नई दिल्ली। ऑक्सीजन (Oxygen) या स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से किसी की मौत नहीं होने के सरकार के बयान के बाद लोग अलग-अलग तर्क दे रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों को ऐसे बयान पर कोई हैरानी नहीं हुई है, क्योंकि उन्हें ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी।
दरअसल केंद्र और राज्य सरकारों के पास ऐसा सिस्टम नहीं है जिसके आधार पर पता चल सके कि कोरोना (Corona) की दूसरी लहर (Second Wave) में कितने लोगों की मौत ऑक्सीजन (Oxygen) नहीं मिलने के कारण हुई।
दरअसल सरकारों के पास अस्पतालों का ब्योरा मौजूद है जिसे ऑडिट करवाया जा सकता है, लेकिन बहुत से लोगों की मौत अस्पतालों के बाहर व घरों में भी हुई है और इन्हें कागजों तक लाना काफी मुश्किल है।
समस्या यह है कि बीते तीन माह से न तो केंद्र ने इस बारे में राज्योें से पूछा है और न ही राज्यों को जानकारी जुटाने की कोई जरूरत महसूस हुई। स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. चंद्रकांत लहरिया ने बताया कि किसी भी बीमारी की मृत्युदर एक स्वास्थ्य सूचकांक होती है, जिसके आधार पर उक्त जिला या राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं का आकलन किया जा सकता है।
यह एक बड़ा कारण है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि कोई भी राज्य अपने खराब प्रदर्शन को जगजाहिर नहीं करना चाहेगी। उन्होंने कहा, केंद्र सरकार का जवाब तकनीकी तौर पर ठीक है, क्योंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है और वहां से जानकारी के आधार पर ही केंद्र सरकार रिपोर्ट तैयार करती है।
वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजीव जयदेवन ने कहा, मुझे लगता है कि अभी सरकार की इस टिप्पणी पर और अधिक स्पष्टता की जरूरत है। हम सभी ने उन दिनों का सामना किया है। चिकित्सीय तौर पर ऑक्सीजन की कमी से मौत की पुष्टि करना जटिल है। वहीं अस्पतालों से बाहर की स्थिति जानना और भी मुश्किल है।
स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) मुताबिक इस साल देश भर में कोरोना संक्रमण की वजह से 2,62,670 लोगों की मौत हुई है। जबकि दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन (Oxygen) व स्वास्थ्य सेवाओं का भारी संकट 12 अप्रैल से 10 मई के बीच देखने को मिला। इस दौरान अलग-अलग राज्यों के अस्पतालों से सामने आईं तस्वीरें और कब्रिस्तान-श्मशान घाट की स्थिति काफी भयावह थी।
मृत्यु प्रमाण पत्र पर नहीं लिख सकते ऑक्सीजन की कमी
डॉ. लहरिया ने कहा, अस्पतालों में भर्ती मरीजों का पूरा रिकॉर्ड होता है लेकिन जो लोग बाहर मर गए या फिर जिनकी घरों में मौत हो गई, उनकी जानकारी किसी के पास नहीं है। ऑक्सीजन एक थैरेपी है।
इसकी कमी के चलते किसी मरीज में ऑर्गन फेलियर हो सकता है और उसकी मौत हो सकती है। जब मरीज के मृत्यु प्रमाण पत्र की बात आएगी तो उस पर ऑर्गन फेलियर ही मौत का कारण होगा, न कि ऑक्सीजन की कमी।
अस्पताल से बाहर वाले का केवल रजिस्ट्रेशन होता है
विशेषज्ञों के मुताबिक किसी व्यक्ति की मौत होने के बाद उसकी रिपोर्टिंग दो तरीके से होती है। पहली मृत्यु प्रमाण पत्र के जरिये, जिसे निगम/नगर पालिका जारी करती है।
इसके लिए अस्पताल से मौत का कारण सहित तमाम जानकारी वाली एक पर्ची दी जाती है। दूसरा विकल्प किसी की मौत होने के बाद नजदीकी अस्पताल में रजिस्ट्रेशन का होता है। इसके अलावा अन्य कोई काम नहीं होता और यहां मौत के कारण की जानकारी भी नहीं होती।
अंतिम विकल्प : घर-घर सर्वे
विशेषज्ञों ने बताया कि अब भी सरकार के पास दो विकल्प मौजूद हैं। हाल ही में झारखंड में घर-घर सर्वे किया गया था, जिसके आधार पर यह पता चल सके कि कितने लोगों की महामारी में मौत हुई है। इसी तरह एक विकल्प मौखिक ऑटोप्सी का है जिसे अभी तक देश में एक बार इस्तेमाल किया जा चुका है।
इसके तहत स्वास्थ्यकर्मी पीड़ित या संदिग्ध परिवारों में जाकर जानकारी जुटाते हैं। इन दोनों विकल्प के जरिए सरकारें अपने अपने राज्य में ऑक्सीजन संकट और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से हुई मौतों की जानकारी एकत्रित कर सकते हैं।