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सेक्युलर मुखौटे का कम्युनल मंसूबा

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

सेक्युलर सियासत का चश्मा गजब है। इसमें जहांगीरपुर के अवैध निर्माण पर चलता बुलडोजर तो दिखता है लेकिन राजस्थान में मंदिर व गौशाला की तबाही दिखाई नहीं देती। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी यह नजरिया दिखाई दिया था, जिसे मतदाताओं ने नकार दिया था। मतदाताओं ने माफिया व दबंगों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने की नीति को अपना समर्थन दिया। लेकिन राजस्थान में कांग्रेस शासन के बुलडोजर से जनमानस आहत हो रहा है।

कथित सेक्युलर सियासत के दावेदार दोहरे पैमाने से स्वयं को बेनकाब करते रहे हैं। इनको गलतफहमी रहती है कि जनता इनके प्रत्येक रूप पर विश्वास करती है। जबकि इन सभी की दशा-दिशा ही असलियत को बयान कर देती है। इसके प्रमाण में अनगिनत उदाहरण हैं। पश्चिम बंगाल व केरल की राजनीतिक हिंसा पर ये खामोश रहते हैं। भाजपा शासित राज्यों की किसी अप्रिय घटना पर जमीन-आसमान एक कर दिया जाता है। ताजा उदाहरण दिल्ली और राजस्थान से जुड़ा है। दिल्ली में रामनवमी जुलूस पर सुनियोजित पत्थरबाजी के विरोध में जिन्होंने एक शब्द नहीं कहा, वही लोग आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई पर मुखर थे। बहुत दिनों के बाद ये सभी चेहरे एक साथ चर्चा में रहे। शायद इन लोगों को ऐसे ही अवसर की तलाश रहती है। इन सभी की राजनीतिक जमीन खिसक चुकी है।

सेक्युलर सियासत के नाम पर इनके दोहरे मापदंड जगजाहिर हैं। इस बार भी ऐसा हुआ। इन्होंने दिल्ली में आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई को मुद्दा बनाया। लेकिन राजस्थान में तीन सौ वर्ष पुराने मंदिर के विध्वंस पर ये सभी खामोश रहे। इसके बाद ही राजस्थान में एक गौशाला को ध्वस्त कर दिया गया। वहां लगी पानी की टंकी को नष्ट कर दिया। यह भी नहीं सोचा गया कि इन गोवंश को पानी-चारा कैसे मिलेगा। अतिक्रमण हटना चाहिए लेकिन इस कार्य में मानवीय संवेदना की तिलांजलि नहीं देनी चाहिए।

राजस्थान में मंदिर को जिस प्रकार नष्ट किया गया, उसका तरीका मध्ययुगीन था। मंदिर को हटाना अपरिहार्य था, तब भी वहां स्थापित प्रतिमाओं को पूरी प्रतिष्ठा के साथ अस्थाई रूप से अन्यत्र स्थापित करना चाहिए था। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश का एक प्रसंग ध्यान में आ गया। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ होने जा रहा था। वहां विराजमान श्रीरामलला की प्रतिमा को अस्थाई रूप से अन्य स्थान पर ले जाना था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं अयोध्या गए। श्रीरामलला की मूर्ति को उन्होंने अपनी गोद में उठाया। विधि-विधान व मंत्रोच्चार के साथ योगी इन मूर्तियों को अस्थाई मंदिर में ले गए। इसी प्रकार काशी में माँ अन्नपूर्णा की मूर्ति को पुनर्स्थापित करना था। योगी आदित्यनाथ काशी पहुंचे। उसी विधि-विधान व सम्मान के साथ वह माँ अन्नपूर्णा की मूर्ति को ले गए।

यह कहना गलत है कि राजस्थान के उस क्षेत्र की नगरपालिका पर बीजेपी का कब्जा है इसलिए मंदिर ध्वस्त करने की जिम्मेदारी उसकी है। अब तथ्य सामने आ रहे हैं कि नगरपालिका ने मंदिर को हटाने का प्रस्ताव नहीं किया था। यह सब गहलौत सरकार के रुख को देखते हुए किया गया। सीकर सांसद सुमेधानंद सरस्वती ने बताया कि बुलडोजर भाजपा ने नहीं चलाया है। बोर्ड का प्रस्ताव अधूरे पड़े गौरवपथ के कार्य को पूरा करने के लिए था। उसमें स्पष्ट है कि अतिक्रमण को चिन्हित किया जाए। चिन्हित करने के बाद नोटिस देकर जवाब लिया जाए। जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर कार्रवाई की जाए। लेकिन प्रशासन ने नोटिस नहीं दिए। मास्टर प्लान में उल्लेख है कि जिन लोगों के पास पुराने पट्टे हैं, दुकान व मकान है तो आवश्यकता पड़ने पर रास्ते को संकरा किया जा सकता है। इस प्रकार का प्रावधान है।

यहां बोर्ड भाजपा का है इसलिए षड्यंत्र के तहत मकान मंदिर तोड़े गए। जिससे भाजपा पर ठीकरा फोड़ा जाए। लेकिन कांग्रेस सरकार का यह दांव उल्टा पड़ रहा है। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस के मंत्री ने झूठ कहा कि नगर पालिका के प्रस्ताव के अनुसार मंदिर तोड़े गए। जबकि नगर पालिका की ओर से जो प्रस्ताव दिया गया था, उसमें साफ है कि 60 फीट की जगह 30 फीट जगह छोड़ दी जाए। उस प्रस्ताव में कहीं पर मंदिर का नाम नहीं है।

राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने आरोप लगाया कि मूर्तियों को खंडित किया गया और यह आस्था पर प्रहार है। अलवर जिले के राजगढ़ में मंदिरों पर बुलडोजर चलाने का मामला पहले ही विवादों में है और अब कठूमर में गौशाला पर भी वन विभाग की ओर से बुलडोजर चलाकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। गौशाला को पूरा तोड़ दिया गया है, जिससे सैकड़ों गोवंशों के सामने रहने का संकट है। गोवंशों को कहां ले जाना है, इसके लिए विभाग और प्रशासन की ओर से इंतजाम नहीं किए गए।

कठूमर उपखंड में पिछले एक दशक से चल रही एकमात्र गौशाला को वन विभाग ने अतिक्रमण मानते हुए उसे बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया है। राज्य में सरकार गो सेस से करोड़ों रुपये कमाती है। इसके बावजूद गोवंश की रहने की व्यवस्था को लेकर कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। गौशाला को ध्वस्त करने से करीब चार सौ गोवंश निराश्रित हो गए हैं। गौशाला संचालक ने दस दिनों का समय मांगा था लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई।

जहाँगीरपुरी में अवैध निर्माण पर चले बुलडोजर पर आपत्ति करने वाले मंदिर व गौशाला को ध्वस्त करने पर खामोश हैं। इनके लिए राजनीति ही सबकुछ है। पश्चिम बंगाल में इस कथित सेक्युलर राजनीति की पराकाष्ठा देखी जा सकती है। यहां चुनाव के बाद हिंसक गतिविधियां चल रही थी। भाजपा समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है। किसी ने इसके विरोध में सम्मान वापस नहीं किया। किसी ने नहीं कहा कि उनको भारत में रहने से डर लग रहा है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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