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दिल्ली-एनसीआर की हवा हुई जहरीली, 44 फीसदी बढ़े श्‍वसन रोगी

नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर सहित देशभर में सांस की बीमारी के बढ़ने में वायु प्रदूषण प्रमुख कारक के रूप में सामने आ रहा है। आलम यह है कि 25 साल में श्वसन रोगियों की संख्या में 44 फीसद की बढ़ोतरी हो गई है। इनमें 68 फीसद रोगी ऐसी जगहों पर काम करते हैं, जहां वायु प्रदूषण का स्तर सामान्य से कहीं ज्यादा रहता है।

पर्यावरण शोध पर वेबिनार
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) और दिल्ली विश्वविद्यालय के पर्यावरणीय विज्ञान विभाग के परस्पर सहयोग से हाल ही में किए शोध में यह सामने आया है। शोध का उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर क्रानिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजिजेज (सीओपीडी) के बोझ, इसके स्थानिक महामारी विज्ञान को समझना, सीओपीडी के जोखिम वाले कारकों और दिल्ली वासियों के बीच वायु प्रदूषण के लिहाज से व्यक्तिगत जोखिम का आकलन करना है। 

यूनिवर्सिटी कालेज आफ मेडिकल साइंसेज के निदेशक प्रोफेसर अरुण शर्मा बताते हैं कि सीओपीडी और ब्रोंकियल अस्थमा सांस से जुड़ी आम बीमारियां हैं। 2015 में सीओपीडी से 10.47 करोड़ पुरुष और 6.97 करोड़ महिलाएं प्रभावित हुईं। वहीं, 1990 से 2015 तक सीओपीडी के फैलाव में भी 44.2 फीसद की वृद्धि हुई है। 2017 में इसकी वजह से दुनिया में 32 लाख लोगों की मौत हुई और यह मौतों का तीसरा सबसे सामान्य कारण रहा। भारत में इसके आर्थिक प्रभावों पर गौर करें तो 1990 में 2.81 करोड़ मामले थे जो 2016 में बढ़कर 5.53 करोड़ हो गए।

वायु प्रदूषण सीओपीडी के तीव्र प्रसार के लिए जिम्मेदार
शोध के मुताबिक, वायु प्रदूषण सीओपीडी के तीव्र प्रसार के लिए जिम्मेदार है। सीओपीडी का जोखिम पैदा करने वाले कारकों में धूम्रपान सबसे आम कारक माना गया है। तीन अरब लोग बायोमास ईंधन जलाने से निकलने वाले धुएं व 1.01 अरब लोग तंबाकू के धुएं के संपर्क में आते हैं। इसके अलावा वातावरणीय वायु प्रदूषण, घरों के अंदर प्रदूषण, फसलों एवं खदान से निकलने वाली धूल और सांस संबंधी गंभीर संक्रमण भी सीओपीडी के प्रमुख जोखिम कारक हैं।

70 फीसद मरीज धूल की अधिकता वाले इलाकों में काम करते हैं
प्रो. शर्मा के मुताबिक, सीओपीडी के 45 फीसद मरीज वायु प्रदूषण का खतरनाक श्रेणी वाले स्तर और 70 फीसद मरीज धूल की अधिकता वाले इलाकों में काम करते हैं। 64 फीसद मरीज धूम्रपान नहीं करते, जबकि धूम्रपान करने वाले मरीजों का फीसद केवल 17.5 है।

मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती में भी हैवी मेटल्स होते हैं
नीरी के निदेशक डॉक्टर राकेश कुमार ने कहा कि दिल्ली में केरोसीन से लेकर कूड़े और गोबर के उपलों तक छह-सात तरीके के ईंधन का इस्तेमाल होता है। इनसे निकलने वाला प्रदूषण भी अलग-अलग होता है। मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती में भी हैवी मेटल्स होते हैं।

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