भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

चंबल के घडिय़ाल व बाटागुर कछुआ पर संकट

  • रेत माफिया ने तोड़ डाले उनके अंडे, वन व जिला प्रशासन देख रहा मूक बना

भोपाल। मुरैना के अधीन आने वाले धौलपुर बार्डर से सटे चंबल नदी के घाट पर रेत का अवैध खनन हो रहा है। यह खनन माफिया द्वारा बड़ी-बड़ी जेसीबी व हाईड्रा मशीनों से किया जा रहा है। इन मशीनों ने खुदाई करते समय चंबल के किनारे रेत में दबे बाटागुर कछुए तथा घडिय़ालों के अंडो को तोड़ दिया है। इन अंडो को तोडऩे से अब इन प्राणियों के विलुप्त प्राणी होने का खतरा मंडराने लगा है। यह दोनों ही प्राणी संरक्षित प्रािणयों की श्रेणी में आते हैं। बता दें, कि धौलपुर बार्डर से सटे घाट पर धड़ल्ले से रेत का अवैध खनन किया जा रहा है। यहां हर दिन डेढ़ हजार के लगभग ट्रेक्टर ट्रालियों द्वारा रेत का अवैध परिवहन किया जा रहा है। बड़ी-बड़ी जेसीबी मशीनें दिन-रात खुदाई करने में लगी हैं और ट्रेक्टर ट्रालियों द्वारा रेत मुरैना, धौलपुर व ग्वालियर ले जाया जा रहा है। बता दें, कि रेत के अवैध खनन से संरक्षित जलीय प्राणी बाटागुर कछुआ जिसे लाल तिलकधारी कछुआ भी कहते हैं उसका जीवन संकट में आ गया है क्योंकि चंबल नदी के किनारे यह कछुआ अपने अंडे सहेजकर रखते हैं जिन्हें खुदाई के दौरान तोड़ दिया गया है। बाटागुर कछुआ केवल चंबल नदी में ही पाया जाता है और किसी भी नदी में नहीं पाया जाता है। इसी प्रकार घडिय़ाल भी केवल चंबल नदी में पाए जाते हैं और कहीं नहीं पाए जाते हैं। यहां से घडिय़ाल पंजाब तथा अन्य प्रदेशों को भेजे जाते हैं जिससे कि उनमें बढ़ोत्तरी हो सके।


खुली आखों से देख रहा जिला प्रशासन
बता दें, कि हर दिन हजारों की संख्या में रेत का अवैध परिवहन किया जा रहा है। जिसे जिला प्रशासन व वन विभाग के अधिकारी देख रहे हैं, लेकिन उनकी हिम्मत नहीं है कि वे माफिया के ट्रेक्टर व ट्रकों को रोक सकें। जब मीडिया में मामला तेजी से उछलता है तो इक्का-दुक्का ट्रेक्टर ट्रालियों को पकड़कर संबंधित पुलिस वाले अपनी फोटो खिचवा कर लेते हैं लेकिन हर दिन और हर रात सैकड़ों की संख्या में ट्रेक्टर ट्रालियों व ट्रकों में रेत का अवैध परिवहन किया जा रहा है उस पर रोक नहीं लगाई जा पा रही है।

हाईकोर्ट में जनहित याचिका फाइल
रेत के अवैध परिवहन को लेकर उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ में जनहित याचिका अधिवक्ता राखी शर्मा द्वारा दायर की जा चुकी है। इसके बावजूद जिला प्रशासन व वन विभाग को इस बात का कतई डर नहीं है कि रेत के अवैध परिवहन पर लगाम लगाई जा सके।

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