। अमेरिका और नेपाल का स्तर-दर-स्तर परस्पर संवाद जारी है। खास बात यह है, इस साल अमेरिका और नेपाल अपने बीच कूटनीतिक रिश्तों की 75वीं सालगिरह भी मना रहा हैं। यूं तो बीस वर्षों से नेपाली पीएम या आला प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठकों में शिरकत करने कई बार गए, लेकिन ये विजिट अमेरिका की द्विपक्षीय यात्राएं नहीं थीं। देउबा की यात्रा संभवतः 14 से 16 जुलाई के बीच होगी। देउबा अमेरिका की ओर से आयोजित समिट फॉर डेमोक्रेसी- लोकतांत्रिक देशों का शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे। हालांकि अभी तक दोनों देशों की ओर से इस तरह का कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है। अमेरिका और नेपाल की इन गलबहियों पर चीन की पैनी नजर है। चीन में बौखलाहट है। ड्रैगन के आकाओं में बेइंतहा गुस्सा है। अमेरिका को अप्रत्यक्ष तो नेपाल को प्रत्यक्ष भुगतने की धमकी भी दे चुका है। ऐसा होना स्वाभाविक है। दुनिया में महाशक्ति का तमगा लेने की होड़ मची है। बहरहाल इन देशों के करीबी रिलेशन की गर्माहट की तपिश को ड्रैगन शिद्दत से महसूस कर रहा है।

अमेरिका की अंडर सेक्रेटरी उजरा जेया हाल ही में काठमांडू का दौरा कर चुकी हैं। इससे पूर्व अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू और हिन्द प्रशान्त क्षेत्र के अमेरिकी कमांडर एडमिरल जॉन अक्विलिनो भी नेपाल का दौरा कर चुके हैं। जॉन 36 देशों में अमेरिकी ऑपरेशन्स के हेड हैं। खास बात यह है कि जॉन के काठमांडू दौरे पर अमेरिका ने गोपनीय रखा, लेकिन नेपाल के एक नामचीन अखबार ने भ्रमण का अति संक्षेप में खुलासा किया था। अमेरिका और नेपाल दोनों की ओर से आला अफसरों के वाशिंगटन और काठमांडू परस्पर दौरों के फोकस में पचास करोड़ डॉलर की अमेरिकी मदद है। उल्लेखनीय है, अमेरिकी संस्था- मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन- एमसीसी की ओर से नेपाल को 2017 में पचास करोड़ डॉलर की वित्तीय मदद का करार हुआ था। इसे नेपाली संसद में पास कराया जाना था, लेकिन पांच साल से यह लटका रहा क्योंकि चीन के इशारे पर पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इसका मुखर विरोध करते रहे। चीन के आका भी नहीं चाहते थे कि नेपाल में अमेरिका का असर बढ़े। अंततः ड्रैगन की चाल फेल हो गई और मौजूदा प्रधानमंत्री देउबा ने करार को इसी साल फरवरी में संसद में पास करा दिया। इसके बाद अमेरिका ने नेपाल में अपनी दिलचस्पी और बढ़ा दी। अमेरिका-नेपाल के रिश्तों में आई गर्मजोशी को दक्षिण-एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ रहे नए समीकरणों के लिहाज से खास माना जा रहा है। यह बात दीगर है, अमेरिका-नेपाल में बढ़ती नजदीकियों को विश्व समुदाय किस दृष्टि से देखता है, लेकिन यह सच है- ड्रैगन के संग नेपाल के रिश्तों में फिलहाल कड़वाहट आ गई है। नेपाल के प्रमुख अखबार काठमांडू पोस्ट के मुताबिक नेपाली सियासीदानों में पांचवीं बार पीएम की कुर्सी पर काबिज शेर बहादुर देउबा को हमेशा ही अमेरिका के करीब माना जाता है, इसीलिए देउबा सरकार के सत्ता में रहते अमेरिकी सरकार ने नेपाल में अपनी पैठ बढ़ाने की ठोस रणनीति बनाई है।

दो राय नहीं कि नेपाल-अमेरिका की बढ़ती दोस्ती से चीन को मिर्ची लगी है। चीन अमेरिका की अंडर सेक्रेटरी उजरा जेया के नेपाल दौरे के दौरान तिब्बतियों से मुलाकात पर कड़ी आपत्ति जता चुका है। उल्लेखनीय है, चीन के दबाव में नेपाल ने बहुतेरे तिब्बतियों को शरणार्थी कार्ड नहीं जारी किया है। इससे वे न तो पढ़ाई जारी रख पाते हैं, न ही बिजनेस कर पाते हैं और न ही विदेश जा पाते हैं। नेपाल में चीन के बढ़ते दवाब को खत्म करने के लिए अमेरिका आजकल साइलेंट डिप्लोमेसी की स्ट्रेटेजी के तहत काम कर रहा है। अब इसके नतीजे भी सामने आने लगे हैं। नेपाल के आर्मी चीफ प्रभुराम शर्मा 27 जून को अमेरिका रवाना होंगे। यहां वह पेंटागन का दौरा करेंगे। इसके बाद दक्षिण एशिया के मामलों को देखने वाले अमेरिका के तमाम शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। अमेरिका नेपाल को पहाड़ी इलाकों के लिए जरूरी मिलिट्री हार्डवेयर जल्द ही मुहैया कराएगा। ये हार्ड वेयर नेपाल जैसे पहाड़ी क्षेत्र वाले देश के लिए बहुत मददगार साबित होंगे।

नेपाल के सेना प्रमुख लंबी विदेश यात्रा पर जा रहे हैं। वाशिंगटन जाने से पूर्व जनरल शर्मा 18 से 24 जून तक लेबनान और सीरिया में नेपाली शांति सैनिकों से मिलेंगे। नेपाल के ये सैनिक वहां संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में तैनात हैं। इसके तुरंत बाद शर्मा 27 जून से 1 जुलाई तक अमेरिकी सेना के निमंत्रण पर संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक यात्रा करेंगे। इस यात्रा से शांति सैनिकों और अमेरिकी सेना से उसके रिश्ते मजबूत होंगे। आर्मी चीफ के दौरे के बाद प्रधानमंत्री देउबा वाशिंगटन पहुंचेंगे। नेपाल के सिक्योरिटी एक्सपर्ट मानते हैं कि अमेरिका अब चीन को रोकने के लिए डिप्लोमेसी के तौर पर बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन यह भी अंदेशा है, दो बड़े देशों के लिए यह इश्यू बैटल ग्राउंड बन सकता है। रिटायर्ड मेजर जनरल विनोज बन्सायत कहते हैं, नेपाल में अमेरिकी हित बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। इससे चीन की भृकुटी तनना तय है।

चीन यूक्रेन पर रूसी हमले में अमेरिका और नाटो देशों की रणनीति को नजदीक से देख और समझ चुका है। स्पष्ट है, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। सोवियत संघ समाजवादी गणराज्य- यूएसएसआर के संस्थापक सदस्य रहे यूक्रेन को अमेरिका और नाटो के मित्र देश न केवल ऐलानिया वित्तीय मदद मुहैया करा रहे हैं, बल्कि घातक हथियार भी सप्लाई कर रहे हैं। ऐसे में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के हौसले बुलंद हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध को 90 से ज्यादा दिन बीत चुके हैं, बावजूद इसके सुलह की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है, क्योंकि यूक्रेन के पीछे अमेरिका और नाटो देश महाशक्ति की मानिंद खड़े हैं। चीन ताइवान को लेकर अक्सर परोक्ष और अपरोक्ष रूप से दुनिया को युद्ध के लिए उकसाता और डराता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन को साफ चेता दिया है कि ताइवान पर हमला किया तो नाटो देश भी पीछे नहीं रहेंगे। दुनिया को आए दिन आंख दिखाने वाले ड्रैगन के लिए अमेरिका की नेपाल में साइलेंट डिप्लोमेसी क्या गुल खिलाएगी, यह तो वक्त बताएगा।

(लेखक, रिसर्च स्कॉलर और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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